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कारगिल युद्ध के योद्धा दीपचंद यादव पहुंचे विदिशा: शहीदों को दी श्रद्धांजलि; बोले- जब तक सांस है, तब तक लोगों को जागरूक करता रहूंगा – Vidisha News

कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे फौजी नायक दीपचंद यादव भारत भरत भ्रमण निकले हुई है। इसी दौरान वह गुरुवार की शाम को विदिशा पहुंचे। जहां कांग्रेस के पूर्व कार्यवाहक जिलाध्यक्ष अर्पित उपाध्याय, रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य कमलेश सेन ने उनका स्वागत किया।

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युद्ध के दौरान दोनों पैर और एक हाथ गवा चुके दीपचंद यादव ने इस दौरान शहीद स्मारक पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर पूर्व जनपद अध्यक्ष रणधीर सिंह ठाकुर, अशद खान, हिमांशु लोधी, जयंत अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।

सेना के प्रति लोगों को जागरूक का उद्देश्य

उन्होंने बताया कि उनका उद्देश्य की सेना के प्रति लोगों को जागरूक करना है। आजकल युवा छोटी-छोटी बातों पर मन मुटाव करके हिम्मत हार कर आत्महत्या कर रहे हैं। मैं स्कूल कॉलेज में पहुंच कर युवाओं को जागरूक करता हूं। इसके साथ जितने भी शहीद स्मारक है। वहां जाकर श्रद्धांजलि देता हूं। शहीदों के परिवार से मिलता हूं। उनके साथ कुछ समय बताते हैं। किसी भी सैनिक के शहीद हो जाने पर लोग, राजनेता और बड़े आदमी उस परिवार के साथ खड़े होने की बात करते है, लेकिन शहीदों के परिजन आज गुमनामी के अंधेरे में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कोई भी उस परिवार का हाल-चाल नहीं पूछता, जबकि उसे परिवार ने अपना बेटा खोया है।

उन्होंने आगे कहा कि मेरे अंदर जब तक सांस है तब तक में लोगों को जागरूक करता रहूंगा। इस देश के लिए कुछ ना कुछ करता रहूंगा। मैं इस पोजीशन में भी ड्राइविंग करता हूं ताकि लोग मुझे देखें और लोगों को हौसला मिले। जब मैं इस पोजीशन में काम कर सकता हूं तब अच्छा खासा आदमी क्यों काम नहीं कर सकते।

करगिल युद्ध में अपने दोनों हाथ और पैर गंवाया

कारगिल युद्ध में मिसाइल रेजीमेंट का हिस्सा रहे दीपचन्द ने चर्चा के दौरान बताया कि किस प्रकार से उन्होंने कारगिल युद्ध लड़ा था और कैसे अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवाने के बाद भी पाकिस्तान सेना से लड़ते रहे।

उन्होंने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध के दौरान करीब 60 दिनों तक भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ी थी। उस वक्त हमारा एक ही मकसद होता था कि दुश्मनों का खात्मा। हम सप्लाई वालों को कहते थे कि खाना मिले ना मिले, लेकिन गोला बारूद ज्यादा से ज्यादा मिले। उस समय इतनी ठंड में हमें ध्यान भी नहीं था, कि हम किस तरह के कपड़ों में हैं। हमें यही ध्यान रहता था कि दुश्मन ने हमारे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। उन्हें यहां से खदेड़ना है। पाकिस्तान को हराकर ही हमारी सेना ने दम लिया था।

तीन ऑपरेशन का हिस्सा रहे

उन्होंने बताया कि उन्होंने तीन ऑपरेशन में भाग लिया है, ऑपरेशन रक्षक जम्मू एंड कश्मीर , ऑपरेशन विजय कारगिल और ऑपरेशन पराक्रम मे भाग लिया है। बह कारगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ पर 7000 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके कारगिल गए थे। जहां उन्होंने अपने साथियों को श्रद्धांजलि दी थी। उसके बाद उन्होंने दूसरा पड़ाव महाराष्ट्र से किया था। अभी तीसरा पड़ाव है चीन के साथ जो युद्ध हुआ था, 18 नवंबर को रुई के अंदर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, उस कार्यक्रम में वह शामिल होंगे और शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे।

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