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Siyaram Baba Passes Away: हनुमान जी के परम भक्त, जीवनभर करते रहे रामायण पाठ… मौसम कैसा भी हो लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहना

खरगोन में संत सियाराम बाबा (Siyaram Baba) ने बुधवार सुबह अपनी देह त्याग दी। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के योग में प्रभु मिलन हुआ । पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। इलाज के दौरान भी वे लगातार रामायण का पाठ कर रहे थे। निधन की सूचना के बाद भक्त उनके अंतिम दर्शन करने भट्टयान बुजुर्ग आश्रम (Sant Siyaram Baba Aashram Bhattyan) पहुंच रहे हैं।

By Prashant Pandey

Publish Date: Wed, 11 Dec 2024 09:05:35 AM (IST)

Updated Date: Wed, 11 Dec 2024 11:03:54 AM (IST)

खरगोन के संत सियाराम बाबा।

HighLights

  1. सियाराम बाबा इलाज के दौरान भी करते रहे रामायण का पाठ।
  2. बड़ी संख्या में भक्त उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।
  3. सियाराम बाबा का अंतिम संस्कार शाम 4 बजे आश्रम के पास होगा।

खरगोन(Siyaram Baba)। नर्मदा तट स्थित भट्टयान बुजुर्ग में संत सियाराम बाबा 95 वर्ष का बुधवार मोक्षदा एकादशी पर सुबह 6.10 मिनट पर प्रभुमिलन हो गया है। आज गीता जयंती भी है। उनका अंतिम संस्कार शाम 4 बजे आश्रम के पास किया जाएगा। बाबा पिछले 10 दिन से बीमार थे।

इंदौर के डॉक्टरों ने भी उनका इलाज किया था। मूलतः गुजरात के बाबा यहां कई सालों से नर्मदा भक्ति कर रहे थे। अंतिम संस्कार में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भी शामिल हो सकते हैं।

आश्रम में सियाराम बाबा के अंतिम दर्शन को लोगों की भीड़ लगी है। कुछ दिनों पहले बाबा को निमोनिया की शिकायत पर सनावद के निजी अस्पताल में भर्ती किया था। इसके बाद बाबा की इच्छानुसार उनका आश्रम में ही जिला चिकित्सालय और कसरावद के डॉक्टर भी इलाज कर रहे थे।

बाबा लगातार करते थे रामायण पाठ

सियाराम बाबा अपनी दिनचर्या में लगातार रामायण पाठ करते रहते थे। भक्तों के अनुसार वे 21 घंटों तक रामायण का पाठ करते थे। 95 साल की आयु में उन्हें चश्मा भी नहीं लगा था। भक्तों के अनुसार उन्होंने सियाराम बाबा को हमेशा लंगोट में ही देखा है। सर्दी, गर्मी या बरसात वे लंगोट के अलावा कोई कपड़े नहीं पहनते थे।

गुजरात के भावनगर से आए थे

बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर में हुआ था। 17 साल की उम्र में उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का फैसला किया था। उन्होंने कई सालों तक गुरु के साथ पढ़ाई की और तीर्थ भ्रमण किया। वे 1962 में भट्याण आए थे।

यहां उन्होंने एक पेड़ के नीचे मौन रहकर कठोर तपस्या की। जब उनकी साधना पूरी हुई तो उन्होंने ‘सियाराम’ का उच्चारण किया, जिसके बाद से ही वे सियाराम बाबा के नाम से जाने जाते हैं। वे भगवान हनुमान के परम भक्त हैं।

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ऐसी थी बाबा की दिनचर्या

आश्रम पर मौजूद अन्य सेवादारों ने बताया कि उनकी दिनचर्या भगवान राम व मां नर्मदा की भक्ति से शुरू होकर यही खत्म होती थी। बाबा प्रतिदिन रामायण पाठ का पाठ करते और आश्रम पर आने वाले श्रद्धालुओं को स्वयं के हाथों से बनी चाय प्रसादी के रूप में वितरित करते थे।

समीपस्थ ग्राम सामेड़ा के रामेश्वर सिसोदिया ने बताया कि बाबा की वर्तमान आयु लगभग 95 वर्ष है। बाबा के लिए गांव से पांच छह घरों से भोजन का टिफिन आता था, जिसे बाबा एक पात्र में मिलाकर लेते थे। खुद की जरूरत के अनुसार भोजन निकाल कर बचा भोजन पशु-पक्षियों में वितरित कर देते थे।

मंदिरों में दान किए करोड़ों रुपये

ग्राम भट्टयाण के सरपंच भूराजी बिरले ने बताया कि बाबा प्रत्येक श्रद्धालु से मात्र 10 रुपये दान स्वरूप लेते थे। बाबा ने आश्रम के प्रभावित डूब क्षेत्र हिस्से के मिले मुआवजे के दो करोड़ 58 लाख रुपये क्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान नागलवाड़ी मंदिर में दान किए थे।

वही लगभग 20 लाख रुपये व चांदी का छत्र जाम घाट स्थित पार्वती माता मंदिर में दान किया। आश्रम से नर्मदा तक बनाया घाट भी सियाराम बाबा ने लगभग एक करोड़ रुपये की लागत से बनवाया था।

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