बड़वानी में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के परम शिष्य आचार्यश्री आर्जव सागर महाराज की शिष्या आर्यिका प्रतिभा मति माताजी का संघ सहित सोमवार को प्रवेश हुआ। अंजड़ से आईं माताजी के साथ आर्यिका सुयोग मति और आर्यिका मार्मिक मति भी थीं।
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समाज जनों द्वारा भव्य स्वागत के बाद माताजी ने खंडेलवाल दिगंबर जैन मंदिर में भगवान के दर्शन किए और धर्म सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि बड़वानी के लोग भाग्यशाली हैं जो सिद्ध क्षेत्र के समीप रहते हैं, जहां बिना प्रयास के साधु-संतों के दर्शन और सेवा का पुण्य प्राप्त होता है।
आर्यिका जी ने युवा पीढ़ी को जागरूक करते हुए कहा कि जैसे शरीर और वस्त्रों की सफाई की जाती है, वैसे ही आत्मा की शुद्धि भी आवश्यक है। उन्होंने आत्म-शुद्धि के छह मार्ग बताए – देव पूजा, गुरु उपासना, स्वध्याय, संयम, तप और दान।
धर्म की व्याख्या करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि जैन धर्म कोई जाति नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। जो भी व्यक्ति जिनेन्द्र भगवान के सिद्धांतों का पालन करता है, वह जैन है। पर्युषण पर्व के संदर्भ में उन्होंने बताया कि यह प्रत्येक चार माह में आता है, जो उत्तम क्षमा से प्रारंभ होकर क्षमा से ही समाप्त होता है। उन्होंने श्रद्धालुओं को नियमित रूप से क्षमा याचना कर कषायों को शांत करने का संदेश दिया, जिसके माध्यम से अपनी आत्मा का जलयान कर सकते है और धर्म क्षेत्र में आकर पाप करने से अपना सर्वनाश भी कर सकते है।
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