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एमपी में भर्ती परीक्षाओं की फीस बढ़ाने की तैयारी: बजट में सरकार ने एग्जाम फीस पॉलिसी का किया था ऐलान, नहीं हो पाया फैसला – Madhya Pradesh News

कर्मचारी चयन मंडल इस साल 25 परीक्षाएं लेगा। इनके लिए एग्जाम फीस बढ़ाने का प्रस्ताव है।

मध्यप्रदेश कर्मचारी चयन मंडल यानी ईएसबी इस साल आयोजित होने वाली परीक्षाओं के लिए फीस बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। मंडल की जनवरी के तीसरे हफ्ते में होने वाली अर्द्धवार्षिक बोर्ड मीटिंग में परीक्षाओं की फीस बढ़ाने का प्रस्ताव रखा जा सकता है। सूत्रों का क

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खास बात ये है कि पिछले साल जुलाई में बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने घोषणा की थी कि भर्ती परीक्षाओं में शुल्क को लेकर सरकार एक नई नीति बनाएगी। उधर, अधिकारियों का तर्क है कि साल 2012 से परीक्षा फीस नहीं बढ़ाई गई है। ईएसबी एक ऑटोनॉमस बॉडी है। इतनी कम फीस में परीक्षा कराकर खर्च निकालना संभव नहीं है।

वहीं, जानकारों का कहना है कि देश के बाकी राज्यों के मुकाबले मप्र में एग्जाम फीस सबसे ज्यादा है। ईएसबी के पास 340 करोड़ रुपए सरप्लस पड़े हुए हैं। इनका क्या इस्तेमाल हो रहा है, ये किसी को नहीं पता।

मप्र में प्रतियोगी और भर्ती परीक्षाएं कितनी महंगी होने वाली हैं? बाकी राज्यों में एग्जाम फीस का क्या स्ट्रक्चर है और एग्जाम फीस से ईएसबी को कितना मुनाफा हो रहा है, पढ़िए संडे बिग स्टोरी…

जानिए, कितनी फीस बढ़ाने की तैयारी कर्मचारी चयन मंडल हर परीक्षा के लिए अनरिजर्व्ड कैटेगरी के छात्रों से 500 रुपए तो रिजर्व कैटेगरी के छात्रों से 250 रुपए एग्जाम फीस लेता है। जनवरी में होने वाली बोर्ड मीटिंग में मौजूदा फीस को 10 से 20 फीसदी तक बढ़ाए जाने का प्रस्ताव रखा जा सकता है।

यदि 10 फीसदी फीस बढ़ाने के प्रस्ताव पर सहमति बनती है तो अनरिजर्व्ड कैटेगरी के कैंडिडेट्स के लिए फीस 550 रुपए और रिजर्व कैटेगरी के कैंडिडेट्स के लिए 275 रुपए होगी। इसी तरह 20 फीसदी फीस बढ़ाने के प्रस्ताव को सहमति मिलने पर अनरिजर्व्ड कैटेगरी के कैंडिडेट्स को 600 रुपए तो रिजर्व कैटेगरी के कैंडिडेट्स को 300 रुपए प्रति एग्जाम फीस चुकानी होगी।

पड़ोसी राज्य गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ की भर्ती परीक्षाओं के मुकाबले मप्र में एग्जाम फीस पहले से महंगी है। नए प्रस्ताव के बाद ये और बढ़ जाएगी।

जितना खर्च, उससे 3 गुना ज्यादा कमाई कर्मचारी चयन मंडल के लिए परीक्षा आयोजित करवाना मुनाफे का सौदा है। मंडल छात्रों से वसूले परीक्षा शुल्क से हर साल करोड़ों रुपए की कमाई करता है जबकि परीक्षा कराने सहित दूसरे बंदोबस्त पर खर्च 250 रुपए प्रति छात्र आता है। बाकी पैसा बचत खाते में जाता है। साल 2011-12 में मंडल (व्यापमं) ने परीक्षा शुल्क से 98.30 करोड़ रुपए की कमाई की जबकि खर्च हुए 27.89 करोड़ रुपए।

हर साल कमाई की ये रकम बढ़ती ही जा रही है। 2021 में बोर्ड ने भर्ती परीक्षाओं से 103 करोड़ रुपए की कमाई की और खर्चा मात्र 32.16 करोड़ रुपए हुआ। यानी बोर्ड को छात्रों से मिले परीक्षा शुल्क से करीब 71 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ।

वहीं, साल 2022 में एग्जाम फीस से ईएसबी को 62.43 करोड़ रुपए की कमाई हुई, खर्च हुआ 49.65 करोड़ रुपए। यानी करीब 13 करोड़ रुपए का मुनाफा। 2023 में वन टाइम फीस ली गई थी, इस वजह से कमाई से ज्यादा खर्च हुआ। साल 2024 में नौ परीक्षाओं की फीस से ईएसबी ने 18.16 करोड़ रुपए की कमाई की और इन परीक्षाओं पर 15.23 करोड़ रुपए खर्च हुए।

कर्मचारी चयन मंडल के पास 340 करोड़ रुपए सरप्लस युवाओं के मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाले कांग्रेस नेता पारस सकलेचा कहते हैं कि बेरोजगार युवाओं को 20 अलग-अलग परीक्षाओं के लिए 20 बार फीस देनी पड़ती है। कर्मचारी चयन मंडल व्यापारी की तरह दुकान चला रहा है। दिसंबर 2022 तक कर्मचारी चयन मंडल के पास 798 करोड़ का फिक्स डिपॉजिट था। वो भी तब जब परीक्षाओं के आयोजन के लिए उसने निजी एजेंसियों को पैसा दिया।

जनवरी 2023 से 15 जून 2023 के साढ़े 5 महीने में कर्मचारी चयन बोर्ड ने 6 परीक्षाओं का आयोजन किया। इनमें 32.60 लाख उम्मीदवारों ने परीक्षा फीस के 107 करोड़ रुपए दिए।

सकलेचा के मुताबिक, इस समय कर्मचारी चयन मंडल के पास 340 करोड़ रुपए फिक्स डिपॉजिट है। उनके बार-बार पूछने के बाद भी सरकार ये बताने को तैयार नहीं है कि ईएसबी इन अतिरिक्त रुपयों का क्या कर रही है?

युवा बार-बार वन टाइम फीस या निशुल्क परीक्षा की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं है।

शिवराज सरकार ने दिया था वन टाइम फीस का आदेश मध्यप्रदेश सरकार ने विधानसभा चुनावों से पहले अप्रैल 2023 में युवाओं को राहत देते हुए सरकारी भर्तियों के लिए अलग-अलग परीक्षाओं में अलग-अलग शुल्क देने से छूट दी थी। सरकारी नौकरी के लिए कर्मचारी चयन मंडल के माध्यम से होने वाली सभी परीक्षाओं में उम्मीदवार से एक बार ही परीक्षा शुल्क लिए जाने की व्यवस्था की गई थी।

इसके तहत अभ्यर्थी को नामांकन के लिए एक बार प्रोफाइल का रजिस्ट्रेशन करना होता था। उसके बाद पहली परीक्षा में आवेदन भरने के समय उसके लिए निर्धारित परीक्षा और पोर्टल शुल्क देना होता था। इसके बाद किसी अन्य परीक्षा में आवेदन करते समय उन्हें परीक्षा शुल्क नहीं देना होता था।

इस आदेश में एक पॉइंट यह था कि यह एक साल के लिए प्रभावी है। इसकी मियाद 20 अप्रैल 2024 को खत्म हो गई लेकिन साल 2023 में परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या साल 2022 के मुकाबले 8 लाख बढ़ गई।

मोहन सरकार नई नीति लाने वाली थी अप्रैल 2024 के बाद वन टाइम फीस के मुद्दे पर प्रदेश की नई सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया। हर एग्जाम के लिए फीस लेने की पुरानी व्यवस्था लागू हो गई। अप्रैल 2024 के बाद ईएसबी ने 9 परीक्षाओं का आयोजन किया था। आरक्षित वर्ग के 4.92 लाख तो अनारक्षित वर्ग के 1.17 लाख कैंडिडेट्स ने ये परीक्षाएं दी थीं।

इस तरह कुल 6.09 लाख कैंडिडेट्स परीक्षा में बैठे थे। इनसे एग्जाम फीस के रूप में ईएसबी को 18.16 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी। युवा समय-समय पर सरकार से वन टाइम फीस या निशुल्क परीक्षाएं आयोजित करने की मांग करते रहे हैं। इसे देखते हुए जुलाई 2024 में मोहन सरकार ने पूर्ण बजट में युवाओं को राहत देने की बात की थी।

3 जुलाई को अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने कहा था कि चयन परीक्षाओं में आवेदन शुल्क के भार को कम करने के लिए सरकार नई नीति बनाने पर विचार कर रही है। मगर, बजट में की गई इस घोषणा पर किसी तरह का अमल नहीं हुआ।

अधिकारियों का तर्क- हमारे पास आय का साधन एग्जाम फीस इस मसले पर दैनिक भास्कर ने कर्मचारी चयन बोर्ड के डायरेक्टर साकेत मालवीय से पूछा तो उन्होंने कहा- अभी जो फीस का स्ट्रक्चर है, वो 2012 में तैयार किया गया था। उसके बाद से मंडल ने फीस नहीं बढ़ाई है। कैंडिडेट्स से ली गई एग्जाम फीस से मंडल, परीक्षा की तैयारी से लेकर तकनीकी सुरक्षा, परीक्षा की पारदर्शिता सुनिश्चित करने जैसे कई कदम उठाता है।

उन्होंने कहा कि मंडल अपने खर्च खुद उठाता है इसलिए एग्जाम फीस ही आय का जरिया है। भास्कर के ये पूछने पर कि बोर्ड के पास 340 करोड़ रुपए का सरप्लस फंड है तो उन्होंने कहा- बोर्ड के आय-व्यय का पूरा ब्योरा विधानसभा के पटल पर रखा जाता है। पूरी व्यवस्था पारदर्शी है।

जो राशि सरप्लस है, वो सीड मनी (सुरक्षा निधि) है। किसी भी संस्था के पास एकमुश्त सुरक्षा निधि होना जरूरी होता है। भविष्य में कोई बड़ा खर्च आने, नया सॉफ्टवेयर बनाने या नई तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए ये आरक्षित की गई है।

5 साल में ढाई लाख पदों पर सीधी भर्ती का प्लान मध्यप्रदेश में मोहन सरकार अगले पांच साल में ढाई लाख पदों पर सीधी भर्ती करेगी। सरकार ने तय किया है कि इसके लिए हर साल सरकारी परीक्षा कैलेंडर भी जारी किया जाएगा। वित्त विभाग ने इसके लिए नए निर्देश भी जारी किए हैं। विभाग ने सर्कुलर में साफ किया है कि खाली पदों पर जिन विभागों ने 30 अक्टूबर 2024 तक नियुक्तियां कर दी हैं, वे निरस्त नहीं मानी जाएंगी।

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अंजेश पाल कहते हैं कि सरकार सरकारी पदों पर भर्तियां कर रही हैं, ये अच्छी बात है। मगर, एग्जाम फीस को लेकर सरकार को सोचना चाहिए। दूसरे राज्यों के मुकाबले मप्र में एग्जाम फीस का स्ट्रक्चर ज्यादा है।

जहां तक कर्मचारी चयन मंडल संसाधनों की बात करता है तो यूपीएससी सिविल सर्विस एग्जाम के लिए 100 रुपए फीस लेता है। इतना प्रतिष्ठित एग्जाम बिना भ्रष्टाचार के हर साल आयोजित होता है। कर्मचारी चयन मंडल एससी, एसटी और ओबीसी कैटेगरी के कैंडिडेट्स को आने-जाने का खर्च देता है, वो उन तक पहुंचता ही नहीं है।

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