दीपावली के अगले दिन मध्य प्रदेश के गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध होता है। यह सालों पुरानी परंपरा आज भी जारी है। गौतमपुरा नगर के रलायता रोड स्थित खारचा क्षेत्र में गौतमपुरा और रुणजी के तुर्रा और कलंगी दलों के बीच में युद्ध होगा। टीवी चैनलों पर इसका सीधा प्रसारण किया जाता है।
By Arvind Dubey
Publish Date: Fri, 01 Nov 2024 08:32:07 AM (IST)
Updated Date: Fri, 01 Nov 2024 08:32:07 AM (IST)
HighLights
- सुरक्षा के लिए तैनात रहेंगे 200 से अधिक पुलिसकर्मी
- फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस व चिकित्सकों की टीम भी रहेगी
- शाम 5 बजे से शुरू होगा आयोजन, दर्शक भी रहेंगे
नईदुनिया, गौतमपुरा। युद्ध की वर्षों पुरानी परंपरा निभाने के लिए इस बार भी गौतमपुरा के दोनों दलों के योद्धा तैयार हो चुके हैं। विश्व प्रसिद्ध हिंगोट युद्ध के लिए प्रशासन भी तैयारी में जुट चुका है। साथ ही युद्ध में शस्त्रों की तरह उपयोग होने वाले हिंगोट का भी ढेर लग चुका है।
1 नवंबर को गौतमपुरा नगर के रलायता रोड स्थित खारचा क्षेत्र में गौतमपुरा और रुणजी के तुर्रा और कलंगी दलों के बीच में युद्ध होगा। हर बार की तरह इस वर्ष भी बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात रहेगा।
इसमें सुरक्षा के लिए और दर्शकों की व्यवस्था संभालने के लिए 200 से अधिक पुलिसकर्मी, युद्ध में घायल होने वाले योद्धाओं के लिए एंबुलेंस और चिकित्सकों की टीम भी मौजूद रहेगी।
वहीं आगजनी की घटना से बचाव के लिए फायर ब्रिगेड, फायर एक्सटिंग्यूशर और रेती सहित अन्य संसाधन भी रहेंगे।
असमंजस था, फिर तय हुई 1 नवंबर की तारीख
- परंपरा निभाते हुए इस साल भी गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध होगा। इस वर्ष दीपावली की दो तिथियां होने के कारण असमंजस था। स्थानीय लोगों ने इस युद्ध को 1 नवंबर को करने का निर्णय ले लिया है।
- दीपावली के दूसरे दिन यानी धोक पडवा पर हिंगोट युद्ध (अग्निबाण) का खतरनाक किंतु रोमांचक आयोजन होता है। इस वर्ष भी युद्ध शाम 5 बजे आरंभ होगा और 7 बजे समाप्त होगा।
- युद्ध को देखने के लिए दूर-दूर से दर्शक भी गौतमपुरा पहुंचते हैं। दर्शकों के देखने के लिए अलग से क्षेत्र बनाया जाता है। साथ ही हिंगोट कहीं दर्शकों को न लगे इसके लिए जालियां भी लगाई जा रही हैं।
मुगलों के आक्रमण से बचने के लिए चलाते थे हिंगोट
यह युद्ध मुगलों के आक्रमण से बचाव के लिए नगर वासियों और आसपास के क्षेत्र वालों ने प्रारंभ किया था। चंबल नदी की घाटियों से जब मुगल आक्रमण करते तो हिंगोट चलाकर उन्हें घोड़े से गिरा कर नगरवासी उन्हें मार देते थे, और हमला विफल हो जाता था।
स्थानीय हिंगोरिया फल और अरंडी की लकड़ी के कोयले आदि से बनने वाले इस अग्निबाण को चलाने के लिए युद्ध के पूर्व अभ्यास किया जाता था जिसे देखने हजारों लोग उमड़ते थे। इसकी शुरुआत भगवान देवनारायण के दर्शन के बाद होती है।
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