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स्कूल रिकॉर्ड में एक ही समुदाय के दो अलग धर्म: रायसेन के पापड़ा गांव के नट हिंदू, बाकी मुस्लिम; प्रशासन बोला- धर्मांतरण के सबूत नहीं – Madhya Pradesh News

रायसेन जिले के पापड़ा गांव में रहने वाले नट समुदाय के लोगों का धर्मांतरण हुआ ही नहीं है। दरअसल, नट समुदाय के बच्चे जिस सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं वहां उनकी जाति एससी और धर्म हिंदू लिखा गया है। इसकी वजह से ये मामला सुर्खियों में आया है। प्रशासन ने भी

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दरअसल, पिछले दिनों पापड़ा गांव में धर्मांतरण को लेकर शिकायत हुई थी। जिसमें कहा गया था कि नट समुदाय के लोग हिंदू एससी है और उन्होंने मुस्लिम धर्म अपना लिया है। इस शिकायत पर मानव अधिकार आयोग ने भी प्रशासन से रिपोर्ट मांगी थी।

दैनिक भास्कर ने रायसेन के पापड़ा गांव समेत आसपास के गांवों में जाकर नटों के घर्म जाति की पड़ताल की तो पाया कि बाकी गांव के लोगों के सरकारी रिकॉर्ड में ओबीसी मुस्लिम लिखा है। ये हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के रीति-रिवाजों को मानते हैं। आखिर क्या है सच्चाई.. पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट

अब जानिए भास्कर ने अपनी पड़ताल में क्या पाया

नट समुदाय के लोग 70 साल से रह रहे भास्कर की टीम सबसे पहले भोपाल से 100 किमी की दूर गैरतगंज के पापड़ा गांव पहुंची। इसी गांव में धर्मांतरण के मुद्दे पर बहस छिड़ी है। गांव के लोगों से बातचीत में पता चला कि यहां नट समुदाय के 20 घर है जिसमें 22 परिवार रहते हैं। ज्यादातर मकान कच्चे हैं, पीएम आवास योजना में कुछ लोगों के पक्के मकान बने हैं। कोई भी जमीन का मालिक नहीं है। उनके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं।

गांव के 70 साल के बुजुर्ग नरवर गुर्जर बताते हैं कि 70 साल पहले नटों के दो परिवार गांव में आए थे। ये लोग खेल और करतब दिखाकर गुजारा करते थे। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई और अब 22 परिवार हो गए हैं। गुर्जर कहते हैं कि पिछले 30-40 साल से देख रहा हूं अब ये करतब नहीं दिखाते, मजदूरी कर गुजारा करते हैं।

सरपंच ने कहा- कोई धर्म परिवर्तन नहीं हुआ भास्कर की टीम गांव के सरपंच गुलाब सिंह से भी मिली, सरपंच ने धर्म परिवर्तन की बात को सिरे नकार दिया, कहा- ये लोग पहले से ही मुस्लिम है। मैंने जांच करने आए अधिकारियों को भी यही बयान दिया है। कई पीढ़ियों से हमारे साथ रह रहे हैं। गांव में इनका धर्म परिवर्तन कराने कोई बाहरी व्यक्ति नहीं आया है।

सरपंच ने कहा ‘ये दोनों मजहब मानते हैं। नमाज भी पढ़ते हैं और गणेशोत्सव में भी शामिल होते हैं। सरपंच गुलाब सिंह की मां सावित्री बाई कहती हैं इनके यहां किसी की मौत होती है तो उसे दफनाया जाता है। शादियों का मंडप हिंदू रीति-रिवाजों जैसा सजाया जाता है, लेकिन शादी मौलवी कराते हैं। वह बताती है कि पहले नट मंदिर भी जाते थे। पिछले 20-25 साल से इन्होंने मंदिर जाना बंद कर दिया है।

नट समुदाय बोला- ये हमारा गोत्र, जाति नहीं भास्कर की टीम ने इसी गांव के रहने वाले भूरा खां से मिली। उन्होंने बताया कि हम लोग मुस्लिम हैं। एक भी नट हिंदू नहीं है। हमारी शादियां मुस्लिम तौर-तरीके से होती है। किसी की मृत्यु पर उसे जलाया नहीं दफनाया जाता है। हालांकि, हम लोग गांव में रहने वाले हिंदू समुदाय के कार्यक्रमों में भी जाते हैं।

गणेशोत्सव धूमधाम से मनाते हैं। हमारे बच्चे मंदिरों में जाते हैं। नट हमारा गोत्र है, ये जाति नहीं है। भूरा खां ने ये भी बताया कि हमारा तो जाति प्रमाण पत्र ही नही बना है। मैंने खुद तीन बार आवेदन दिया, मगर ये खारिज हो गया। गांव के ही रहने वाले 25 साल के साहिल कहते हैं कि मेरे पिता का नाम बाबू खां और दादाजी का नाम नूर खां है।

दादाजी के इंतकाल के बाद उन्हें गांव में बने कब्रिस्तान में दफनाया गया था। यहां 100 साल पुरानी कब्र हैं।

स्कूल के रिकॉर्ड में लिखा- धर्म हिंदू, जाति एससी स्कूल के रिकॉर्ड में हुई गड़बड़ी की वजह से ये पूरा मामला गर्माया है, इसलिए भास्कर की टीम गांव के सरकारी स्कूल पहुंची। प्राचार्य रघुवीर सिंह रघुवंशी ने बताया कि इस समुदाय के 30 बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। स्कूल के स्कॉलर रजिस्टर में इनकी जाति नट और धर्म हिंदू दर्ज हैं।

जिन लोगों के जाति प्रमाण पत्र बने हैं उसमें एससी वर्ग लिखा है। प्राचार्य ने बताया कि ये रिकॉर्ड स्कूल ही बनाता है। एडमिशन के वक्त हम लोग जब इनके माता-पिता से धर्म पूछते हैं तो वे नट हिंदू बताते हैं, लेकिन नाम मुस्लिम होता है। इस पर जब उनसे पूछा जाता है तो कहते हैं कि उनके नाम ऐसे ही होते हैं।

आसपास के तीन गांवों में नट समुदाय मुस्लिम ओबीसी पापड़ा गांव से सटे तीन गांव बिजौरा, तिनगरा और नयानगर में भी नट समुदाय के लोग रहते हैं। भास्कर की टीम जब इन गांवों में पहुंची तो पता चला कि यहां स्कूल के रिकॉर्ड में सभी का नाम मुस्लिम ओबीसी के रूप में दर्ज है। बिजौरा गांव के सरकारी स्कूल की प्राचार्य रामबती ने बताया कि उनके स्कूल में नट समुदाय के 9 बच्चे पढ़ते हैं। इनकी जाति नट और धर्म इस्लाम लिखा है।

इसी गांव के कल्कि मालवीय ने बताया कि हमारे गांव में 5-7 नट परिवार हैं। मैं पिछले 50 साल से देख रहा हूं ये मुस्लिम रीति-रिवाजों को मानते हैं। नट समुदाय से आने वाले लियाकत अपना जाति प्रमाण पत्र दिखाते हुए कहते हैं कि इस पर ओबीसी-मुस्लिम लिखा है।

भास्कर की टीम तिनगरा और नयानगर भी पहुंची यहां लोगों से बात की तो सभी ने कहा कि वे मुस्लिम ही है। नयानगर के स्कूल में नट समुदाय के 10 बच्चे पढ़ते हैं और तिनगरा में 22 बच्चे। सभी बच्चों के नाम के आगे मुस्लिम-ओबीसी लिखा है। साथ ही इन गांवों में जो जाति प्रमाण पत्र बने हैं उनमें भी ओबीसी- मुस्लिम लिखा है।

नट समुदाय के दूसरे गांवों में बने जाति प्रमाण पत्र में मुस्लिम ओबीसी लिखा है।

नट समुदाय के दूसरे गांवों में बने जाति प्रमाण पत्र में मुस्लिम ओबीसी लिखा है।

एसडीएम बोलीं- धर्मांतरण साबित नहीं हुआ रायसेन एसडीएम पल्लवी वैद्य ने बताया कि मैंने पापड़ा गांव के स्कूल में नट समुदाय के बच्चों के एडमिशन के वक्त के डॉक्यूमेंट देखें। 20 साल पहले 2003 में जो एडमिशन हुए तब भी इनका धर्म हिंदू, जाति नट और वर्ग अनुसूचित जाति लिखा है। मगर, बच्चों के नाम जमशेद, समीर, अमन, परवेज लिखे हैं।

यह ऐसे नाम है जो दोनों ही धर्मों में इस्तेमाल होते हैं। मैंने गांव वालों से बात की तो पता चला कि 50 साल की उम्र के लोग मुस्लिम धर्म के रीति-रिवाजों को फॉलो नहीं करते। वो नहीं जानते कि नमाज कैसे पढ़ते हैं, उन्हें आयत याद नहीं है और न ही रोजा रखते हैं। नई पीढ़ी के 25-30 लोग जरूर ये सब करते हैं।

इनके जब सरकारी दस्तावेज बनना शुरू हुए तो स्कूल के रिकॉर्ड के आधार पर ही बनाए गए, क्योंकि इनके पास न तो जमीन है और नही कोई और दस्तावेज। इसी वजह से इनके नाम के आगे हिंदू- एससी लिखा है। अभी तक जितनी जांच हुई है उससे धर्मांतरण साबित नहीं होता है।

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