इंदौर में मंगलवार को टाइल्स कारोबारी सुरेंद्र पोरवाल (68) की ब्रेन डेड के बाद उनके दोनों हाथ, दोनों किडनी, लिवर, दोनों आंखें, स्किन डोनेट की गई। इससे 8 से ज्यादा लोगों को नई जिंदगी मिली। खास बात उनके दोनों हाथों के डोनेट करने की रही। यह इंदौर में पहल
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इसके पहले रतलाम कोठी निवासी विनीता खंजाची की ब्रेन डेथ के बाद उनकी दोनों किडनी, लंग्स, लीवर, आंखें और स्किन के साथ एक हाथ डोनेट किया था। यह मुंबई के एक मरीज को ट्रांसप्लांट हुआ था। यह महिला पोरवाल परिवार की रिश्तेदार थी। इस केस से ही पोरवाल के परिजन प्रेरित हुए और तुरंत हाथों को भी डोनेट करने पर सहमति दी।
डॉक्टरों का कहना है कि अगर ब्रेन डेड व्यक्ति के परिवार की सहमति, सारे पैरामीटर्स के साथ प्रॉपर प्रोसेस, समन्वय और खासकर समय का ध्यान रखा जाए तो हाथ डोनेशन के साथ ट्रांसप्लांट को और अच्छी गति मिल सकती है।
सोमवार का दिन इंदौर के लिए इस मामले में बेहद खास रहा। शैल्बी अस्पताल में एक साथ इतने अंगों, विशेषकर हाथों के डोनेशन की पूरी प्रक्रिया पूरी की गई। हालांकि, अस्पताल में किसी भी मरीज को इन अंगों में से कोई भी अंग ट्रांसप्लांट नहीं किया गया। सुरेंद्र पोरवाल का इलाज इसी अस्पताल में चला और यहीं उन्हें ब्रेन डेड घोषित किया गया, इसलिए अस्पताल ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाते हुए चार ग्रीन कॉरिडोर के समन्वयन में भूमिका निभाई।
डॉक्टरों की टीम ने ब्रेन डेड घोषित होने के बाद परिवार की सहमति से दोपहर करीब 3 बजे ऑपरेशन थिएटर में अंग निकालने (रिट्रीवल) की प्रक्रिया शुरू की। यह प्रक्रिया लगभग 3 घंटे चली। इसमें सबसे ज्यादा समय हाथों को निकालने में लगा, क्योंकि इसके लिए बहुत सी बारीकियों का विशेष ध्यान रखा जाता है।
डॉ. विवेक अग्रवाल (सुपरिटेंडेंट) ने बताया कि जब भी कोई अंग जैसे हाथ किसी दूसरे के अंग में ट्रांसप्लांट किए जाते हैं तो इसमें खून की सप्लाय का ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी होता है। जो रक्त वाहिनियां रहती हैं, वह खून सप्लाई करती हैं। एक तरह से ऑक्सीजन की सप्लाई होती है। इसमें एक अंग को दूसरे अंग में जोड़ना है तो वेसल्य यानी वेस्कुलर स्ट्रक्चर का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें शिराएं, धमनियां, नसें आती हैं।
हाथ को जोड़ने वाले एक्सपर्टस ब्रेन डेड व्यक्ति के हाथ को प्राप्तकर्ता की रक्त वाहिकाओं से जोड़ते हैं। इससे हाथ में खून का प्रवाह शुरू हो जाता है और वह जीवित अवस्था में आ जाता है। ट्रांसप्लांट के बाद हाथ की स्थिति लगभग वैसी ही हो जाती है, जैसी वह मूल रूप से थी। यह प्रक्रिया उन व्यक्तियों के लिए बेहद लाभकारी है जिनका हाथ कट गया हो या जल गया हो।
6 से 12 घंटे तक जीवित अवस्था में रखा जा सकता है
ब्रेन डेड व्यक्ति का हाथ निकालने के बाद उसे 6 से 12 घंटे तक जीवित अवस्था में रखा जा सकता है। इसके लिए एक विशेष सॉल्यूशन का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें अंगों को संरक्षित किया जाता है। यह सॉल्यूशन अंगों के लिए विशेष रूप से तैयार किया जाता है और इसमें शरीर की कोशिकाओं में संचरण जारी रहता है, जिससे कोशिकाएं जीवित रहती हैं।
इंदौर सांसद बोले- सरकारी अस्पतालों में जल्द शुरू करेंगे
सांसद शंकर लालवानी ने बताया कि कुछ समय पहले रिट्रवल और ट्रांसप्लांट को लेकर एक बैठक ली गई थी। इसके साथ ही एक बड़ी वर्कशॉप हुई थी। इसमें प्रदेश के सभी प्राइवेट अस्पतालों के आईसीयू के एक्सपर्टस शामिल हुए थे। मैंने तब सरकारी अस्पतालों में रिट्रवल और ट्रांसप्लांट करने की बात रखी थी क्योंकि सबसे ज्यादा कैजुअल्टी वहीं होती है। जल्दी ही प्रयास कर सरकारी अस्पतालों में भी ये सुविधाएं शुरू करेंगे।
मुस्कान ग्रुप के सेवादार संदीपन आर्य और जीतू बगानी ने बताया कि दोनों हाथों के डोनेशन ने इंदौर की उम्मीदें बढ़ाई है। धीरे-धीरे इस संबंध में जागरूकता भी बढ़ रही है। यदि परिस्थितियां अनुकूल होती हैं, तो यह प्रक्रिया और भी आसान हो सकती है।
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