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एमपी के IAS अधिकारी हाजिरी लगाने तैयार नहीं: वजह- सुबह 10 से शाम 6 बजे तक ऑफिस में रुकना होगा, सभी सरकारी दफ्तरों में अटेंडेंस सिस्टम – Madhya Pradesh News

प्रदेश के प्रशासनिक मुख्यालय वल्लभ भवन में एप से अटेंडेस का प्रयोग IAS अधिकारियों की अरुचि के कारण अटक गया है। मंत्रालय में फेस अटेंडेस सिस्टम को 1 जनवरी से लागू किया जाना था लेकिन अब इसे 1 फरवरी से लागू करने की कोशिश की गई। अधिकारियों के रजिस्ट्रेशन

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आईएएस को भी करनी होगी 8 घंटे नौकरी

प्रदेश में इनकम शो करने के बाद अब आईएएस अधिकारियों को काम पर आने-जाने का हिसाब भी देना होगा। आईएएस अधिकारियों को कर्मचारियों की तरह आठ घंटे की ड्यूटी पूरी करनी होगी और इसके लिए जियो टैगिंग बेस्ड एप पर हाजिरी लगानी होगी। प्रदेश में मंत्रालय से शुरू किए जा रहे फेस अटेंडेस ऐप के माध्यम से हाजिरी लगाने की प्रक्रिया में कर्मचारियों के साथ सभी अधिकारियों को भी शामिल किया गया है। व्यवस्था को लागू करने वाले सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे बताते हैं कि हम केवल कर्मचारियों को इसमें शामिल नहीं कर रहे हैं, बल्कि प्रदेश में पहली बार आईएएस अधिकारियों को भी ऐप से हाजिरी लगानी होगी।

देश में पहली बार ऐसा प्रयोग

प्रमुख सचिव दुबे बताते हैं कि इस तरह की अटेंडेस प्रक्रिया देश का अपनी तरह का सबसे बड़ा प्रयोग है। अभी तक किसी राज्य ने आधार बेस्ड फेस रिकॉग्नाइजेशन से अटेंडेस लगानी शुरू नहीं की है। यह बहुत सरल एप है, जो आधार से जुड़ा है। इसलिए लागू करने वालों से लेकर अटेंडेस लगाने वालों तक को न तो कोई इक्यूपमेंट खरीदना है न ही डाटा ही अलग से एकत्र किया जाना है। इसलिए बिना बड़े बजट के खर्च किए मंत्रालय के सभी अधिकारियों–कर्मचारियों की उपस्थिति एप के माध्यम से दर्ज हो रही है।

प्रदेश भर में लागू होगा ऐप बेस्ड अटेंडेंस सिस्टम

प्रदेश के मंत्रालय में इस तरह ऐप से अटेंडेस लगाने का प्रयोग नए मुख्य सचिव अनुराग जैन के आने के बाद शुरू हुआ है। यह कहा जाता है कि प्रशासनिक मुखिया का विचार है कि सबसे पहले मंत्रालय में सभी अधिकारी-कर्मचारी एक व्यवस्था के तहत नियम से अपने ड्यूटी अवर्स पूरे करें, इसके बाद इस प्रयोग को पूरे प्रदेश में लागू किए जाने की योजना है।

इसकी पुष्टि करते हुए सामान्य प्रशासन के प्रमुख सचिव संजय दुबे कहते हैं कि जब मंत्रालय में एप से अटेंडेस हो सकती है तो बाकी कार्यालयों में क्यों नहीं? हम इसे सफलतापूर्वक यहां लागू करेंगे। इसके बाद कलेक्टर कार्यालयों में और प्रदेश के अन्य कार्यालयों में ले जाया जाएगा। इससे सरकारी कर्मचारियों की यह छवि सुधरेगी कि वे देर से दफ्तर आते हैं और जल्दी चले जाते हैं, जनता में छवि बेहतर होगी तो कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ेगी और प्रशासनिक कार्यों में गति आएगी।

…लेकिन अधिकारी ही बन रहे रोड़ा

प्रशासनिक मुखिया भले ही बेहतर सोच के साथ नई व्यवस्था को लागू कर रहे हों, लेकिन इसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा प्रशासनिक अधिकारी ही बन रहे हैं। फरवरी के पहले सप्ताह तक 1266 कर्मचारी ऐसे थे जो अटेंडेस पोटर्ल पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं, वहीं कुल रजिस्टर्ड डिवाइस 755 हैं अर्थात जिन्होंने अपने एंड्रॉयड डिवासइ में एप डाउनलोड कर लिया है। इनमें से आधे यानी करीब 350 प्रतिदिन इस एप से हाजिरी लगा रहे हैं, लेकिन अधिकारियों की संख्या की बात करें तो मात्र 10 प्रतिशत अधिकारी ही इसका पालन कर रहे हैं।

सामान्य प्रशासन के एक अधिकारी बताते हैं कि मंत्रालय में करीब 50 आईएएस पदस्थ हैं। इनमें से करीब छह ही ऐप की मदद से हाजिरी लगा रहे हैं। हाजिरी लगाने वालों में व्यवस्था को लागू करने वाले विभाग सामान्य प्रशासन के उप सचिव अजय कटेसरिया, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी सहित उनके विभाग के आइएस तन्वी सुंद्रियाल, राजीव मीणा, रोहित सिंह और लोकेश जाटव शामिल हैं। इसके अतिरिक्त पूरे मंत्रालय से इक्का–दुक्का आईएएस ही इस व्यवस्था का पालन कर रहे हैं।

‘200 रुपए महीने के भत्ते में कैसे आएं’

इस विषय पर कर्मचारियों की राय मिली-जुली नजर आती है। वे सीधे तौर पर इसका विरोध तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन इस व्यवस्था को अपनाने की व्यवहारिक समस्याएं भी गिनाते हैं। मंत्रालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक बताते हैं कि अच्छा शासन वही चलाता है जो सभी पक्षों को देखकर निर्णय करे। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हमने एक पक्षीय निर्णय दे दिया।

अधिकारियों काे देखना चाहिए कि कर्मचारी ऑफिस कैसे आते हैं? उसकी परिवहन समस्या क्या है? पहले सरकारी बसें चलती थी, कर्मचारियों को जो भी परिवहन भत्ता मिलता था, उसी रुपए को निगम को ट्रांसफर कर एक मंथली पास बनाकर दे दिया जाता था। मंत्रालय के लिए बसें चलती थीं। वह ऑफिस टाइम के अनुसार चलती थी। जो समय पर स्टाॅप पर नहीं पहुंचता था, उसकी बस छूट जाती थी। ऐसे में उस कर्मचारी को अपने रुपये खर्च करके आना होता था।

परिवहन निगम बंद होने के बाद कहा गया बस चलाएंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आज भी कर्मचारियों को पूरे महीने का 200 रुपए परिवहन भत्ता मिलता है। इतने में दो लीटर पेट्रोल नहीं आता तो कर्मचारी महीने भर कैसे आए। सरकार को हमारी व्यावहारिक समस्याएं सुननी चाहिए।

1 से 3.30 तक लंच पर चले जाते हैं आईएएस

नायक बताते हैं कि कर्मचारियों के बारे में कहा जाता है कि वह शाम को जल्दी घर चले जाते हैं, लेकिन आईएएस बैठे रहते हैं। हकीकत कौन नहीं जानता, सभी आईएएस एक बजे लंच पर घर चले जाते हैं। साढ़े तीन बजे ही आते हैं। कोई मंत्रालय में लंच टाइम में आईएएस से मिलकर दिखा दे। उनके पास घोड़ा है, गाड़ी है, ड्राइवर है। कर्मचारी दो-तीन बसें बदलकर आता है।

अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए समान हो सिस्टम

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