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एमपी के अधिकारी जुर्माना भरने तैयार,जानकारी देने के लिए नहीं: लेडी कॉन्स्टेबल को 6 साल बाद भी नहीं मिली जानकारी, ऐसी 16 हजार अपील पेंडिंग – Madhya Pradesh News

केस1: ग्वालियर के एसपी कार्यालय में पदस्थ कॉन्स्टेबल शुभांगी कटारे को 6 साल बाद भी जानकारी नहीं मिली कि आखिर उनके खिलाफ विभागीय जांच किस आधार पर की गई थी। जबकि राज्य सूचना आयोग ने तत्कालीन एसपी पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए जानकारी देने के लि

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केस2 : 27 जुलाई 2022 को आरटीआई एक्टिविस्ट दीपमाला मिश्रा ने भिंड और मुरैना जिलों की दो ग्राम पंचायतों में पिछले 5 साल में इश्यू और डिलीट किए गए मृत्यु प्रमाण पत्र की जानकारी ग्राम पंचायतों से मांगी थी। जानकारी न मिलने पर सूचना आयोग ने दीपमाला को 10 हजार रुपए हर्जाना देने के साथ पंचायत विभाग को मृत्यु प्रमाण पत्र का रिकॉर्ड वेबसाइट पर अपलोड करने को कहा था। मगर आज तक ऐसा नहीं हुआ।

इन दो मामलों से मप्र राज्य सूचना आयोग की स्थिति को समझा जा सकता है। आयोग के निर्देशों को सरकारी अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते। पिछले दो साल में आयोग ने जानकारी न देने वाले 319 अधिकारियों के खिलाफ 46 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था।

साथ ही 105 अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की थी। आयोग को 26 लाख रुपए जुर्माने की राशि मिली, 20 लाख रुपए आज तक नहीं मिले। वहीं 105 में से केवल 7 अधिकारियों के खिलाफ ही विभागीय कार्रवाई की गई।

दैनिक भास्कर ने आरटीआई एक्टिविस्ट, राज्य सूचना आयोग के अधिकारियों और पूर्व सूचना आयोग से बात करके समझा कि आखिर अधिकारी आयोग के निर्देशों को गंभीरता से क्यों नहीं लेते, जानकारी देने में आनाकानी क्यों करते हैं? पढ़िए पूरी रिपोर्ट….

तीन केस से समझिए अधिकारी कैसे जानकारी देने में आनाकानी करते हैं

केस 1: रीवा की अवधेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी ने उत्तर पुस्तिका की कॉपी देने से मना किया रीवा के कुंदन लाल ने आरटीआई के जरिए उत्तर पुस्तिका की कॉपी मांगी थी। यूनिवर्सिटी ने जानकारी देने से मना कर दिया। कहा- उत्तर पुस्तिका देख सकते हैं, लेकिन उसकी कॉपी नहीं मिलेगी। कुंदन लाल ने सूचना आयोग में अपील लगाई। तत्कालीन सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आरटीआई एक्ट की धारा 25 का हवाला देते हुए कहा कि विभिन्न प्रदेशों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन हैं कि छात्रों को उत्तर पुस्तिका की छाया प्रति दी जा सकती है। उन्होंने उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देशित किया कि वह सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटी में अधिनियम के अनुरूप कार्रवाई सुनिश्चित करें।

केस 2: ग्वालियर की महिला कॉन्स्टेबल ने विभागीय कार्रवाई के दस्तावेज मांगे ग्वालियर की महिला पुलिसकर्मी शुभांगी कटारे ने विभागीय कार्रवाई की जानकारी आरटीआई के जरिए मांगी थी। अधिकारियों ने जानकारी नहीं दी तो राज्य सूचना आयोग में अपील दायर की। अपील में कहा कि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई झूठी शिकायत के आधार पर की गई। आयोग द्वारा प्रारंभिक जांच में पाया गया कि शुभांगी के आरोप और उनकी शिकायत सही है। सूचना आयुक्त ने पुलिस विभाग को निर्देश जारी किए हैं कि वह आदेश प्राप्ति के 5 दिन के भीतर शुभांगी कटारे को उनके विरुद्ध की गई कार्रवाई की पूरी फाइल दिखाई जाए। फाइल दिखाने के बाद शुभांगी कटारे ने जो दस्तावेज मांगे उसकी प्रमाणित कॉपी दी जाए।

केस 3: श्योपुर की 35 ग्राम पंचायतों में हुए कंस्ट्रक्शन मटेरियल की जानकारी मांगी आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक गर्ग ने श्योपुर की 35 ग्राम पंचायतों में किए गए काम में इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन मटेरियल की जानकारी मांगी थी। सभी ग्राम पंचायतों ने जानकारी देने से मना कर दिया। राज्य सूचना आयोग ने एक साथ 35 अपील की सुनवाई की। अशोक गर्ग ने कहा ग्राम पंचायतों ने जानबूझकर दस्तावेज गायब किए हैं। पंचायतों में करीब 200 करोड़ के कंस्ट्रक्शन मटेरियल सप्लाई में 20 करोड़ की टैक्स चोरी हुई है। आयोग ने ग्राम पंचायत सचिव और जनपद पंचायत सीईओ की लापरवाही मानी और जानकारी देने के निर्देश दिए।

अब जानिए अधिकारी क्यों नहीं देते जानकारी पूर्व सूचना आयुक्त राहुल सिंह कहते हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत लोक सूचना अधिकारी को 30 दिन में जानकारी देने का प्रावधान है। वहां से उसे जानकारी नहीं मिलती तो वह प्रथम अपील करता है। इसके बाद दूसरी अपील राज्य सूचना आयोग में होती है। अपने कार्यकाल के दौरान मैंने जितने मामलों की सुनवाई की, उसमें सरकारी कागज गुम होने की समस्या कॉमन थी। सुनवाई के दौरान अधिकारी कागज गुम होने का हवाला देते थे। कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं मिलता था। मैंने ऐसे अधिकारियों पर पेनाल्टी लगाने की कार्रवाई की। सूचना आयुक्त अधिकतम 25 हजार रुपए की पेनाल्टी लगा सकता है।

अधिकारी पेनाल्टी दे देते हैं, लेकिन सूचना देने के लिए तैयार नहीं: राहुल सिंह राहुल सिंह कहते हैं कि आरटीआई में जब सूचना मांगी जाती है तो संबंधित अधिकारी को सूचना देना जरूरी होता है। कुछ अधिकारियों का मानना है कि अगर सूचना नहीं देंगे तो वो पेनाल्टी देकर बच जाएंगे। लेकिन ऐसा होता नहीं है उन्हें जानकारी तो देना पड़ती है। वहीं कुछ मामलों में देखा गया कि अधिकारी पेनाल्टी लगने के बाद हाईकोर्ट में केस को चैलेंज करते हैं। कोर्ट आयोग के आदेश पर स्टे दे देता है। मामला सालों तक पेंडिंग पड़ा रहता है। अधिकारी को न सूचना देना पड़ती है और न ही जुर्माना।

पेंडिंग मामले खत्म होने में लगेंगे 3 साल सरकार ने कुछ दिन पहले ही मुख्य सूचना आयुक्त समेत तीन सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की है। सूचना आयुक्तों के 7 पद खाली पड़े हैं। इस समय राज्य सूचना आयोग में 16 हजार से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं। आयोग के अधिकारी के मुताबिक हर महीने 500 अपील आती है। दूसरी अपील पर सुनवाई कर आयोग फैसला देता है। वहीं शिकायतों पर सीधे कार्रवाई की जाती है। अगर मुख्य सूचना आयुक्त 45 और सूचना आयुक्त 15 से 20 अपील की रोजाना सुनवाई करेंगे तो पेंडिंग अपील निपटाने में 3 से 5 साल लगेंगे।

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