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काजू कतली में मूंगफली, मावे में आलू: सजा से बचने मिलावटखोरों की नई तरकीब; सिर्फ जुर्माना देकर छूट जाते हैं

दिवाली के मौके पर 1200 से 1400 रुपए प्रति किलो तक बिकने वाली काजू कतली में मूंगफली की मिलावट की जा रही है। मावे में आलू और आटे की मिलावट हो रही है और इसी से बनी मिठाई दुकानों में बिकने के लिए तैयार है।

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बेसन के लड्डू खाने के शौकीन हैं तो हो सकता है कि लड्डू के साथ मटर का आटा भी खाने को मिल जाए क्योंकि बेसन में मटर का आटा मिलाया जा रहा है। खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग ने अलग-अलग दुकानों से जो सैंपल लिए हैं, उनमें इसी तरह की मिलावट पाई गई है।

दरअसल, ये मिलावटखोरों की नई तरकीब है। वे खाद्य पदार्थों में केमिकल या सिंथेटिक पदार्थ मिलाने के बजाय घटिया स्तर के खाद्य पदार्थों की मिलावट कर रहे हैं। ऐसा कर वे कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। दूसरी तरफ ये मिलावट लोगों की सेहत को नुकसान नहीं पहुंचाती इसलिए सैंपल अमानक पाए जाने पर भी केवल जुर्माना भर कर छूट जाते हैं।

दैनिक भास्कर ने मिलावट के इस खेल का पता करने के लिए बाजार में मिठाई की सप्लाई करने वालों से ग्राहक बनकर बात की। यहां से बेसन और मावे के सैंपल लिए और जब उनकी जांच खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग की लैबोरेटरी में कराई तो जांच में ये सैंपल फेल हो गए। सिलसिलेवार जानिए, कैसे हो रही है खाद्य पदार्थों में मिलावट…

काजू कतली में मूंगफली के पाउडर की मिलावट

काजू कतली की कीमत 1200 रु. से लेकर 1400 रु. प्रति किलो है। दुकानों पर जो काजू कतली बेचने के लिए रखी जाती है, दरअसल वह कारखाने में थोक के हिसाब से बनती है। भास्कर की टीम मिठाई व्यापारी बनकर एक ऐसे ही कारखाने पर पहुंची। कारखाने के मालिक से थोक में काजू कतली खरीदने का सौदा किया तो वह 700 रु. प्रति किलो में काजू कतली देने को तैयार हो गया।

इस रेट को लेकर जब बाकी मिठाई सप्लायर से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि ऐसी काजू कतली तो साढ़े पांच सौ रु. में मिल जाएगी। उनसे पूछा कि इतनी सस्ती कैसे मिल रही है, जबकि मार्केट में कीमत 1200 रु. से 1400 रु. प्रति किलो है। सप्लायर ने बताया कि सस्ता बिकने की वजह काजू कतली में मिलावट है।

व्यापारी के मुताबिक सड़े गले काजू को हाइड्रा से साफ कर पीस लिया जाता है। इसमें मूंगफली का पाउडर और चीनी मिक्स की जाती है। जो पेस्ट बनता है उससे काजू कतली बनाई जाती है। इसे खाने पर ये पता ही नहीं चलता कि इसमें मूंगफली का पाउडर मिलाया गया है। काजू कतली में मूंगफली पाउडर की मिलावट की पुष्टि स्टेट फूड लैबोरेटरी के फूड एनालिस्ट कैलाश सिलावट भी करते हैं।

मावे में आलू और मक्के के आटे की मिलावट

त्योहार के मौके पर मावे की मिठाइयों की भी बिक्री बढ़ जाती है। खाद्य एवं औषधी प्रशासन विभाग ने पिछले दिनों मावे के कई सैंपल जब्त किए हैं। फूड लैबोरेटरी के एनालिस्ट मनोज गुप्ता ने शुद्ध और अशुद्ध मावे की जांच भास्कर के कैमरे के सामने की। मावे के एक सैंपल में आयोडीन मिक्स किया तो ये सैंपल बैंगनी रंग का हो गया।

गुप्ता ने बताया जब सैंपल बैंगनी रंग का होता है तो ये मावा मिलावटी है। मावे के सैंपल का रंग बदलने पर पता चलता है कि इसमें आलू या आटे का स्टार्च मिला हुआ है। इसके बाद मावे में फैट की जांच की जाती है। यदि फैट की मात्रा मानक स्तर 45% से कम या ज्यादा होती है तो भी ये मिलावट मानी जाती है।

बेसन की कीमत 110 रु. किलो, लड्डू बिक रहे 90-100 रु. किलो

राजधानी भोपाल के पुराने शहर के बाजार की संकरी गलियों में बेसन के लड्डू बेचने वाली कई दुकानें हैं। यहां बेसन लड्डू 90 से 110 रु. किलो कीमत पर बिकता है। जबकि बेसन का दाम ही 110 रु. किलो है। दुकानदार घाटे का सौदा कैसे कर रहे हैं, ये जानने के लिए भास्कर की टीम इन दुकानों पर पहुंची।

लड्डू बना्ने वाले दुकानदारों ने बताया कि वे किराना दुकानों से 59 रु. से लेकर 88 रु. प्रति किलो के हिसाब से बेसन खरीद रहे हैं। उसी बेसन का इस्तेमाल कर लड्डू बनाते हैं। एक व्यापारी ने बताया कि बेसन के लड्डू में मैदे की मिलावट पुरानी बात हो गई है। अब सोयाबीन का तेल निकालने के बाद जो भूसी बचती है उसे पीला रंग कर बेसन में मिलाया जाता है।

लड्डू शुद्ध घी की बजाय वनस्पति घी और तेल में बनाए जाते हैं ऐसे में लागत कम आती है। भास्कर ने इसी दुकानदार से 59 रु. किलो में खरीदे गए बेसन का एक सैंपल कलेक्ट किया। इसकी स्टेट फूड लैबोरेटरी में माइक्रोस्कोप से जांच कराई।

जांच करने वाले एनालिस्ट मनोज कुमार गुप्ता ने बताया कि सैंपल में जो कण है वह बेसन के सामान्य कण की तरह गोल न होकर तिकोने या धब्बे की तरह हैं। गुप्ता ने अलग अलग तरह से इस सैंपल की जांच की और कहा कि इसमें मटर के आटे या पाउडर की मिलावट की गई है।

एनालिस्ट बोले, फूड आइटम की मिलावट से व्यापारियों को मुनाफा

स्टेट फूड लैब के सीनियर फूड एनालिस्ट कैलाश सिलावट बताते हैं कि खाद्य पदार्थों की मिलावट से आम लोगों को आर्थिक नुकसान हो रहा है, लेकिन उनकी सेहत को कोई नुकसान नहीं पहुंच रहा। व्यापारी जरूर इससे मुनाफा कमा रहे हैं, क्योंकि इन पदार्थों को बनाने में उन्हें कम लागत आती है।

उदाहरण के तौर पर वे बताते हैं कि घी में वनस्पति तेल या पाम ऑयल की मिलावट की जाती है। वनस्पति तेल और पाम ऑयल खाने योग्य पदार्थ है और सस्ते हैं। व्यापारी शुद्ध घी में इनकी मिलावट कर जो घी बनाते हैं उसे शुद्ध घी की कीमत पर ग्राहकों को बेचते हैं।

राजधानी भोपाल के पुराने शहर में बेसन के लड्डू बेचने वाले कई दुकानदार हैं। इन लड्डुओं की कीमत दुकानदार ने 100 रु. किलो बताई।

राजधानी भोपाल के पुराने शहर में बेसन के लड्डू बेचने वाले कई दुकानदार हैं। इन लड्डुओं की कीमत दुकानदार ने 100 रु. किलो बताई।

अब जानिए मिलावट पर क्या है जुर्माने और सजा का प्रावधान

खाद्य पदार्थों की मिलावट: खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम की धारा 51 के तहत सैंपल में मिलावट पर पांच लाख रुपए जुर्माने से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान है।

इन बिंदुओं पर तय होता है जुर्माने और सजा का प्रावधान

  • कितनी मात्रा में या किस स्तर पर मिलावटी सामग्री का निर्माण किया गया।
  • किसी खाद्य पदार्थ में अन फेयर मिलावट कितनी की गई है।
  • मिलावट कर्ता ने मिलावट से कितना अवैध फायदा कमाया है।
  • मिलावट कर्ता ने ऐसा अपराध पहली बार किया या बार-बार किया है।

केमिकल या अखाद्य पदार्थ की मिलावट: खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम की धारा 51 के तहत यदि सैंपल में केमिकल या अखाद्य पदार्थ की मिलावट पर सजा के अलग-अलग प्रावधान है।

इन बिंदुओं पर तय होता है जुर्माने और सजा का प्रावधान

  • किसी को शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचा: तीन महीने की सजा और एक लाख रुपए का जुर्माना।
  • किसी को अस्थाई शारीरिक नुकसान या मामूली क्षति: एक साल की सजा और तीन लाख रुपए का जुर्माना।
  • किसी व्यक्ति को गंभीर क्षति पहुंचती है या स्थायी नुकसान: 6 साल की सजा और पांच लाख रुपए का जुर्माना।
  • किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होने पर: कम से कम सात साल या आजीवन कारावास की सजा।
स्टेट फूड लैबोरेटरी में असली और नकली मावे की पहचान। जांच के बाद नकली मावे का रंग बैंगनी हो जाता है। असली मावे का रंग ऑरेंज होता है।

स्टेट फूड लैबोरेटरी में असली और नकली मावे की पहचान। जांच के बाद नकली मावे का रंग बैंगनी हो जाता है। असली मावे का रंग ऑरेंज होता है।

एक भी सैंपल में केमिकल की मिलावट नहीं

पिछले एक साल में खाद्य एवं औषधी प्रशासन विभाग ने 44 हजार से ज्यादा सैंपल लिए हैं। जांच में 2608 सैंपल फेल हो गए, लेकिन इनमें से एक भी सैंपल में सिंथेटिक या केमिकल की मिलावट नहीं पाई गई। सभी सैंपल में खाद्य पदार्थों की मिलावट पाई गई है।

फूड एनालिस्ट कैलाश सिलावट बताते हैं कि कोई भी पदार्थ तभी असुरक्षित माना जाता है जब उसमें केमिकल मिलाया जा रहा हो। ऐसे मामलों में सख्त सजा का प्रावधान है। वहीं खाद्य पदार्थों की मिलावट होने पर एडीएम कोर्ट से जुर्माना होता है।

वहीं जॉइंट कंट्रोलर माया अवस्थी बताती हैं, हमारी लैब में जांच की सभी आधुनिक सुविधाएं हैं। दूध से लेकर किसी भी तरह के खाद्य पदार्थ में केमिकल की मिलावट होगी तो उसे पकड़ा जा सकता है। केमिकल मिलावट के केस सामने आने की जानकारी नहीं है।

विभाग की जांच में नकली का कॉलम ही नहीं

प्रदेश में मिलावटी खाद्य पदार्थों की रोकथाम के लिए फूड एंड ड्रग डिपार्टमेंट अलग-अलग दुकानों से सैंपल कलेक्टर करता है। सैंपल की जांच के बाद जब विभाग अपनी रिपोर्ट देता है तो उसमें जांच किए गए सैंपल का असुरक्षित, अमानक और मिथ्या छाप होने का जिक्र करता है। विभाग की रिपोर्ट में पूरी तरह से नकली या केमिकल की मिलावट का कोई कॉलम नहीं है।

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