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कोर्ट का फैसला: नारी की पवित्रता व मर्यादा की पूजा की जाती है, कोर्ट ने कहा- FIR रद्द नहीं होगी – Indore News

हाई कोर्ट ने एक मामले में दो पक्षों में समझौते के बावजूद दुष्कर्म और धमकी के आरोप में दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है। जस्टिस प्रेम नारायण सिंह ने कहा कि दुष्कर्म जैसे अपराधों के सामाजिक प्रभाव होते हैं। इन्हें केवल आरोपी और पीड़ित के बीच स

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न्यायालय ने अपराध की जघन्य प्रकृति के बारे में कहा कि दुष्कर्म जघन्य अपराधों में से एक है। इसके दोषियों को दंडित करने के लिए विधायिका द्वारा कड़े प्रावधान बनाए गए हैं। एक महिला हर व्यक्ति की मां, पत्नी, बहन और बेटी आदि के रूप में जीवित रहती है। उनके शरीर को उनके अपने मंदिर के रूप में जाना जाता है, क्योंकि वह विशेष रूप से अपने बलिदानों के लिए जानी जाती है।

शादी का झूठा वादा करके शिकायतकर्ता का शोषण किया हाई कोर्ट में दर्ज याचिका में आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ता ने शादी के झूठे वादे के तहत शिकायतकर्ता का यौन शोषण किया था। याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता के साथ संबंध बनाए, उसे यात्राओं पर ले गया और शादी का झांसा दिया। हालांकि, जब शिकायतकर्ता को याचिकाकर्ता की अन्य महिलाओं के साथ संलिप्तता का पता चला तो विवाद उत्पन्न हो गया। याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर अंतरंग तस्वीरें और वीडियो जारी करने की धमकी देकर शिकायतकर्ता को अपने आगे झुकने के लिए मजबूर किया।

याचिकाकर्ता ने तर्क देकर की एफआईआर रद्द करने की मांग याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोप झूठे थे, शिकायतकर्ता से संबंध सहमति से बने थे। तर्क दिया कि चूंकि दोनों पक्षों ने मामला सुलझा लिया है और शिकायतकर्ता अब मामले को बढ़ाना नहीं चाहता, इसलिए एफआईआर रद्द कर दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने फैसले में कहा, हमारे पास सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कुछ मामलों में कार्यवाही को रद्द करने की अंतर्निहित शक्तियां हैं, लेकिन उसे इन शक्तियों का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए, खासकर जघन्य अपराधों से जुड़े मामलों में।

हाई कोर्ट ने ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य का हवाला दिया कोर्ट ने ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य (2012) का हवाला दिया, जिसमें यह देखा गया था कि मानसिक भ्रष्टता के जघन्य और गंभीर अपराध या हत्या, दुष्कर्म, डकैती जैसे अपराधों को उचित रूप से रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दुष्कर्म, धमकी और आपराधिक धमकी के आरोप गंभीर प्रकृति के थे और केवल निजी विवाद नहीं थे, जिन्हें सुलझाया जा सकता था। इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर और आरोप पत्र रद्द करने की याचिका खारिज कर दी।

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