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कोयले का विकल्प बनी पराली: विदिशा जिले में बना रहे ब्रिक्स; 250 रुपए क्विंटल तक बिक रहा सोयाबीन व सरसों का भूसा – hardukhedi News

विदिशा जिले के अंबानगर में किसान पर्यावरण संरक्षण करने के साथ कमाई भी कर रहे हैं। फसल कटने के बाद बचने वाली पराली को जलाने की बजाय अब उससे भूसे की ब्रिक्स बनाई जा रहीं हैं। ये गट्‌टे फैक्ट्री में कोयले की तरह उपयोग की जा रहे हैं। पराली का भूसा क्वालि

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जिले में करीब 10 ऐसे प्लांट हैं जहां ब्रिक्स बनाने का काम किया जा रहा है। इनमें से 6 बासौदा क्षेत्र में हैं। अंबानगर में प्लांट चलाने वाले ताहिर खान पिछले 10 वर्षों से भूसे की गट्‌टे बनाने का कार्य कर रहे हैं। वे कहते हैं कि किसान जिस पराली को जलाकर प्रदूषण करते थे अब उसी से कमाई कर रहे हैं।

भूसे से तैयार हुए गट्टे फैक्ट्री में कोयले की जगह उपयोग किए जाते हैं।

क्वालिटी के हिसाब से तय होती है कीमत

भूसे की क्वालिटी के अनुसार वे सोयाबीन का भूसा 230 रुपए प्रति क्विंटल से लेकर 270 रुपए प्रति क्विंटल तक खरीदते हैं। यहां बिजली से चलने वाली मशीन लगी है। उसमें एक साइड से भूसा डालते हैं, कुछ देर में प्रोसेस कर मशीन उसे ब्रिक्स में बदल देती है। इस पर प्रति क्विंटल 50 से 80 रुपए की बचत हो जाती है।

मशीन खरीदी पर मिलती 25 प्रतिशत सब्सिडी

विदिशा जिले में करीब 10 से ज्यादा प्लांट लगे हैं। लोगों को इसकी जानकारी नहीं है इसलिए वे दोनो सीजन में भूसा जला देते हैं। 10 साल पहले जब यह प्लांट लगाया था तब यह मशीन 18 लाख रुपए की लगी थी। बिजली से चलने वाली यह मशीन इस समय करीब 25 लाख रुपए की आती है। इस पर सरकार से 25 फीसदी सब्सिडी मिलती है।

इलेक्ट्रिक मशीन के जरिए बनाई जाती हैं ब्रिक्स।

इलेक्ट्रिक मशीन के जरिए बनाई जाती हैं ब्रिक्स।

इस सीजन बारिश के कारण भूसे की कमी संचालक ताहिर नक्काश खान ने बताया कि साल में वे करीब 35 हजार क्विंटल से ज्यादा भूसे से ब्रिक्स तैयार करते हैं। सोयाबीन, तिली, सरसों के भूसे को मवेशी नहीं खाते हैं। हम वही भूसा किसानों से खरीदते हैं। इसको मशीन से प्रोसेस कर ब्रिक्स तैयार करते हैं। यह ब्रिक्स फैक्ट्री में कोयले की तरह उपयोग में आती है।

इस समय सोयाबीन का भूसा खरीद रहे हैं। सीजन में करीब 15 हजार क्विंटल भूसा खरीदकर उससे ब्रिक्स तैयार कर लेते हैं। इस बार भूसे की आवक कम है। इसका बड़ा कारण यह है कि दो सप्ताह पहले तक हुई बारिश में फसल खराब हुई है। ऐसे में 30% भूसा नष्ट हो चुका है।

जानकारी ना होने से किसने भूसे में आग लगा देते हैं।

जानकारी ना होने से किसने भूसे में आग लगा देते हैं।

जानकारी ना होने से किसान जला देते हैं पराली

ताहिर कहते हैं कि कई किसान जानकारी के अभाव में सोयाबीन के भूसे का खेत में ही आग लगाकर या कंबाइन से फसल निकालकर नष्ट कर देते हैं। यदि वे आसपास के किसानों से भूसा जुटाकर यहां लाकर बेचते हैं तो उन्हें भी लाभ होता है। ऐसा करने से पर्यावरण भी बचा रहेगा।

भूसे को स्थानीय लोगों से खरीद कर स्टोर किया जाता है।

भूसे को स्थानीय लोगों से खरीद कर स्टोर किया जाता है।

स्थानीय लोगों को मिल रहा रोजगार ताहिर खान ने बताया कि पिछले साल सोयाबीन का 15 हजार क्विंटल भूसा खरीदकर ब्रिक्स बनाए थे। इसी साल गर्मियों में सरसों का करीब 20 हजार क्विंटल भूसा कलेक्ट किया था। क्षेत्र के 50 लोग ऐसे हैं जो छोटे किसानों से भूसा खरीदकर हमें यहां लाकर बेचते हैं। इसमें उन्हें भी कुछ बचत हो जाती है।

इस ब्रिक्स के उपयोग से कोयले की खपत कम होती है। किसान भूसे को बेचकर ब्रिक्स तैयार कराते हैं तो पर्यावरण की दोहरी सुरक्षा होती है।

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