औषधि की खेती से सालाना ₹14 लाख कमाई: कॉम्पिटिटिव एग्जाम में सफलता नहीं मिली तो शुरू की खेती; अब विदेशी भी आते हैं खेत देखने – Bamoree (Nateran) News

औषधि की खेती से सालाना ₹14 लाख कमाई:  कॉम्पिटिटिव एग्जाम में सफलता नहीं मिली तो शुरू की खेती; अब विदेशी भी आते हैं खेत देखने – Bamoree (Nateran) News

एमपी के स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार बात विदिशा जिले के पाली गांव में रहने वाले किसान लखन पाठक की। नटेरन जनपद क्षेत्र के स्मार्ट किसान लखन पाठक 12 साल से औषधीय खेती कर रहे हैं। उन्होंने परंपरागत खेती छोड़ कर इसको अपनाया और अब 13 बीघा में औषधि उगा रह

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किसान का कहना है कि पहले साल जब मुनाफा नहीं हुआ तो लगा कि बर्बाद हो जाऊंगा। अपनी गलतियों से सीखा और धैर्य के साथ मेहनत की। इसका परिणाम है कि अब सालाना 14 लाख रुपए की बचत हो रही है। फार्म पर करीब 200 प्रकार के औषधीय पेड़, पौधे और झाड़ लगे हैं। यहां केवकंद, चित्रक, सर्पगंधा, अश्वगंधा, हठजोड़, आमा हल्दी सहित करीब 50 प्रजाति की औषधि वे हर साल लगाते हैं। उनकी प्रोसेस कर औषधियों का पाउडर, बीज, छाल, जड़ को लोगों तक पहुंचाते हैं।

कॉम्पिटिटिव एग्जाम में सफलता नहीं मिली तो शुरू की खेती

48 साल के किसान लखन पाठक ने 1997 में बायोलॉजी से बीएससी कम्प्लीट की। इसके बाद शिक्षक सहित अन्य सरकारी नौकरी में किस्मत आजमाई, लेकिन दो साल प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिली। इसके बाद घर में पिताजी के साथ 55 बीघा खेत में सोयाबीन, गेहूं, चना, मक्का सहित अन्य पारंपरिक फसल उगाई। इसमें सालाना दो लाख रुपए तक की बचत हो जाती थी। तब रेट और खर्च भी कम थे।

घर की जरूरत और खर्च बढ़ने पर खेती में कुछ नया करने का विचार आया, ताकि आय बढ़े। इसके लिए मैं खेती में प्रयोग करता रहता था। मेरे मामा का बेटा नीमच के एक किसान परिवार से मिला। वे अश्वगंधा की खेती करते थे। मामा के बेटे ने मेरी मोबाइल पर बात कराई। मैंने अश्वगंधा की खेती के बारे में जाना। उसी सप्ताह मैं नीमच पहुंचा। वहां दो दिन रहकर आश्वगंधा लगाने की ट्रेनिंग ली। उनसे तीस रुपए प्रति किलो के हिसाब से 35 किलो बीज लाया।

पहली बार में नहीं हुआ मुनाफा

लखन पाठक ने बताया कि 2012 में पांच बीघा में अश्वगंधा की खेती की। पहले साल में पारंपरिक खेती के बराबर ही आय रही। हालांकि मेहनत उससे ज्यादा लगी। एक बार तो लगा कि मैं सफल नहीं हो पाउंगा, फिर विचार आया कि जब खेती ही करना है तो एक बार और मेहनत करते हैं। इसमें परिवार का संबल मिला। पहली बार में मैंने जो गलतियां की थी, उनसे सीखा। उनमें सुधार किया। 2013-2014 में भाइयों को राजी कर 23 बीघा में अश्वगंधा लगाया।

इस बार सही समय पर सितंबर में अंत में फसल बोई। इस बार बीज घर का ही था। मौसम ने भी साथ दिया। 23 बीघा में करीब आठ लाख रुपए की बचत हुई। यह हमरी खेती की अब तक की सर्वाधिक आय थी। अगले साल इसका क्षेत्र बढ़ाना था। तीनों भाइयों ने सहमति से खेत का बंटवारा कर लिया। इसके बाद मैं करीब 13 बीघा में औषधीय खेती कर रहा हूं। सामान को प्रोसेस कर विदिशा और गांव में अपनी दुकान से लोगों को उपलब्ध कराता हूं। इसके लिए आयुष विभाग से अनुमति ले रखी है।

हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स का सर्टिफिकेट लिया

औषधि उगाने के बाद मप्र के आयुष विभाग से अनुमति लेकर पाली में घर पर ही औषधि केंद्र खोला है। ऑनलाइन पढ़ाई कर केरल के तिरुवनंतपुरम से ट्रेडिशनल कम्युनिटी हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स का सर्टिफिकेट प्राप्त किया। खेत से प्राप्त औषधियों से वे क्षेत्र के लोगों का इलाज करते हैं। लखन का कहना है कि यहां लगी आषधि अलग-अलग प्रकार से उपयोग होती है। कुछ का तेल निकालकर और कुछ को कूटकर दवा बनाते हैं। ज्यादातर पाउडर के रूप में इस्तेमाल की जाती है।

नीमच मंडी में बेचते हैं उपज

प्रदेश के नीमच में औषधियों की मंडी लगती है। वहां उपज के अच्छे दाम मिलते हैं। अश्वगंधा, अकरकरा, केवकंद सहित अन्य औषधि को वे नीमच ले जाकर बेचते हैं। वहां भाव के साथ खरीददार भी ज्यादा मिलते हैं। हेल्थ केयर का सर्टिफिकेट लेने के बाद घर ही आयुर्वेद चिकित्सालय खोल लिया है। अपने खेत में उगी जड़ी, बूटियों से लोगों का इलाज भी करते हैं। ऐसे में उपज मंडी की अपेक्षा चार से पांच गुना महंगी बिकती है।

खेती देखने विदेश से आए

लखन ने बताया कि वे जब भी किसी औषधि का नाम सुनते हैं तो उसके बारे में जानकारी जुटाने लगते हैं। इसके लिए ऑनलाइन और विदिशा, भोपाल के आयुर्वेद के जानकारी की मदद लेते हैं। छह साल पहले एक NGO के अफसर हमारे क्षेत्र के भ्रमण पर आए थे। वे मेरा खेत देखकर गए थे। उसके बाद मैं उनसे जुड़ा। वहां के लोगों से औषधीय खेती के बारे में जाना। NGO के माध्यम से नीदरलैंड, अमेरिका, स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक व किसान प्राकृतिक औषधि की खेती देखने आ चुके हैं।

दवा बनाने के लिए लगाई मशीनें

पहले तीन साल अश्वगंधा पर फोकस किया। इसके बाद अकरकरा, केव कंद के साथ औषधीय पौधे लगाए। चरक संहिता सहित अन्य पुस्तकें पढ़ने के बाद करीब 200 प्रकार के पेड़-पौधे लगाए। यहां उपज को प्रोसेस करने के लिए आयुष विभाग से दवाओं की पैकिंग की अनुमति ली। उपज की छाल, तेल निकालने से लेकर उसका चूर्ण बनाने के लिए छह लाख रुपए से मशीनें लगवाई हैं। विदिशा जिले के उन्नत किसान के रूप में लखन को कई बार पुरस्कार मिल चुके हैं।

इंदौर में पढ़ाई कर रहा बेटा

परिवार में पत्नी व तीन बच्चों के अलावा दो भाई और माता-पिता हैं। बड़ा बेटा इंदौर से बीबीए कर रहा है। बिटिया 10 और बेटा 11वीं में है। दोनों शमशाबाद में पढ़ाई कर रहे हैं। बड़े भाई शामशाबाद में स्कूल चलाते हैं। छोटा भाई भोपाल में प्राइवेट सेक्टर में नौकरी कर रहा है। आउटलेट चलाने से लेकर खेतों की देखरेख में पत्नी बराबर सहयोग करती हैं।

बाह्मी- कड़बी प्रजाति लगाते हैं। यह स्मरण शक्ति बढ़ाने में उपयोग करते हैं। इसके साथ ही कालमेघ, बाह्मी और नाय कड़बी होती हैं। यह डायबिटीज, पुराना बुखार सहित अन्य रोग को दूर करने में उपयोग करते हैं।

चित्रक- इससे चित्रकादि बटी बनती है। यह पेट संबंधी रोग में काम में आती है। स्किन डिसीज खास तौर पर सफेद दाग आदि में इसका उपयोग करते हैं।

सर्पगंधा- यह हाई ब्लडप्रेशर, कॉलेस्ट्रॉल काे नियंत्रित करता है। इसकी जड़ का उपयोग करते हैं। 18 महीने पुरानी जड़ का पाउडर बनाकर उसमें अश्वगंधा, अर्जुन सहित अन्य जड़ी मिलकार देते हैं।

घोड़ा बच- बच्चों का हलकाना दूर करती है।

एलोवेरा- स्किन, बाल व पेट संबंधी बीमारियों को दूर करता है।

लेमन ग्रास- थाइराइड के लिए।

हठजोड़- हड्‌डी जोड़ने के लिए।

पुर्ननबा- पथरी, लिवर, किडनी रोग के लिए।

बकायन – पाइल्स के लिए कारगर है।

अर्जुन – हृदय रोग के लिए होता है।

मैदा लकड़ी – इत्र आदि बनाने में छाल का उपयोग होता है। इसके साथ ही शीकाकाई, रीठा, आंवला, हरड़, मुनगा सहित 30 प्रजाति के औषधीय पेड़ लगे हैं।

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