इंदौर की देवी अहिल्याबाई फल और सब्जी थोक मंडी में सोमवार को ऐतिहासिक दिन रहा, जब 8 साल के लंबे अंतराल के बाद लहसुन नीलामी में आढ़त प्रथा की वापसी हुई। इस खास मौके पर किसानों और आढ़तियों ने धूमधाम से जश्न मनाया, ढोल-नगाड़े बजाए और पटाखे फोड़े।
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नई व्यवस्था के तहत, सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक नीलामी का समय निर्धारित किया गया है। सुबह 9 से 11 बजे तक मंडी प्रशासन द्वारा और 11 से दोपहर 1 बजे तक आढ़तियों द्वारा नीलामी की जाती है। पहले दिन की नीलामी में उत्साहजनक प्रतिक्रिया देखी गई, जहां निजी मंडी में 3,500 बोरियों और सरकारी नीलामी में 800 कट्टों की आवक हुई। पुराना लहसुन 10,600 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर बिका।
किसान-व्यापारियों ने लहसुन के ढेरों पर माला-अगरबत्ती लगाकर पूजा की।
किसान लंबे समय से इस प्रथा की वापसी की मांग कर रहे थे और इसके लिए कई बार विरोध प्रदर्शन भी किए। हाल ही में किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। मंडी में करीब 300 आढ़तियों की सक्रिय भागीदारी से व्यापार में नई जान आ गई है।
बिजलपुर के किसान कैलाश पाटीदार और अजय भाटी ने बताया कि इस निर्णय से किसान समुदाय में खुशी की लहर है। शुभ मुहूर्त में लहसुन की पूजा-अर्चना के साथ व्यापार की शुरुआत की गई और मिठाइयां बांटी गईं।
सुबह से ही मंडी में रही भीड़।
आठ सालों से था विवाद, उलझे थे किसान
प्रदेश में लहसुन पर विवाद करीब आठ साल से चल रहा था। किसानों के संगठन के आवेदन पर मप्र मंडी बोर्ड ने 2015 में लहसुन को सब्जी की श्रेणी में शामिल कर लिया था। इससे किसानों को यह छूट मिल गई थी कि वो चाहे तो लहसुन को सरकारी बोली प्रक्रिया में बेचे या चाहे तो सब्जियों के साथ आढ़तियों या व्यापारियों के द्वारा नीलामी करवा दे।
इसके कुछ समय बाद ही कृषि विभाग ने इस आदेश को रद्द कर दिया और कृषि उपज मंडी समिति अधिनियम (1972) का हवाला देकर लहसुन को मसाले की श्रेणी में डाल दिया। 2016 में मंडी व्यापारियों की एसोसिएशन हाई कोर्ट पहुंची। कोर्ट ने 2017 में लहसुन को सब्जी में माना और किसानों की मर्जी से नीलामी की छूट दी।
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