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अवैध मदरसे में कब्रिस्तान का बैनर लगाया: 12वीं पास प्रिंसिपल बोला- बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते थे; अफसरों ने कहा- हाफिज बनना चाहते थे – Madhya Pradesh News

रतलाम के जिस उमट पालिया गांव में अवैध मदरसा पाया गया था, वहां अब न तो बच्चे हैं और न ही शिक्षक। 25 जनवरी को बाल अधिकार संरक्षण आयोग के यहां निरीक्षण करने के बाद से शिक्षक और बच्चे नदारद हैं। यहां रातोंरात मदरसे की जगह कब्रिस्तान का बैनर लगा दिया गया

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आयोग का कहना है कि यहां अवैध तरीके से आवासीय मदरसा चल रहा था। बच्चे बोलते थे कि हम हाफिज बनना चाहते हैं, जन्नत चाहिए। वहीं, मदरसे के प्राचार्य का दावा है कि मजहबी तालीम के अलावा बच्चों को हिंदी-अंग्रेजी भी सिखाते थे। कई बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलते हैं।

क्या वाकई इस स्कूल में बच्चों को कट्‌टरता का पाठ पढ़ाया जाता था, मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे कहां गए, बाल संरक्षण अधिकार आयोग की रिपोर्ट पर प्रशासन ने अब तक क्या किया, पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट…

जहां पहले मदरसा था, वहां अब कब्रिस्तान का बैनर लगा दिया गया है।

बाल आयोग के अध्यक्ष पहुंचे तो ताला मिला जावरा तहसील से करीब 4 किमी पहले ही मुख्य मार्ग पर बने मदरसे के मेन गेट पर ताला लगा है। टीम ने पड़ोसियों से मदरसे के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्होंने इसके बारे में कोई भी जानकारी होने से इनकार कर दिया।

दोपहर करीब 2 बजे पुलिस की एक गाड़ी पहुंची। उससे एक एएसआई नीचे उतरे। बात करने पर उन्होंने बताया कि आज यहां दोबारा निरीक्षण के लिए बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम आ रही है। उन्हीं के बुलाने पर हम यहां आए हैं।

इसके बाद शिक्षा विभाग से जुड़े संकुल स्तर के 4 अधिकारी यहां पहुंचे। कुछ ही देर में बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रतलाम समिति के अध्यक्ष भी पहुंच गए। इतने में ही एक व्यक्ति आया और उसने मदरसे का मुख्य द्वार खोला। उससे पूछताछ की तो उसने कहा कि मदरसा चलाने वाले यहां नहीं हैं। वो दो तीन दिन पहले ही यहां से चले गए हैं। मुझे ये चाबी सौंपकर गए हैं।

उसने बताया- मैं पड़ोस में ही रहता हूं। इससे ज्यादा जानकारी नहीं है। मैं बाहर रहता हूं। 4-5 दिन पहले ही यहां आया हूं। इतने में ही एक अन्य व्यक्ति आया उसने कहा- मदरसे के प्रिंसिपल यहीं पर हैं। मैं उनको बुलाकर लाता हूं।

मदरसे से रातोंरात सारा सामान गायब मदरसे में पहुंचने पर मुख्य द्वार और मदरसे की बिल्डिंग में ऊपर की तरफ देखा तो वहां एक नया बोर्ड लगा हुआ था। समिति के सदस्यों और कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि ये बोर्ड रातोंरात लगा है। पहले यहां कोई बोर्ड नहीं था।

जो नया बोर्ड लगा है, उस पर लिखा था- कब्रिस्तान अताए रसूल, अहले सुन्नत वल जमात। जबकि पहले यहां मदरसा था, जिसका नाम फैजाना अताए रसूल था।

मदरसे के क्लासरूम भी पूरी तरह खाली कर दिए गए हैं।

मदरसे के क्लासरूम भी पूरी तरह खाली कर दिए गए हैं।

प्रिंसिपल की नेमप्लेट हटी, ऑफिस खाली मदरसे की बाउंड्री के अंदर कुछ सामान बिखरा रखा हुआ था जिसमें टेबल, सोफा और कुछ किताबें थीं। सभी किताबें उर्दू भाषा की थीं। मदरसे के अंदर कुछ क्लासरूम बने हुए थे। साथ ही प्रिंसिपल का ऑफिस बना हुआ था। ऑफिस के मुख्यद्वार से प्रिंसिपल की नेम प्लेट हटी हुई थी। ऑफिस में कोई सामान नहीं था।

सभी क्लासरूम भी पूरी तरह खाली पड़े हुए थे। क्लासरूम में लगे सभी तरह के पोस्टर, बैनर हटा लिए गए हैं। ब्लैक बोर्ड भी हटा लिए गए हैं। पूरा मदरसा खाली पड़ा है, जबकि निरीक्षण की कार्रवाई के दिन यहां सबकुछ मौजूद था। बच्चों के बिस्तर भी रखे हुए थे।

अंदर और बाहर दोनों तरफ से कब्रिस्तान का रास्ता मदरसे के दाहिने हिस्से से किचन की तरफ जाने का रास्ता है। साइड में ही पीने के पानी वाली मशीन लगी हुई है। एक बड़ी पानी की टंकी रखी हुई है। बगल में ही 4 टॉयलेट और 4 बाथरूम बने हुए हैं। अगे बढ़ने पर पीछे की तरफ एक बड़ा सा स्पेस दिखाई दे रहा है जो किचन से लगा हुआ है। यहां बच्चों और स्टाफ के लिए खाना बनता था और वो इसी स्पेस में बैठ कर खाया करते थे।

इसके ठीक पीछे एक बड़ा सा कब्रिस्तान बना हुआ है। कब्रिस्तान जाने के लिए मदरसे के अंदर और बाहर दोनों तरफ से रास्ता है।

कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए मदरसे के अंदर और बाहर दोनों ओर से रास्ता है।

कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए मदरसे के अंदर और बाहर दोनों ओर से रास्ता है।

प्रिंसिपल ने कहा-बैनर खराब हो गए ताे नए लगाए बिल्डिंग के ऊपर वाले हिस्से में एक बड़े हॉल के साथ 4 कमरे बने हुए हैं। जहां बच्चों के ठहरने की व्यवस्था थी। वहां बच्चों को कुरान की तालीम दी जाती थी। मदरसे के अंदर भी कुछ नए पोस्टर लगाए गए हैं। इनमें एक कमरे के बाहर मुसाफिरखाना लिखा है। बाकी कुछ साइन बोर्ड लगाए गए हैं, जो एकदम फ्रेश हैं। हम मदरसे को देख ही रहे थे कि वहां प्रिंसिपल मोहम्मद शोएब और उनके साथ 2 अन्य लोग पहुंचे।

प्रिंसिपल से कहा गया कि ये कब्रिस्तान के बैनर नए लगाए गए लगते हैं तो उन्होंने कहा कि हां पहले के बैनर खराब हो गए थे तो नए लगाए हैं। यहां कब्रिस्तान ही है। उनसे पूछा कि यहां कब्रिस्तान है तो इस जमीन पर भवन का निर्माण कैसे हुआ, तो ये जवाब मिला-

मदरसा बंद करने के लिए कहा तो हमने कर दिया अब्दुल रशीद का नंबर लेकर हमने उन्हें कई कॉल किए, लेकिन फोन कनेक्ट नहीं हुआ। इसके बाद हमने प्रिंसिपल से सवाल-जवाब किए।​​​​​​​

प्रिंसिपल ने कहा कि 27 जनवरी को बाल अधिकार संरक्षण आयोग की मैडम आईं। हमसे कहा कि स्कूल बंद करो, तो हमने स्कूल बंद कर दिया। बच्चों को उनके माता-पिता के सुपुर्द कर दिया। सभी बच्चे यहीं आसपास के थे। सिर्फ दो बच्चे राजस्थान के थे। सभी टीचर्स भी अपने घर चले गए हैं। एक टीचर झारखंड और बाकी दो टीचर यूपी के थे। मैं भी बदायूं यूपी का हूं।

समिति ने हमें यहां रखा था। मैं प्रिंसिपल के पद पर हूं। कहीं नहीं भागा हूं। यूपी के दो अन्य टीचर मुनाजिर खान निवासी मुरादाबाद और अब्दुल अलीम निवासी रामपुर हैं। झारखंड के शिक्षक का नाम शहजाद खान है। मैं इंटर पास हूं। बाकी टीचर कहां तक पढ़े थे, उसकी जानकारी मुझे नहीं है। वो ही बता पाएंगे।

कह दिया कि बच्चों का एडमिशन दूसरे स्कूल में करा लें हमने बच्चों को उनके घर भेजने के बाद मां-बाप से कह दिया है कि वो अपने बच्चों का एडमिशन किसी दूसरे स्कूल में करा लें। हमारे मदरसे की मान्यता 2021 में खत्म हो गई थी। हमने दो बार मान्यता रिन्यू करने के लिए आग्रह भी किया था, लेकिन पिछले दो साल से मदरसा बोर्ड का पोर्टल बंद है, इसलिए मान्यता नहीं ले पाए। तब से हम यहां बस ट्यूशन पढ़ाने का काम कर रहे हैं। ये आवासीय नहीं था।

जबकि दैनिक भास्कर टीम के हाथों कुछ विजुअल लगे हैं, जिनमें बच्चों के सोने के लिए मदरसे में कई गद्दे रखे हुए हैं। प्रिंसिपल का कहना है कि ये उनके स्टाफ के लिए थे।

बाल संरक्षण अधिकार आयोग ने जब पहली बार निरीक्षण किया तो यहां गद्दे भी मिले थे।

बाल संरक्षण अधिकार आयोग ने जब पहली बार निरीक्षण किया तो यहां गद्दे भी मिले थे।

प्रिंसिपल ने स्वीकारा कि मदरसा आवासीय था इससे पहले कार्रवाई के तुरंत बाद का प्रिसिंपल का एक अन्य वीडियो सामने आया, जिसमें वो बता रहा है कि मदरसे का नाम फैजाना अताए रसूल है। मैं यहां का नाजिम हूं। मैं यूपी बदायूं का रहने वाला हूं। परमिशन को लेकर प्रिंसिपल ने कहा कि हमने आवेदन दिया था। मदरसा का पोर्टल बंद है इसलिए परमिशन नहीं हो पाई। इसके अलावा पढ़ाते तो सभी हैं। हमारे बच्चे अंग्रेजी, हिंदी सब पढ़ते हैं। कुछ तो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। हम उनको स्कूली शिक्षा दे रहे थे। हमारे पास ज्यादातर बच्चे लोकल के हैं। कुछ बच्चों का अन्य स्कूलों में एडमिशन है। वो सुबह आते थे और शाम को चले जाते थे। बाहर के बच्चे कम ही थे।

हमारे पास कुल 72 बच्चे थे। जो रतलाम और जावरा के बच्चे थे, वो आते थे और चले जाते थे। एक बच्चा चित्तौड़गढ़ का था। उसका जल्दबाजी में एडमीशन हुआ था। उसका कोई परिजन नहीं था। उन्होंने मदरसा बंद करने के लिए कहा तो हमने बंद कर दिया। हमने बच्चों की सभी डिटेल्स भी बाल अधिकार वालों को दे दी है। अब हम आवासीय मदरसे के लिए पहले सरकार से परमिशन मांगेंगे। सरकार अनुमति नहीं देती है तो बंद कर देंगे।

बच्चे बोले- मदरसे में इज्र करेंगे, घर से जन्नत नहीं मिलेगी बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य निवेदिता शर्मा ने बताया कि मैंने जितने भी बच्चों की फाइल देखीं, उनमें पांचवीं तक की मार्कशीट लगी हुई थी। कुछ बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़े हुए थे। एक मासूम बच्चा तो ऐसा था कि शायद उसकी मां दूसरा निकाह कर रही थी तो उसके नानी ने उस बच्चे को यहां डाल दिया।

मैंने कुछ बच्चों से पूछा कि आप लोग इतने अच्छे स्कूलों में पढ़ते थे, तो यहां क्यों आ गए… उनका जवाब था इज़्र करने के लिए। मैने उनसे पूछा ये इज़्र क्या होता है? जवाब मिला- कुरान को रटना, सीखना। मैंने कहा ये तो घर पर भी हो सकता है। बोले- नहीं वहां से जन्नत नहीं मिलेगी। फिर मैंने पूछा- मुझे जन्नत मिलेगी कि नहीं, तो बोले-नहीं। आप हमारे धर्म की नहीं हैं।

मैंने उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम का नाम लेकर समझाया कि जन्नत तो बाद की बात है, जमीन पर हमको कैसे और क्या करना चाहिए ये मायने रखता है। उनका जवाब था- जमीन पर तो कुछ है ही नहीं। हमें हाफिज बनना है।

किताबों में जाे बच्चों की तस्वीर, वो भी टोपी और कुर्ते-पाजामे में निवेदिता शर्मा ने आगे बताया कि दावते इस्लामे हिंद के सिलेबस की किताबें देखने में तो सामान्य लगेंगी। वो उर्दू में लिखी हुई हैं, लेकिन जब आप उनको खोल कर देखेंगे तो उनमें बॉडी पार्ट को जिस तरीके से पढ़ाया जा रहा है वो अपने आप में बेहद चिंताजनक है।

सामान्य बायोलॉजी की किताब में एक ह्यूमन शेप बना होता है और उसमें बॉडी पार्ट्स पढ़ाए जाते हैं, लेकिन उनकी किताब में बच्चों की जो तस्वीर बनी है, उसमें वो कुर्ता-पैजामा और जूते पहने हुए हैं, लेकिन उनके सिर पर टोपी लगी हुई है।

इसका मतलब क्या हुआ कि दुनिया में और कोई दूसरी टाइप की ह्यूमन बॉडी अस्तित्व में ही नहीं है? अगर आप उन बच्चों को पढ़ाएंगे की रसूल एक अच्छा बालक है। वो रोज मदरसा जाता है, इबादत करता है, तो इसका मतलब क्या हुआ? जो बच्चे मदरसा नहीं जाते हों वो अच्छे नहीं हुए? किताबों में बच्चों के जितने शेप बनाए गए हैं, सबमें बच्चा टोपी पहने हुए है। बच्ची हिजाब पहने हुए है।

बच्चों को जन गण मन तक नहीं सिखाया गया हम ये नहीं कह रहे कि बच्चा धर्म के बारे में ना सीखे। हर धर्म के लोगों को आजादी है कि अपने बच्चों को धर्म-संस्कार सिखाएं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि बच्चा सिर्फ वही सीखे। उसे सामान्य सीख से वंचित कर दिया जाए, कट्टरता का पाठ पढ़ाया जाए। उनको जन गण मन तक नहीं सिखाया गया है। हमने उन्हें कहा तब वो राष्ट्रगान के लिए खड़े हुए। वो बच्चे बड़े हो गए हैं। वहां 12 से 18 साल तक के बच्चे थे। अब मुझे नहीं लगता कि उनको बदला जा सकता है।

अब उनको सामान्य सोच वाला बनाना मुश्किल काम है। वहां सभी शिक्षक यूपी, झारखंड के हैं। पुलिस ने उनका वेरिफिकेशन नहीं किया। किया होता तो पहले ही पूरा मामला सामने आ जाता। 2021 से आवासीय मदरसा अवैध तरीके से चल रहा है। प्रशासन सो रहा है।

कलेक्टर के निर्देश पर दोबारा निरीक्षण के लिए पहुंची थी टीम बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अवैध मदरसे का निरीक्षण करने के बाद शिक्षा विभाग और कलेक्टर को तमाम दस्तावेज और कार्रवाई को लेकर एक प्रतिवेदन भी सौंपा था।

आयोग ने जांच के बाद ये बिंदु सामने रखे

  • मध्य प्रदेश मदरसा बोर्ड की अनुमति/मान्यता के बिना मदरसा चलाना नियम विरुद्ध है।
  • मदरसे में रह रहे बालकों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • यहां रह रहे बच्चों की काउंसलिंग की जानी आवश्यक है।
  • दस्तावेजों की जांच कर बच्चों के मूल निवासी, माता-पिता, प्रवेश वर्ष, अंतिम कक्षा और उसका वर्ष, प्रवेश कराने के सहमति पत्र की जानकारी आयोग को उपलब्ध कराई जाए।
  • 2017 से 2021 तक की शिक्षा विभाग के सक्षम अधिकारी के निरीक्षण रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराई जाई।
  • मदरसे के कर्मचारियों की जांच की जाए। पुलिस वेरिफिकेशन किया जाए।
  • मदरसा आवासीय था तो इसकी जांच क्यों नहीं की गई? इसके लिए जो भी सक्षम अधिकारी जिम्मेदार है, उसके विरुद्ध जांच कर कार्रवाई की जाए।
  • मदरसे को मिलने वाले अनुदान और आय-व्यय की जांच कर रिपोर्ट उपलब्ध कराई जाए।
  • मदरसे में लगे कैमरों का डीवीआर जब्त कर जांच की जाए, जिससे पुष्टि की जा सके कि मदरसे में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा-75 का उल्लघंन तो नहीं हुआ।

जांच रिपोर्ट के बाद प्रशासन ने कमेटी को नोटिस दिया प्रशासन ने मदरसे की इमारत को अतिक्रमण बताते हुए जवाब पेश करने के लिए कमेटी को नोटिस जारी किया है। बाल अधिकार संरक्षण आयोग का प्रतिवेदन मिलने के बाद कलेक्टर राजेश बाथम ने जांच के लिए टीम बना दी है। टीम में एसडीएम, जिला शिक्षा अधिकारी, एसडीओपी को शामिल किया गया है। टीम को जल्द जांच कर रिपोर्ट देने को कहा गया है।

मदरसे के सबूत मिटा दिए, गोलमोल जवाब दे रहे दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर पाया कि फिलहाल मदरसे को सील नहीं किया गया है। वहां मदरसे से संबंधित लोग लगातार आ और जा रहे हैं।

कलेक्टर के निर्देश पर 9 दिन बाद मदरसे का निरीक्षण करने आयोग की जिला स्तरीय बाल कल्याण समिति की टीम दोबारा पहुंची। सीडब्ल्यूसी रतलाम के अध्यक्ष शंभू चौधरी ने कहा कि हम यहां जांच करने आए हैं तो देखा। पूरा मदरसा परिसर खाली पड़ा है। यहां से मदरसा होने के सभी सबूत मिटा दिए गए हैं। जब हम यहां पहली बार आए थे, तो यहां बच्चे थे। उनके यहां रुकने की व्यवस्था का सामान मौजूद था। अब यहां से सब हटा दिया गया है। सभी शिक्षक भी गायब हैं।

प्रिंसिपल से बात हुई तो वो गोलमोल जवाब दे रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें कुछ जानकारी नहीं है। बिना बंद करने के आदेश के उन्होंने मदरसे को बंद कर दिया। उनके पास इसका कोई आदेश भी नहीं है। उन्होंने 27 तारीख से बच्चों को गायब कर दिया है।

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