चूरन-चटनी की जगह टेबलेट और कैप्सूल ने ले ली है। दूसरी और महत्वपूर्ण वजह, आयुर्वेद दवाओं का साइड इफेक्ट न होना भी है। एक तरफ बड़े-बड़े मेडिकल कालेज और अस्पताल खुल रहे हैं और लाखों की संख्या में मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
By Anoop Bhargav
Publish Date: Tue, 29 Oct 2024 11:46:22 AM (IST)
Updated Date: Tue, 29 Oct 2024 11:51:55 PM (IST)
HighLights
- दवाओं के दुष्प्रभाव न होने से पहले से ही लोकप्रिय है आयुर्वेद चिकित्सा
- चार साल में दोगुना से अधिक हो गए आयुर्वेद से उपचार कराने वाले
- कोरोना काल के बाद लोगों का बढ़ा है आयुर्वेद पर और अधिक विश्वास
अनूप भार्गव. नईदुनिया ग्वालियर। आरोग्य के प्रणेता भगवान धन्वंतरि की शास्त्रोक्त चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में नवाचारों को अपनाकर दवा कंपनियों और चिकित्सकों ने जनमानस में इसके प्रति के विश्वास बढ़ाया है। ग्वालियर के क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान के आंकड़े बताते हैं कि यहां आयुर्वेद से उपचार कराने वालों की संख्या 2020 से 2024, यानी चार साल में दो गुना से ज्यादा से हो गई है।
चिकित्सक इसकी एक बड़ी वजह, दवाओं के तरीके में बदलाव बताते हैं। चूरन-चटनी की जगह टेबलेट और कैप्सूल ने ले ली है। दूसरी और महत्वपूर्ण वजह, आयुर्वेद दवाओं का साइड इफेक्ट न होना भी है। एक तरफ बड़े-बड़े मेडिकल कालेज और अस्पताल खुल रहे हैं और लाखों की संख्या में मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं वहीं दूसरी तरफ आयुर्वेद भी अपनी जगह मजबूत कर रहा है।
कोरोना के बाद से आयुर्वेद पर बढ़े विश्वास का ही नतीजा है कि ग्वालियर के क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान में पिछले चार साल में एक लाख 25 हजार से मरीजों ने इलाज कराया है और स्वस्थ भी हुए। इस संस्थान में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से विभिन्न बीमारियों का इलाज करने के लिए रोजाना कई विभागों की ओपीडी लगती है, जहां पिछले वर्ष 36 हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते थे, लेकिन इस वर्ष मरीजों की संख्या बढ़कर 42 हजार तक पहुंच गई। इसके पीछे का कारण जटिल बीमारियों का उपचार होना भी है।
कोरोना के बाद यूं बढ़ा आयुर्वेद पर विश्वास
- वर्ष मरीज
- 20-21 20,000
- 21-22 27,000
- 22-23 36,000
- 23-24 42,000
इनके मरीज ज्यादा
- बीमारी मरीज
- संधिवात 2257
- वात व्याधि 2058
- त्वचा 2019
- कमर दर्द 1644
- अर्श रोग 2200
- पेटविकार 1435
- खांसी-जुकाम 2500
परहेज का सुझाव भी कम ही दिया जाता है
आयुर्वेद में एक समय वैद्य चूर्ण देते थे और उसे शहद या पानी में मिलाकर लेना होता था। लेकिन दवाओं के पैटर्न में बदलाव आ गया है। कई कंपनियां आयुर्वेद दवाइयां बना रही है। यह कंपनियां एलोपैथी की तर्ज पर कैप्सूल व टेबलेट उपलब्ध करवा रही है। इससे इन दवाइयों को लेने में कोई दिक्कत नहीं आ रही है। मरीज को भी लगता ही नहीं कि आयुर्वेद दवा ले रहे हैं। वहीं अब आयुर्वेद डॉक्टर बहुत जरूरत होने पर ही परहेज करने का सुझाव देते हैं
अस्पताल की ओपीडी में संधिवात (जोड़ संबंधी रात), वातरोग, उदर (पेट) रोग, चर्म (त्वचा) रोग, ज्वर, कमर दर्द के मरीज सबसे ज्यादा हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि इलाज से इनको लाभ हुआ। इसके साथ ही अनुसंधान संस्थान के विज्ञानी द्वारा किए गए शोध का लाभ भी मरीजों को मिल रहा है।
डा. अनिल मंगल अधिकारी, क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान, ग्वालियर
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