एरोड्रम क्षेत्र स्थित शंकराचार्य मठ में शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रवचन हुआ। मठ के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने प्रवचन में जीवात्मा और परमात्मा के संबंध पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया।
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उन्होंने बताया कि जीव ने राग-द्वेष के कारण इस जगत को अपनी बुद्धि में धारण कर रखा है। महाराजश्री ने एक प्राचीन श्लोक के माध्यम से समझाया कि जीवात्मा और परमात्मा दो पक्षियों की तरह एक ही वृक्ष (शरीर) पर निवास करते हैं। जहां जीवात्मा कर्मफलों का भोग करता है, वहीं परमात्मा केवल साक्षी बनकर देखता रहता है।
गिरीशानंदजी ने विशेष रूप से जोर देकर कहा कि जो व्यक्ति केवल भगवान की सत्ता को स्वीकार करता है, उसका मन कभी विचलित नहीं होता। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक व्यक्ति भगवान के अलावा दूसरी सत्ता को मानता है, तभी तक मन के विचलित होने की संभावना बनी रहती है।
प्रवचन के अंत में उन्होंने रहीम के दोहे के माध्यम से यह संदेश दिया कि जब हम एक परमात्मा को साधते हैं, तो सब कुछ स्वतः ही सध जाता है। उनका मुख्य संदेश था कि जब सब कुछ भगवान का ही स्वरूप है, तो हम दूसरी सत्ता को मानकर क्यों भटकें?
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