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Sharadiya Navratri 2024: मैहर, नलखेड़ा, उज्जैन, धार और इंदौर के देवी मंदिरों में माता का आशीर्वाद पाने पहुंच रहे भक्त

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Sharadiya Navratri 2024: उज्जैन में शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर, गढ़कालिका मंदिर, नलखेड़ा के मां बगलामुखी मंदिर, देवास की मां चामुंडा और तुलजा भवानी मंदिर, मैहर की मां शारदा मंदिर और इंदौर के बिजासन माता मंदिर के बनने की पूरी कहानी पढ़‍िए इस खबर में।

By Prashant Pandey

Publish Date: Thu, 03 Oct 2024 08:10:07 AM (IST)

Updated Date: Thu, 03 Oct 2024 08:25:28 AM (IST)

आगर-मालवा जिले के नलखेड़ा में मां बगलामुखी मंदिर है। यहां दर्शन मात्र से मनोकामना पूर्ण होती है।

HighLights

  1. मां शारदा देवी की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी।
  2. उज्जैन में विक्रमादित्य की आराध्य देवी मां गढ़कालिका का मंदिर है।
  3. बिजासन माता मंदिर में नौ स्वरूप पिंडियों के रूप में विराजित हैं।

नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर(Sharadiya Navratri 2024)। आज से शारदीय नवरात्र पर्व की शुरुआत हो गई है। इंदौर सहित मालवा और मध्य प्रदेश में कई प्राचीन देवी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। उज्जैन और मैहर में विराजित शक्ति पीठ और नलखेड़ा की मांग बलगामुखी सहित, शहर में विराजित बिजासन माता के मंदिर में मां का आशीर्वाद पाने भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। जानिए इन प्रमुख देवी मंदिरों के बारे में…

बिजासन माता मंदिर : वैष्णोदेवी की तरह माता की नौ स्वरूप की पिंडियां

वैष्णोदेवी मंदिर कटरा की तरह इंदौर शहर के पश्चिम क्षेत्र स्थित बिजासन माता मंदिर में माता के नौ स्वरूप पिंडियों के रूप में विराजित हैं। एक हजार साल पुराने इतिहास वाले मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1760 में महाराजा शिवाजीराव होलकर ने कराया था। माता को सौभाग्यदायिनी माना जाता है। इसके चलते विवाह के बाद दूर-दूर से नवयुगल दर्शन के लिए आते हैं।

देवास : मां चामुंडा व तुलजा भवानी

देवास स्थित पहाड़ी को मां चामुंडा टेकरी, माता टेकरी और देववासिनी पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। यहां छोटी माता मां चामुंडा और बड़ी माता मां तुलजा भवानी विराजित हैं। मंदिर लगभग 1200 वर्ष पुराना है। नवरात्र में पांच लाख से अधिक भक्त आएंगे। यहां अन्य मंदिर भी हैं, जिनमें कालिका माता मंदिर, हनुमान मंदिर, भैरव बाबा मंदिर, खोखो माता मंदिर और अन्नपूर्णा माता मंदिर शामिल हैं। नवरात्र में देशभर से लाखों भक्त आशीर्वाद लेने आते हैं। मुकेश पुजारी के अनुसार नौ दिनों तक दोनों माता का विशेष शृंगार होता है।

हरसिद्धि मंदिर : महिषासुर मर्दिनी स्वरूप में विराजित

इंदौर के मध्य क्षेत्र स्थित हरसिद्धि मंदिर में स्थापित मूर्ति एक हजार साल प्राचीन है। मंदिर का निर्माण 1766 में देवी अहिल्याबाई होलकर ने कराया था। मराठी शैली में बने मंदिर के सामने दीप स्तंभ हैं और माता का स्वरूप महिषासुर मर्दिनी है। मूर्ति बावड़ी से निकली थी, जो संगमरमर की है। चारभुजाधारी देवी तलवार, त्रिशूल, घंटा और नरमुंड लिए है। पुजारी सुनील शुक्ला के अनुसार घट स्थापना के साथ ही माता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना और नित नवीन शृंगार होगा।

नलखेड़ा : मां बगलामुखी

आगर-मालवा जिले के नलखेड़ा में मां बगलामुखी मंदिर है। यहां दर्शन मात्र से मनोकामना पूर्ण होती है। नौ दिन तक लाखों भक्तों का तांता लगता है। तीन मुख वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर लखुंदर नदी के किनारे है। मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी, बाएं मां सरस्वती हैं। नवरात्र में देश, विदेश से भी भक्त आते हैं। विजय प्राप्ति के लिए यहां तांत्रिक हवन अनुष्ठान किए जाते हैं।

उज्जैन : शक्तिपीठ हरसिद्धि

उज्जैन स्थित शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां माता सती के दाहिनी हाथ की कोहनी गिरी थी। यहां मां हरसिद्धि की मूर्ति पूर्वमुखी होकर श्रीयंत्र पर विराजित है। पीछे माता अन्नपूर्णा, नीचे महाकाली, महालक्ष्मी व सरस्वती विराजित हैं। मान्यता अनुसार मां हरसिद्धि दिन में गुजरात के हर्षद गांव स्थित मंदिर में विराजती हैं तथा रात्रि विश्राम के लिए उज्जैन आती हैं, इसीलिए उज्जैन में इनकी संध्या आरती का विशेष महत्व है।

मैहर : मंदिर की देवी को इसलिए सब पुकारते मां शारदा

सतना के पास मैहर में त्रिकूट की पहाड़ी पर मां शारदा देवी की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। स्थानीय लोगों के अनुसार, अल्हा और उदल, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही जंगलों के बीच इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।

उज्जैन : भैरव पर्वत पर विराजित मां गढ़कालिका

प्राचीन उज्जैन के गढ़ क्षेत्र में भैरव पर्वत पर महाराजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी मां गढ़कालिका का मंदिर है। इस मंदिर को दक्षिण भारतीय परंपरा में सिद्ध पीठ माना गया है। इस मंदिर में मां कालिका मुखमंडल के रूप में विराजित हैं। आसपास महालक्ष्मी व महासरस्वती की मूर्तियां भी हैं। इस मंदिर में आरती व कुमकुम पूजा का विशेष महत्व है। मां गढ़कालिका महाकवि कालिदास की आराध्य देवी भी मानी जाती हैं।

अन्नपूर्णा मंदिर : तीन देवियों के साथ दस महाविद्या के दर्शन

हाथी गेट के लिए ख्यात अन्नपूर्णा रोड स्थित मंदिर का निर्माण 1959 में हुआ था। इसके बाद बने नवीन मंदिर में मां अन्नपूर्णा, मां सरस्वती और मां कालिका की पुन: प्रतिष्ठा 2023 में की गई थी। 81 फीट ऊंचे मंदिर में 51 स्तंभ हैं। अंदर-बाहर 1250 नवीन मूर्तियां हैं। शिखरजी पर गणेश, रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ, अष्ट लक्ष्मी, दस महाविद्या, 64 योगिनी के दर्शन होते हैं।

धार : मां गढ़कालिका

ऊंचे पहाड़ की चोटी पर देवीसागर तालाब के पास पंवार वंश की कुलदेवी मां गढ़कालिका विराजित हैं। यह वास्तुकला का अनूठा उदाहरण है। वर्ष 1770 में यशवंत राव पंवार प्रथम (1736 से 1761) की पत्नी सकवार बाई ने पति की मृत्यु के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया था। उन्होंने यहां सात अन्य मंदिर भी बनवाए। शिखर परमार स्थापत्य शैली का है। मंदिर के सामने सुंदर काले पत्थर की दीपों की शृंखला है।

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