हम थोड़ी सी भक्ति करते हैं, हमें थोड़ी भी योग्यता आती है भगवान को प्राप्त करने की तो हमें अभिमान हो जाता है। हम मान लेते हैं कि हम तो बहुत बड़े भक्त हो गए, बड़े योग्य हो गए, विद्वान बन गए, बड़े त्यागी-विरक्त बन गए। इस अभिमान के कारण ही हम परमात्मा के अनुभ
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शनिवार को यह बात कही।
प्रभु हमारा अभिमान मिटा दो
महाराजश्री ने कहा कि भगवान को जरा-सा भी अभिमान अच्छा नहीं लगता। इसलिए उनसे प्रार्थना करो- प्रभु हमारा अभिमान मिटा दो, दूर कर दो, मैं आपका कीचड़ में सना हुआ बालक हूं। मैं आपकी गोदी चाहता हूं। माता-पिता के अतिरिक्त संसार में ऐसा कोई भी नहीं होता, जो अपने कीचड़ से सने बालक को धो देता है। वह यह नहीं सोचते कि बालक स्वयं स्नान करके आए तब हम उसे गोद में लेंगे। हे भगवान, मैं शुद्ध नहीं हूं। हमारी अपवित्रता आपको अच्छी नहीं लगती, यदि आप पवित्र नहीं करेंगे तो कौन करेगा? आपको हमें पवित्र करना ही पड़ेगा। हमारे सबकुछ आप ही हैं। आपके अतिरिक्त हमारा और कौन है?
आप हमारा भी उद्धार कर दो
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने रामचरित मानस की चौपाई सुनाई- ‘जौं करनी समुझै प्रभु मोरी, नहीं निस्सार कलप सत कोरी। जन अवगुण प्रभु मान न काऊ, दीनबंधु अति मधुर सुभाऊ’….अर्थात आपके ऐसे मधुर स्वभाव को सुनकर ही आपके सामने आने की हिम्मत होती है। यदि आपकी तरफ देखें तो आपके सामने आने की हिम्मत किसी की भी नहीं होगी। आपने वृत्तासुर, प्रहलाद, विभीषण, सुग्रीव, हनुमान, गजेंद्र, जटायु, तुलाधार वैश्य, धर्म व्याध, कुब्जा, व्रज की गोपियां आदि का उद्धार कर दिया था। यही देखकर हमारी हिम्मत होती है कि आप हमारा भी उद्धार करेंगे। ठीक उसी तरह जैसे लोभी आदमी कीचड़ में पड़े पैसे को भी उठा लेता है। इसी तरह आप भी घूरे-कचरे में पड़े हम जैसों को उठा लेते हैं।
हमारे अवगुणों की तरफ नहीं देखते
महाराजश्री ने कहा कि प्रभु आप थोड़ी-सी भक्ति में भी प्रसन्न हो जाते हो, रीझ जाते हो, क्योंकि आपका स्वभाव ही ऐसा है। रहति न प्रभु चित चूक किए की। करत सुरति सय बार हिए की॥…अगर आपका ऐसा स्वभाव न हो तो आपके निकट आने की हिम्मत की नहीं कर सकते। आप हमारे अवगुणों की तरफ नहीं देखते। आप तो थोड़े से गुण पर भी हमारी तरफ देख लेते हैं। आप हमसे ज्यादा जानते हैं, हम तो आपके सामने मूर्ख हैं, प्रभु हम हमारी शरण में हैं। आपकी कृपा के बिना तो हम आपकी भजन-भक्ति भी नहीं कर सकते।
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