एचएमपीवी के बढ़ते मामलों के बीच सरकारें व स्वास्थ्य विभाग सतर्क हैं। साथ ही एडवाइजरी जारी कर रही हैं। यह अच्छी बात है। देश के कई राज्यों में एचएमपीवी वायरस के मामले सामने आ चुके हैं। प्रदेश के दाे मेडिकल कॉलेजों में जांच भी शुरू हाे गई है। अच्छी बात
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ये वायरस न्यूमोविरिडे वायरस फैमिली से जुड़ा है, जिसमें रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (RSV) भी शामिल है। रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (RSV) से फेफड़ों और सांस नली में इंफेक्शन होता है। ये इतना आम है कि 2 साल तक की उम्र के ज्यादातर बच्चे इस वायरस से प्रभावित हो जाते हैं। उनमें निमोनिया जैसी स्थिति बन सकती है।
ऐसा हाेने पर ही यह खतरनाक हाे जाता है। यह अन्य वायरस जैसा ही है बस इससे बचाव की जरूरत है। यह सर्दी खांसी वाले अन्य वायरसों की तरह ही है इसका नियंत्रण भी उसी तरह हाे जाता है बावजूद इसके बच्चों, बुजुर्गों व कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले विशेष मरीजों के लिए बचाव की जरूरत है। यह इनके लिए खतरनाक हाे सकता है। बचाव के लिए पौष्टिक भोजन व इसी तरह के पेय का उपयोग करना चाहिए।
वायरस के लक्षण व खतरे
मुख्य लक्षण – हल्का बुखार, खांसी, नाक बहना और सांस लेने में कठिनाई. जोखिम – कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग, पहली बार वायरस से संक्रमित होने वाले शिशु, और वृद्ध लोग
2001 में पहली बार पहचाना गया यह वायरस
एचएमपी वायरस इंसानों के साथ कई दशकों से है। एक सामान्य श्वसन वायरस है। यानी सांस पर पहले असर दिखता है। आमतौर पर हल्के फ्लू जैसे लक्षण पैदा करता है। सर्दी खांसी सहित अन्य लक्षण नजर आते हैं। 1970 के दशक से यह वायरस इंसानों के बीच फैल रहा है। इसे वैज्ञानिकों ने 2001 में पहली बार पहचाना। वैश्विक स्तर पर यह वायरस 4-16% तक तीव्र श्वसन संक्रमण के मामलों का कारण बनता है। इसके मामले आमतौर पर नवंबर से मई के बीच अपने चरम पर होते हैं।
इलाज के लिए कोई वैक्सीन या दवा नहीं
वायरस के लिए फिलहाल कोई वैक्सीन या दवा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, यह आमतौर पर गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनता है। कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीजों को सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। बेहतर परीक्षण और जागरुकता से इस वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि समय पर सावधानी और उपचार से एचएमपी वायरस के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है। पूरी तरह खत्म किया जा सकता है। इसके लिए जरूरत प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने की है।
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