हमारी आजादी को 78 साल हो गए, सत्ता पक्ष को जब लगता है कि हमारे मूल आचार्य हमारे साथ नहीं चल रहे हैं, उनके अनुसार आदेश नहीं दे रहे हैं तो वे नकली आचार्य उपस्थित करते हैं। बहुत से संगठन भी ऐसा करते हैं। हम आचार्यों की एक परंपरा होती है। इसी के तहत आचार
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द्वारका-शारदा पीठाश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंदजी सरस्वती ने शंकराचार्य मठ इंदौर में रविवार को भास्कर से मुलाकात में यह बात कही-
द्वारका-शारदा पीठाश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंदजी सरस्वती
असली पर लागू होने लगता है नकली का व्यवहार
इससे नुकसान यह होता है कि नकली का व्यवहार असली पर लागू होने लगता है। लोगों के मन में यह धारणा बन जाती है कि आचार्य ऐसे होते होंगे। इसलिए नकली आचार्यों का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, जो नीतिज्ञ, हैं शास्त्रज्ञ हैं और जिनका पास सदाचार है, जो धर्म का पालन स्वयं करते हैं और समाज से करवाते है, वही आचार्य के योग्य होते हैं। नकली आचार्यों को रोकने के लिए किसकी शरण में जाएं, अदालत की हालत आप देख ही रहे हैं। जो व्यक्ति केस दायर करता है उसका फैसला उसके नाती को मिलता है। विलंब से न्याय देना भी अन्याय है।
नकलियों का उद्देश्य वास्तव में धनार्जन करना
अखाड़ों का निर्माण, अखाड़ों की परंपरा से होता है। आद्य शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी जो तैयार किए थे, उसी परंपरा में अखाड़े वाले ही इन आचार्यों की नियुक्ति करते हैं। ये उनका विषय है। इन्हें वही रोक सकते हैं। मुश्किल यह है कि समाज और शासन दोनों ही इस मामले में सहमति दे देते हैं। इससे इन लोगों का मनोबल बढ़ जाता है। वे अपना प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। वास्तव में धनार्जन करना ही उनका उद्देश्य है। यदि धर्म प्रचार करना है तो उसके लिए किसी पद की आवश्यकता नहीं है।
चारों शंकराचार्यों की मांग है कि गो माता को राष्ट्रीय घोषित किया जाए
हम सब सनातनी और हिंदू धर्मावलंबी हैं। अब मूल बात यह है कि सनातनी होने का प्रमाण क्या है? मनुष्य तो पूरे विश्व में आठ अरब हैं। इतने लोगों में हिंदू हम किसे कहेंगे? उसका लक्षण चाहिए, हमारे धर्म-शास्त्रों में, हमारे ऋषि-महर्षियों ने कहा है कि गोमाता में जिसकी भक्ति है, जो गो पालन करता है, वो हिंदू है। पुनर्जन्म में जो विश्वास करता है वो हिंदू है। ओंकार मंत्र मूलश्च.. यानी ओंकार जिनका मूल मंत्र है वह हिंदू है। माता-पिता की सेवा जो देवता मानकर करता है, संपत्ति के लिए नहीं वरन कर्तव्य या धर्म मानकर करता है, उसे हिंदू कहते हैं। गोमाता की सेवा करना हिंदू होने का प्रथम लक्षण है। हम सब हिंदू और सनातन धर्मावलंबी हैं, गो पालन होना चाहिए, गो रक्षा भी होनी चाहिए। हम चतुष्पीठ के चारों शंकराचार्यों की यह मांग है कि गोमाता को राष्ट्रीय माता घोषित किया जाना चाहिए।
नगर सीमा में गोमाता के पालन की छूट देनी चाहिए
यदि देश के सबसे स्वच्छ शहर में गोमाता को रखने की अनुमति नहीं है तो यह आदेश वापस लेना चाहिए। गोमाता को रखने से कहीं प्रदूषण नहीं होता है। पर्यावरणविद् और आयुर्वेद से आप बात करेंगे तो न गो मूत्र से न गोबर से, घास से न उसके रहने से कोई प्रदूषण नहीं रहता। हमारे यहां तो यह सिद्ध हुआ है कि गोमाता के रहने से उसके ऊपर हाथ फेरने से कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। तो नगर निगम का गोमाता को नगरीय सीमा से बाहर रखने का आदेश ठीक नहीं है। नगर निगम को चाहिए कि नगर सीमा में गोमाता के पालन की छूट देनी चाहिए।
मूल धर्म, मूल आचार्य और धर्म पालन में मिलावट नहीं होनी चाहिए
चारों पीठों के शंकराचार्यों को मत एक है सिद्धांत एक है, धर्म प्रचार की पद्धति एक है। हमारा उद्देश्य है कि मूल धर्म, मूल आचार्य और धर्म पालन में मिलावट नहीं होनी चाहिए। असली दूध. नकली दूध, असली हिंदू नकली हिंदू, असली धर्म का पालन करने वाले नकली धर्म का पालन करने वाले इनमें कोई मिलावट नहीं होनी चाहिए। शुद्धता से धर्म का पालन होना चाहिए। हमारी हिंदू राष्ट्र की जो कल्पना है वह सिद्ध होनी चाहिए।
मूर्खों का समुदाय हमारे यहां प्रमाण नहीं हो सकता
हम लोगों को परंपरा का निर्वाह करने के लिए पद स्वीकार करने पड़े। गुरु की आज्ञा से करने पड़े। धर्म सम्राट करपात्रीजी महाराज कहीं के शंकराचार्य नहीं थे, लेकिन पूरे विश्व के साधु-संन्यासी विद्वान उनका सम्मान करते थे। यहां तक कि शंकराचार्य भी उनका सम्मान किया करते थे। यहां तो योग्यता प्रमाण है, पद प्रमाण नहीं है। यहां लोकतंत्र नहीं है, यह सरकारी पद नहीं है कि योग्य-अयोग्य कोई भी पद पर बैठ जाए, कोई भी मंत्री बन जाए, वहां पर बहुमत प्रमाण है, हमारे यहां योग्यता प्रमाण है। मूर्खों का समुदाय हमारे यहां प्रमाण नहीं हो सकता। भले ही चार लोग हों लेकिन वे वेदज्ञ हों, शास्त्रज्ञ हों, एक नेत्रज्ञ एक लाख बिना नेत्र वाले लोगों को नदी पार करवा सकता है लेकिन एक लाख बिना नेत्र वाले एक नेत्रज्ञ को नदी पार नहीं करवा सकते।
वैदिक परंपरा के अनुसार चैत्र से ही मनाना चाहिए नववर्ष
नववर्ष आ रहा है लेकिन हमारा नववर्ष तो चैत्र में आता है। भारत में आजादी के पहले अंग्रेजों की शासन रहा, उनके कैलेंडर से लोग 1 जनवरी को नया वर्ष मनाते हैं लेकिन ये भारतीय परंपरा नहीं है। सनातन और वैदिक परंपरा के अनुसार चैत्र से ही मनाना चाहिए। हम लोग जगह-जगह कह ही रहे हैं कि नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा को ही मनाना चाहिए, इसका काफी प्रचार हो चुका है और लोग इसे मान भी हे हैं, लेकिन उनके शिक्षा के केंद्र खुल गए हैं और वहां पढ़ने वाले बालक-बालिकाएं और युवा सनातन संस्कृति को समझ नहीं पा रहे हैं और धर्म-शास्त्रों का ज्ञान भी नहीं है। जबकि भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भारत की मूल परंपरा, संस्कृति और धर्माचार्यों का ज्ञान होना चाहिए। तभी तो वे इसका पालन कर पाएंगे। इसमें काफी सुधार हुआ है पर और सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए हम प्रयासरत हैं।
इंदौर स्वच्छ तो है ही धार्मिक भी है…
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है, यह धार्मिक शहर भी है। इंदौर का नाम पूरे देश और विश्व में है। इंदौर की जो छवि बनी है, वह बनी रहे, इसी मंगलकामना के साथ इंदौरवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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