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केदारपुर की 22बीघा जमीन मामले में एएजी खेड़कर की टिप्पणी: जिस तरह सरकारी रिकॉर्ड में कांट-छांट हो रही, उससे भविष्य में जंगल ही खत्म हो जाएंगे – Gwalior News

शिवपुरी लिंक रोड स्थित ग्राम केदारपुर की 22 बीघा जमीन एक बार फिर चर्चा में है। एडीजे कोर्ट ने इस जमीन को निजी घो​षित किया है, जिसके खिलाफ मप्र शासन ने हाई कोर्ट में अपील की है। शासन इस जमीन (वन विभाग) को जंगल बता रहा है।

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मंगलवार को सुनवाई में अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक खेड़कर ने कोर्ट से कहा – जिस तरह से राजस्व रिकॉर्ड में कांट-छांट कर सरकारी जमीन को निजी किया जा रहा है, ये क्रम जारी रहा तो भविष्य में जंगल ही खत्म हो जाएंगे। डेढ़ घंटे तक एएजी खेड़कर ने शासन का पक्ष रखा। समय की कमी के चलते प्रकरण की अगली सुनवाई शुक्रवार को नियत की गई है।

पंजाब सिंह का दावा- जमीन का पट्टा मेरे पास, सिविल कोर्ट ने किया था खारिज इस जमीन पर पंजाब सिंह ने स्थाई निषेधाज्ञा व भूमि स्वामी घोषित करने वर्ष 2009 में सिविल कोर्ट में दावा पेश किया। इसमें बताया कि ग्राम केदारपुर की 22 बीघा 10 बिस्वा जमीन उसे पट्टे पर दी गई थी। इस दावे को सिविल कोर्ट ने 25 अगस्त 2011 को खारिज कर दिया। इसके खिलाफ उसने एडीजे कोर्ट में अपील की।

यहां न्यायाधीश रुचिर शर्मा ने पूर्व के आदेश को अपास्त करते हुए 3 अक्टूबर 2012 को पंजाब सिंह के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद शासन व वन विभाग ने हाई कोर्ट में अपील पेश की। शासन का तर्क है जमीन आजादी के भी पहले से सरकारी होकर वन विभाग की है।

मध्यप्रदेश शासन ने अपील में पेश की हैं यह मुख्य दलीलें

1. इस जमीन को सुप्रीम कोर्ट पहले ही मान चुका सरकारी: जिस जमीन पर पंजाब सिंह दावा कर रहा है, उसके संबंध में सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्णय दे चुका है। एक अन्य व्यक्ति ने भी इन सर्वे नंबर स्थित जमीन पर दावा पेश किया था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन जीत शासन की ही हुई। दावा करने वाले व्यक्ति ने भी पट्टा पेश किया था, लेकिन वो फर्जी निकला।

2. न्यायाधीश रेणु शर्मा ने पकड़ा फर्जी आदेश: ग्राम केदारपुर स्थित जमीनों के रिकॉर्ड में किस तरह से कांट-छांट की गई, इसका प्रमाण न्यायाधीश रेणु शर्मा के द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में मिलता है। जिसमें ये बताया गया कि केदारपुर के कई सर्वे नंबरों की फर्जी डिक्री न्यायाधीश के नाम से बनाई गई। जबकि उक्त न्यायाधीश कभी ग्वालियर में पदस्थ ही नहीं रहे।

3. सिविल कोर्ट ने वास्तविक रिकॉर्ड देख दिया था फैसला : जब पंजाब सिंह ने दावा पेश किया तो राजस्व अभिलेख सिविल कोर्ट में पेश किया गया। न्यायाधीश ने वास्तविक रिकॉर्ड देखने के बाद शासन के पक्ष में फैसला दिया था। जबकि एडीजे कोर्ट ने मप्र शासन को सुनवाई का उचित अवसर भी प्रदान नहीं िकया।

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