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अमेरिका में कैसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव? जानें, पूरी प्रोस

US Presidential Elections 2024: दुनिया की निगाह अमेरिका में 5 नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर टिकी है. अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव लोगों की ओर से सीधी वोटिंग के जरिए होता है तो ऐसा नहीं है. 2016 में हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप से करीब 28,00,000 अधिक डायरेक्ट पॉपुलर वोट हासिल किए थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 2000 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अल गोर को हराया. 

न्यूज एजेंसी ‘आईएएनएस’ के मुताबिक, हालांकि, डेमोक्रेटिक उम्मीदवार गोर ने पांच लाख से अधिक मतों से पॉपुलर वोट जीता था. ऐसा इलेक्टोरल कॉलेज की वजह से हुआ था. यह यूएस प्रेसिडेंट चुनाव की एक अनूठी प्रणाली है, जिसकी वजह से नतीजे सीधे पॉपुलर वोट से तय नहीं होते हैं. पॉपुलर वोट देश भर के नागरिकों की ओर से डाले गए व्यक्तिगत वोटों की कुल संख्या को कहते हैं. यह लोगों की प्रत्यक्ष पसंद को दर्शाता है, जहां हर वोट को समान रूप से गिना जाता है. 

क्या है इलेक्टोरल कॉलेज?

अब बात करते हैं इलेक्टोरल कॉलेज की. 5 नवंबर को अमेरिकी वोटर्स डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस या रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप के लिए वोट करेंगे, लेकिन वे वोट सीधे तौर पर यह निर्धारित नहीं करेंगे की कौन जीतेगा. अमेरिकी जब वोट देते हैं तो वे वास्तव में उन इलेक्टर के ग्रुप के लिए वोट कर रहे होते हैं, जो उनकी पसंद का प्रतिनिधित्व करेंगे. ये इलेक्टर फिर अपने राज्य के भीतर लोकप्रिय वोट के आधार पर राष्ट्रपति के लिए वोट करते हैं.

जीतने के लिए 270 वोट की जरूरत

यूएस प्रेसिडेंशियल चुनाव राष्ट्रीय मुकाबले की जगह पर राज्य-दर-राज्य मुकाबला है. 50 राज्यों में से किसी एक में जीत का मतलब है कि उम्मीदवार को सभी तथाकथित इलेक्टोरल कॉलेज वोट मिल गए. कुल 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हैं. राष्ट्रपति पद जीतने के लिए उम्मीदवार को बहुमत – 270 या उससे ज्यादा हासिल करने की जरूरत होती है. उनका साथी उप-राष्ट्रपति बनता है. यही वजह है कि किसी उम्मीदवार के लिए पूरे देश में कम वोट हासिल होने पर भी राष्ट्रपति बनना संभव है अगर वह इलेक्टोरल कॉलेज बहुमत हासिल कर ले. प्रत्येक राज्य को एक निश्चित संख्या में इलेक्टर मिलते हैं. इलेक्टर यानी वो लोग जो इलेक्टोरल कॉलेज में वोट करते हैं. प्रत्येक राज्य में इलेक्टर संख्या मोटे तौर पर उसकी जनसंख्या के आधार के अनुरूप होती है. 

उम्मीदवार को कैसे मिलक हैं सभी इलेक्टोरल वोट

उदाहरण के लिए सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया की बात करें तो यहां 55 इलेक्टोरल वोट हैं, जबकि व्योमिंग जैसे छोटे राज्य में केवल 3 हैं. अगर कोई उम्मीदवार किसी राज्य में पॉपुलर वोट जीतता है तो उसे आमतौर पर सभी इलेक्टोरल वोट भी मिल जाते हैं. उदाहरण के लिए, 2020 में जो बाइडेन ने कैलिफोर्निया जीता, इसलिए कैलिफोर्निया के सभी 55 इलेक्टोरल वोट उनके खाते में गए. हालांकि, हर बार ऐसा नहीं होता. यदि कोई इलेक्टर अपने राज्य के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के खिलाफ वोट करता है तो उसे ‘विश्वासघाती या फेथलेस’ कहा जाता है.

फेथलेस इलेक्टर पर लग सकता है जुर्माना 

कुछ राज्यों में ‘फेथलेस इलेक्टर’ पर जुर्माना लगाया जा सकता है या उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है. अगर कोई भी उम्मीदवार बहुमत हासिल नहीं कर पाता तो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (अमेरिकी सांसद का निचला सदन), राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए वोट करता है. ऐसा सिर्फ एक बार 1824 में हुआ है, जब चार उम्मीदवारों में इलेक्टोरल कॉलेज वोट बंट गए था, जिससे उनमें से किसी एक को भी बहुमत नहीं मिल पाया था. 

प्रत्याशी को पूरे देश में यात्रा करने की जरूरत नहीं होती 

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के मौजूदा प्रभुत्व को देखते हुए आज ऐसा होने की संभावना बहुत कम है. इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम अमेरिकी चुनाव की सबसे विवादास्पद व्यवस्था है. हालांकि, इसके समर्थक इसके कुछ फायदे गिनाते हैं, जैसे छोटे राज्य उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण बने रहते हैं. उम्मीदवारों को पूरे देश की यात्रा करने की जरूरत नहीं होती है और प्रमुख राज्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं आदि, जबकि इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम के विरोधी तर्क देते हैं कि इस व्यवस्था के तहत लोकप्रिय वोट जीतने वाला चुनाव हार सकता है. 

कुछ मतदाताओं को लगता है कि उनके व्यक्तिगत वोट का कोई महत्व नहीं है. बहुत ज्यादा शक्ति तथाकथित ‘स्विंग स्टेट्स’ में रहती है. स्विंग स्टेट उन राज्यों को कहा जाता है जहां चुनाव किसी भी पक्ष में जा सकता है. प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में पूरा जोर इन्हीं ‘स्विंग स्टेट्स’ पर होता है.

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