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भ्रष्टाचार का निर्माण कर करोड़ों रुपए डकार गए अफसर: दो बांध भरकर स्वर्ण रेखा में लाना था पानी; अफसरों ने 52 करोड़ रुपए में ऐसी नहर बनवाई जो खुद ही बह गई – Gwalior News

कांसेर के जंगलों में बहकर बर्बाद हो रहा है लाखों लीटर पानी, लेकिन ठेकेदारों को बचाने में जुटे हैं अफसर

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ग्वालियर दक्षिण सहित शहर की 6 लाख की आबादी को फायदा पहुंचाने और भू जल स्तर बढ़ाने का महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पानी में बह गया। इस प्रोजेक्ट के लिए तीन पैकेज में 52 करोड़ की राशि जारी हुई थी। इस राशि से जो नहर बनाई गई उसकी पक्की दीवारें और तली पहली बारिश भी नहीं झेल पाई और जिस नहर में पानी बहना था वह खुद उस पानी में बहती नजर आई।

यही कारण है कि इस नहर के जरिए शहर के दो बांधों को भरकर स्वर्ण रेखा तक पानी पहुंचाने का सपना कांसेर के जंगलों में बहकर बर्बाद हो रहा है। लेकिन मिलीभगत का खेला ऐसा है कि जल संसाधन विभाग के अधिकारी ठेकेदार पर कार्रवाई करने की जगह उसका बचाव करते हुए कह रहे हैं कि नहर करीब ढाई क्यूसिक पानी बहाव के लिए बनी थी लेकिन इसमें कई गुना पानी का बहाव होने के कारण नहर टूट गई।

अब सवाल यह है कि प्लानिंग के समय पानी के बहाव का सही आंकलन क्यों नहीं किया गया?

योजनाएं अटकीं… वीरपुर-हनुमान बांध को भरने के साथ इन्हें टूरिस्ट प्वाइंट के रूप में विकसित करना था। जहां पार्क, वाटर एडवेंचर, रेस्त्रां, आकर्षक लाइटिंग आदि का काम कराया जाना था। लेकिन नहर टूटने से न केवल वाटर सप्लाई प्रभावित हो रही है, बल्कि पर्यटन से जुड़े काम भी ठप पड़े हैं।

हाईकोर्ट की सख्ती के बाद भी लापरवाही… जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने सख्त रवैया अपनाया था। नहर क्षेत्र के दोनों तरफ 200-200 मीटर दूरी पर कुल 42,000 से अधिक पौधे लगाए गए थे। लेकिन नहर के टूटने से यह कवायद विफल हो गई है। वीरपुर और हनुमान बांध तक पानी पहुंचने की योजना अधर में लटकी है।

दैनिक भास्कर को एक्सपर्ट ने बताए भ्रष्टाचार के 3 मुख्य कारण

1. सरिया: सरिया को सही तरीके से जमीन में गहराई तक खड़ा करना चाहिए था, लेकिन ठेकेदार ने इसे सतही तौर पर खड़ा कर मटेरियल डालकर ढलाई कर दी। इससे दीवारें पानी के बहाव को सहन नहीं कर पाईं। 2. गुणवत्ता: सीमेंट और नदी की रेत की पर्याप्त मात्रा का उपयोग न करके, ठेकेदार ने गिट्टी का चूरा और कम सीमेंट उपयोग की। इससे दीवारें कमजोर बनीं व पानी के दबाव में गिर गईं। 3. खुदाई : नींव की खुदाई एक से डेढ़ फीट गहरी होनी चाहिए थी, लेकिन यहां खुदाई नहीं की गई। सतही निर्माण के कारण पानी के बहाव ने दीवारों और बेस को उखाड़ फेंका। रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री ने नहर के निर्माण में बरती गई उक्त खामियों के बारे में भास्कर को बताया। उन्होंने कहा- जनता के पसीने की पैसे को ब​र्बाद करने वाले ठेकेदार व अफसरों पर सख्त कार्रवाई होना चाहिए।

अनुबंध के तहत ठेकेदार ही सही कराएगा ढाई क्यूसिक बहाव के लिए बनी नहर में 200 क्यूसिक पानी बहने से टूटी है। निर्माण अनुबंध शर्तों में मेंटेनेंस ठेकेदार के हिस्से में है, उसे ही सही कराना होगा। – अग्निवेश यादव, कार्यपालन यंत्री/ जल संसाधन

नहर निर्माण में हर स्तर पर लापरवाही, लेकिन अफसरों को नहीं दिखी

किसने बनाई: दर्पण कॉलोनी की भगवती इंटरप्राइजेज फर्म ने इस नहर का निर्माण किया। निर्माण में सीमेंट-रेत की जगह डस्ट (गिट्टी का चूरा) का ज्यादा इस्तेमाल किया गया। चौड़ाई-गहराई सब कम: 4.5 किलोमीटर लंबी नहर की गहराई 0.8 मीटर होनी थी, लेकिन कई जगह बिना खुदाई के काम पूरा कर दिया गया। चौड़ाई भी तय मापदंडों से कम है। टूट-फूट का हाल: हर 70-100 मीटर की दूरी पर नहर टूट चुकी है। दीवारों और तली की मजबूती इतनी कमजोर थी कि हल्का बहाव भी इसे संभाल नहीं पाया। ट्रिवन डक्ट का काम बंद: पेहसारी से रायपुर बांध के बीच ट्रिवन डक्ट नहर (ऊपर से बंद नहर) बनाई जा रही है। इसका काम अधूरा है। ठेकेदार ने महीनों पहले काम बंद कर दिया, और जो बना है वह भी टूट-फूट चुका है। जानकारी के अनुसार इस पैकेज में बड़ा काम यही है।

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