‘हम लोगों ने इंडियन आर्मी के लिए ऐसी डिवाइस तैयार की है जो बिना इंटरनेट या सैटेलाइट के एक जगह से दूसरी जगह विजुअल कम्युनिकेशन कर सकती है। डिवाइस का नाम स्मार्ट संचार है। इससे लाइव स्ट्रीमिंग भी की जा सकती है। इंडियन आर्मी इसका इस्तेमाल कर रही है।’
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ये कहना है स्टारब्रू टेकसिस्टम स्टार्टअप के फाउंडर आशुतोष राय का। भोपाल के स्मार्ट सिटी दफ्तर में बने बी-नेक्स्ट इनक्यूबेशन सेंटर में उनकी छोटी सी लैब है। आशुतोष कहते हैं कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के जरिए हमें अपने प्रोडेक्ट को डिस्प्ले करने और नए इन्वेस्टर्स से मिलने का मौका मिलेगा। दरअसल, इनक्यूबेशन सेंटर में नए स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जाता है। यहां 25 से ज्यादा स्टार्टअप काम करते हैं। इन सभी ने 24-25 फरवरी को भोपाल में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। इनमें से कुछ को अपने प्रोडेक्ट डिस्प्ले करने का भी मौका मिलेगा। भास्कर ने ऐसे ही तीन स्टार्टअप के फाउंडर से बात कर जाना कि उन्होंने कैसे अपने स्टार्टअप शुरु किए और इन्वेस्टर्स समिट से उन्हें क्या उम्मीद है?
सबसे पहले जानिए उस डिवाइस के बारे में जो बिना इंटरनेट के विजुअल कम्युनिकेशन करती है।
स्टार्टअप नंबर-1
आइडिया कैसे आया?
आशुतोष कहते हैं कि मैं 7 साल से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेक्टर में काम कर रहा था। ये 2015-16 की बात है। एक आर्मी यूनिट में हम लोगों को एक ऐसे डिवाइस को इंस्टॉल करने के लिए कहा गया, जिससे कि वॉलीबॉल खेलने के दौरान बॉल के बास्केट में गिरने के साथ ही ऑटोमैटिक स्कोर अपडेट हो जाए। हमने वो कर दिखाया। यह सेंसर बेस्ड था। इसी के बाद आर्मी ऑफिसर्स ने बताया कि हम बिना इंटरनेट, सैटेलाइट के फोटो-वीडियो सिक्योर मीडियम से शेयर नहीं कर पाते हैं। यहीं से ‘स्मार्ट संचार’ की शुरुआत हुई।
फंड कैसे जुटाया?
आशुतोष बताते हैं कि नौकरी के दौरान 30-35 लाख की सेविंग थी। दोस्तों से 6 लाख उधार लेकर 40 लाख इन्वेस्ट किया। मैंने बिहार के रहने वाले अपने दोस्त नवीन से बात की। सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, पीसीबी डिजाइनिंग, मैकेनिकल फैब्रिकेशन के लिए अलग-अलग टीमें बनाई। ज्यादा रेंट नहीं दे सकता था, तो भोपाल के इनक्यूबेशन सेंटर में ऑफिस और लैब सेटअप किया। मेंटर योगेश खाकरे ने फाइनेंशियल और बिजनेस ग्रोथ को लेकर गाइड किया।
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इस डिवाइस की मदद से बिना इंटरनेट के वीडियो-फोटो अपलोड किए जा सकते हैं।
ट्रेनिंग कैसे की?
आशुतोष के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक्स से बीटेक करने की वजह से कोई दूसरी ट्रेनिंग नही लेनी पड़ी। आर्टिफियल इंटेलिजेंस सेक्टर के एक्सपीरिएंस से टेक्नोलॉजी को समझने में मदद मिली। तीन साल की रिसर्च के दौरान टीम के साथ अलग-अलग आर्मी कैंप और लोकेशन पर जाकर सर्वे किया। अलग-अलग मौसम में, बॉर्डर एरिया पर डिवाइस काम करने में सक्षम हो, इस पर काम करना शुरू किया।
मार्केटिंग स्ट्रैटजी
देश के अलग-अलग हिस्सों में लगने वाले डिफेंस एक्सपो में जाकर डिवाइस का प्रेजेंटेशन देता हूं। डिफेंस मिनिस्ट्री से जब अवॉर्ड मिला, तो सेना भी भरोसा करने लगी। स्टार्टअप को पेटेंट करवाया। एक आर्मी यूनिट में डिवाइस इंस्टॉल किया, तो दूसरी यूनिट भी जुड़ती चली गई। अब तक सियाचीन, लद्दाख, जैसलमेर, LOC, LAC समेत अलग-अलग जगहों पर 150 से ज्यादा डिवाइस इंस्टॉल हो चुके हैं।
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इन्वेस्टर्स समिट से उम्मीदें
आशुतोष कहते हैं कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में नए इन्वेस्टर्स से मिलने का मौका मिल सकता है, उन्हें हम अपने प्रॉडक्ट्स दिखाएंगे। इस इंवेंट से हमें स्ट्रेटिजीकली ग्रोथ मिल सकती है। डिफेंस की परमिशन के बिना इसे पब्लिक प्लेस पर शोकेस करना अलाउड नहीं है, लेकिन मौका मिला तो जरूर करेंगे। स्टार्टअप अभी माइक्रोइंडस्ट्रीज की कैटेगरी में ही आते हैं। हम आगे बढ़ने का स्कोप देख रहे हैं। यदि कोई इंडस्ट्री एमपी डिफेंस सेगमेंट में इन्वेस्टमेंट करती है तो शायद हम पहली छोटी इंडस्ट्री होंगे जो उनकी जरूरतों को पूरा कर सकती है।
स्टार्टअप नंबर- 2
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आइडिया कैसे आया?
अरुणा कहती है कि इससे पहले मैं एक एजुकेटर रहीं हूं। एमएचआरडी के प्रोजेक्ट के लिए 13 कंट्रीज के साथ मिलकर काम किया है। इस दौरान मैंने देखा कि स्कूलों में बच्चों को सिर्फ थ्योरी पढ़ाई जा रही है। प्रैक्टिकल नॉलेज बिल्कुल जीरो है। मैं अपर मिडिल क्लास फैमिली से आती हूं। मेरे पापा एडिशनल एसपी और मम्मी स्टेटिस्टिक ऑफिसर रही हैं। भाई भी सरकारी बैंक में मैनेजर है। मेरी खुद भी अधिकारी पद की नौकरी लग चुकी थी। मगर मुझे एहसास हुआ कि भारत में बच्चों को प्रैक्टिकल नॉलेज देने के लिए काम करना होगा।
फंड कैसे जुटाया?
अरुणा बताती हैं कि 2019 में जब स्टार्टअप शुरू किया, तब मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस नहीं था। बच्चों के स्किल डेवलपमेंट पर फोकस था। जब मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू कि तो बहुत ज्यादा इन्वेस्टमेंट की जरूरत थी। बैंक से कॉन्टेक्ट किया तो मुझे लोन ही नहीं मिला। हमारी सोसाइटी यह भरोसा नहीं कर पाती कि एक महिला कैसे बिजनेस शुरू कर सकती है। बहुत जगहों से रिजेक्शन मिला, लेकिन लोन के लिए जो जरूरी क्राइटेरिया होता है वह पूरा किया और बैंक से लोन मिला। अभी तक हमने कोई भी गर्वमेंट फंडिंग नहीं ली है। सब कुछ पर्सनल लोन और पर्सनल फाइनेंस किया है।
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बच्चों को फन एक्टिविटी के साथ पढ़ाई में मदद करने वाले टॉयज बना रहीं हैं अरुणा।
ट्रेनिंग कैसे की?
हमारी टीम में ज्यादातर लोग इलेक्ट्राॅनिक और मैकेनिकल इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से हैं। प्रोडक्ट डिजाइन करने के लिए डिजाइनर हैं। ये सभी प्रोफेशनल हैं। इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट भी हम लोग खुद ही बनाते हैं। मैं पहले से एजुकेटर रही हूं, तो पता है कि बच्चों को किस तरह के खिलौने पसंद आएंगे।
मार्केटिंग स्ट्रैटजी
भारत 98% इलेक्ट्रानिक टाॅयज इम्पोर्ट करता है। हमारा उद्देश्य भारत में खिलौनों के इम्पोर्ट को घटाना है। हम केंद्र और राज्य सरकार के 50 से ज्यादा इंस्टिट्यूशन्स को खिलौने सप्लाई कर चुके हैं। हमारे प्रॉडक्ट ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड्स पर सेल होते हैं। एमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्म पर भी सप्लाई करते हैं। छोटे बच्चों के लिए पजल, ड्राइंग और 13 साल से बड़े बच्चों के लिए साइंस किट, इलेक्ट्राॅनिक्स किट अवेलेबल होते हैं।
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इन्वेस्टर्स समिट से उम्मीदें
अरुणा सिंह को उम्मीद है कि उन्हें अपने प्रोडक्ट को ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में शोकेस करने का मौका मिलेगा। अपनी कंपनी के लिए इन्वेस्टमेंट पिच कर सकेंगी। बजट 2025 में टॉय मैन्युफैक्चरिंग में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पॉलिसी बनी है, इसका लाभ मिलेगा। इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स से बात करने का मौका मिलेगा। टॉय मैन्युफैक्चरिंग में और क्या इनोवेटिव कर सकती हैं, यह सीखने को मिलेगा।
स्टार्टअप नंबर-3
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आइडिया कैसे आया?
हर्षवर्धन मिश्रा ने बताया कि उनकी कंपनी हाउसहोल्ड सर्विस मेंटिनेस का काम करती है। इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर या किसी भी तरह के मैनपावर की आवश्यकता है तो हम उसे 30 मिनट में पूरा करते हैं।
इस कंपनी को 2017 में शुरू किया था। दरअसल 2016 में मुझे घर पर प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन की अर्जेंट नीड हुई, लेकिन 2–3 घंटे तक कई दुकानों पर घूमने के बाद इलेक्ट्रीशियन और प्लंबर मिला। तब मुझे लगा कि यह बहुत बड़ी समस्या है। इसे दूर करने के लिए मैंने काम करना शुरू किया। 2017 से पहले एशियन पेंट में काम करता था। मैंने नौकरी छोड़कर स्टार्टअप शुरू किया। उस वक्त मेरे पास 350 रूपए बचे थे।
फंड कैसे जुटाया?
दोस्तों से उधार लेकर एक हजार रुपए में पैम्फलेट छपवाए। खुद डोर टू डोर जाकर पैम्फलेट बांटे। प्लंबर और इलेक्ट्रीशियन का सर्वे किया। 20 प्रतिशत प्रॉफिट मार्जिन पर लोगों को अपने साथ जोड़ा। इसके बाद काम आने लगा। दो साल तक अपने नंबर पर ही ऑर्डर लेकर ऑर्डर ट्रांसफर करते रहे। इसके बाद जो आमदनी हुई उससे सॉल्यूशन एप गो ईजी बनवाया।
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हर्षवर्धन एक ही प्लेटफॉर्म पर कई सुविधाएं ले आए हैं।
ट्रेनिंग कैसे की?
इसके लिए खास कोई ट्रेनिंग नहीं ली। जो समस्याएं आती गईं उनके सॉल्यूशन के साथ आगे बढ़ते गए। जो भी ट्रेनिंग रही है वो वर्क प्रोसेस के दौरान मिलने वाले सबक से ही आई है। रिसर्च में समझ आया कि यूजर और प्रोवाइडर दोनों ओर से दिक्कत है, क्योंकि जब यूजर को जरूरत होती है तब उसे सर्विस प्रोवाइडर नहीं मिलता है और सर्विस प्रोवाइडर को भी डेली बेसिस पर काम नहीं मिलता है। इसलिए इसे सबसे अहम मानते हुए काम किया।
मार्केटिंग स्ट्रैटजी
पैम्फलेट के जरिए डोर टू डोर संपर्क के अपने फंडामेंटल विचार को कंपनी ने अब भी छोड़ा नहीं है। इसके अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मार्केटिंग और ब्रांडिंग की जा रही है। कस्टमर की माउथ पब्लिसिटी सबसे ज्यादा अहम है इसलिए कस्टमर फीडबैक और कस्टमर की संतुष्टि पर सबसे ज्यादा फोकस है।
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इन्वेस्टर्स समिट से उम्मीदें
जीआईएस मेरे लिए बहुत बड़ा इवेंट है। मैंने अपनी कंपनी का रजिस्ट्रेशन कर लिया है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह लगता है कि इंडस्ट्री के लोगों से बात करने का मौका मिलेगा। हमारी प्रॉब्लम के सॉल्यूशन हम उनसे बात करके ढूंढ सकते हैं। स्टार्टअप पॉलिसी या गवर्नमेंट की दूसरी पॉलिसीज को लेकर क्वेरीज के सॉल्यूशंस पर बात हो सकती है।
हम रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ काम कर रहे हैं। उनको सर्विस प्रोवाइड कर रहे हैं तो मेरी इच्छा है कि इस समिट में मुझे अंबानी जी से इंटरेक्ट होने का मौका मिल पाए। जिसके लिए प्रेजेंटेशंस हमने रेडी कर ली है। मॉक पिचिंग की भी तैयारी पूरी कर ली है। कुछ वीडियोज बनाए हैं।
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