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5 गांवों ने 500 एकड़ जमीन गायों के लिए बचाई: सीहोर का ऐसा क्षेत्र, जहां जंगल में पेड़ काटना तो दूर लकड़ी तोड़ने और उठाने पर भी पाबंदी – Bhopal News

गायों की सुरक्षा को लेकर दावे तो बहुत हैं लेकिन इसकी बानगी सीहोर के खाकर देव और उससे सटे माना, झाड़क्या, चोकी और छतरपुरा गांव में देखने को मिलती है। यहां लोगों ने सरकारी बंदिशों से हटकर अपनी मर्जी से गायों के लिए लड़ाई लड़ी और 500 एकड़ चारनोई भूमि में पट

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दो दशक पहले शुरू की गई लड़ाई आज भी जारी है। यहां जंगल में पेड़ काटना तो दूर लकड़ी तोड़ने और उठाने पर प्रतिबंध है। स्थानीय समुदाय का मानना है कि जंगल के मालिक उनके देवता हैं और उनकी अनुमति के बिना ऐसा करना गलत है।

गोवंश के प्रति लोगों में समर्पण

तत्कालीन कांग्रेस सरकार में साल 2001 में जब इस वन भूमि के पट्टे देने का निर्णय किया था तो स्थानीय लोगों ने विरोध किया। 5 गांवों के लोग बड़ी संख्या में भोपाल पहुंच गए और कड़ा विरोध किया। इसके बाद सरकार ने फैसला बदल दिया था। इस अनोखे गांव का दौरा करने वाले समाजसेवी एमएस मेवाड़ा ने कहा कि स्थानीय समुदाय का गोवंश के प्रति समर्पण एक उदाहरण है। हालांकि इस क्षेत्र में गर्मियों में पानी की समस्या रहती है, सरकार को इसका समाधान करना चाहिए।

किंवंदती : बिना देव अनु​मति लकड़ी काटने पर मौत या बीमारी का भय

स्थानीय निवासी रामविलास, मोतीलाल, लखन कहना है कि कई बार लोगों ने बिना देव अनुमति के पेड़ काट लिए तो कई लोगों की मौत हो गई, कई बीमार पड़ गए। सारा जंगल गो माताओं को समर्पित किया गया है। कई दूसरे पशु-पक्षी भी हैं। सब मिलकर जंगल का संरक्षण करते हैं।

देवस्थान : 800 से 1000 गायें चारे के लिए आती हैं

ब्यौरा-नरसिंहगढ़ रोड पर खाकर देव, माना, झाड़क्या, चोकी और छतरपुरा के बीच ये 500 एकड़ का जंगल स्थित है। आसपास गुर्जर, मीणा और मेवाड़ा समाज के रहवासी हैं। स्थानीय लोग खुद को देवधर्मी समाज का हिस्सा मानते हैं। ये लोग गाय को पूजनीय मानते हैं। इसी जंगल में देवधर्मी समाज की गादी यानी देवस्थान है, जहां मेला भी भरता है। सालों से स्थानीय लोगों ने गायों की चरनोई भूमि वाले जंगल को बचा के रखा है। 5 गावों की लगभग 800 -1000 गायेंं यहां चरने के लिए आती हैं।

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