व्यक्ति का आचरण उसके संयम, विश्वास, दृढ़ निश्चय, कार्य के प्रति निष्ठावान और उसके व्यवहार पर निर्भर करता है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में हमेशा कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी लांघता हुआ आगे बढ़ जाता है, क्योंकि उसके पास आदर्श चरित्र, सशक्त व्यक्तित्व, व्
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शनिवार को यह बात कही।
असफल व्यक्ति करने लगता है निंदा
महाराजश्री ने कहा कि व्यक्ति के आचरण, व्यवहार, कार्यों को देखते हुए ही जनता उसे अपना नेता बनाती है। बड़े-बड़े सफल व्यक्ति कमजोरियों को अपने पास नहीं आने देते। किसी को सफल देखते हुए असफल व्यक्ति उसकी निंदा करने लगता है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो कुछ करते नहीं हैं, केवल दूसरों की निंदा ही करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में कुछ नहीं करते। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो निंदा के डर से कार्यकुशल होते हुए भी कोई कार्य नहीं करते, जिसके कारण जहां के तहां रह जाते हैं। कबीरदासजी ने कहा है- निंदक नियरे राखिए आंगन कुटि छबाय, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय…. वे कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने आंगन में कुटि छबाकर रखना चाहिए, क्योंकि वह बिना पानी और बिना साबुन के ही हमारे स्वभाव को निर्मल कर देता है। कोई व्यक्ति पहाड़ पर चढ़ जाता है तो जो अकर्मण्य व्यक्ति होता है, वह कहता है, अरे वह तो तुक्के में चढ़ गया। वह उसकी कड़ी मेहनत नहीं देखता। क्योंकि खुद चढ़ना भी नहीं चाहता और दूसरों को चढ़े देख भी नहीं सकता। निंदा करने वाले दो तरह के होते हैं। एक तो वे जो कुछ कर नहीं सकते, द्वेषता के कारण वे केवल दूसरे को आगे बढ़ते देख चलते हैं। और कहने लगते हैं, कि ऐसा नहीं ऐसे करना चाहिए, जमाने भर की सलाह देने लगत हैं, जैसे क्रिकेट के मैदान में चुने हुए खिलाड़ी जब खेलते हैं, उन्हें टीवी पर देखकर जिन्होंने कभी बेट तक नहीं पकड़ा, बॉल तक नहीं फेंकी, वे बोलने लगते हैं उसे ऐसा ही ऐसा खेलना चाहिए।
हमारे शुभचिंतक होते हैं कुछ निंदक
डॉ गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि कुछ ऐसे निंदक होते हैं जो हमारे शुभचिंतक होते हैं। वे हमें और निखारने के लिए कुछ न कुछ नई सीख देते रहते हैं। सफल व्यक्ति ऐसे निंदकों से राय लेकर मेरे काम करने का तरीका कैसा है?, मैंने कैसा किया?, और अच्छा मैं क्या कर सकता हूं…, ईर्ष्या-द्वैष रखकर निंदा करने वालों की परवाह किए बिना बाबा तुलसी, कबीर, सूरदास जैसे लोग आगे बढ़ते जाते हैं। चरित्र से बड़ी कोई जीच दुनिया में नहीं होती। इसे संभालकर रखना वाला व्यक्ति ही अपने जीवन में सफलता की ऊंचाई को पाता है।
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