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कोर्ट ने कहा: दंडात्मक कानून में गिरोह का स्थान नहीं, इसके नाम पर किसी को परेशान नहीं कर सकते – Indore News

हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ की डिवीजन बेंच ने एनएसए के एक मामले में स्पष्ट किया है कि गिरोह को दंडात्मक कानून के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। किसी व्यक्ति की हिरासत को केवल इसलिए नहीं बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि उसके कथित गिरोह के सदस्य ने और कोई अपरा

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राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत याचिकाकर्ता की हिरासत को बढ़ाए जाने को रद्द करते हुए प्रशासनिक जज विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने यह फैसला जारी किया है। हाई कोर्ट ने कहा कि दंडात्मक कानून में गिरोह की ऐसी कोई परिभाषा नहीं है। केवल गैरकानूनी सभा के गठन का प्रावधान है।

याचिकाकर्ता उस गैरकानूनी सभा का सदस्य नहीं है, जिसने अपराध को अंजाम दिया है और वह उक्त अपराध में आरोपी नहीं है। न्यायालय ने कहा कि हिरासत के आदेशों को कई बार बढ़ाया गया है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता हर्ष को अपराधों से जोड़ने का कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं था।

इसलिए, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध के लिए हिरासत की अवधि को सार्वजनिक हित, कानून और व्यवस्था के रखरखाव के नाम पर गलत तरीके से किया गया है।

दलील- हिरासत अवधि समाप्त हो चुकी

मामला इस बात से संबंधित है कि क्या राज्य केवल पिछली आपराधिक गतिविधियों और एक गिरोह के साथ कथित जुड़ाव के आधार पर एनएसए के तहत याचिकाकर्ता की हिरासत को बढ़ा सकता है, भले ही वह उस अपराध में शामिल न हो। याचिकाकर्ता को एनएसए की धारा 3(2) के तहत हिरासत में लिया गया था और उसने वर्तमान याचिका दायर कर केवल एनएसए की अवधि को बढ़ाए जाने के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि एक बार एनएसए की धारा 12(1) के तहत तीन महीने की अवधि के लिए पुष्टिकरण आदेश पारित किया जा चुका है।

राज्य सरकार द्वारा तीन महीने की समाप्ति के बाद इसकी समीक्षा नहीं की जा सकती। वकील ने तर्क दिया कि तीन महीने की हिरासत अवधि समाप्त हो गई थी और राज्य केवल दूसरों की गतिविधियों के आधार पर इसे बढ़ा नहीं सकता था। हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद एनएसए की अवधि बढ़ाए जाने के आदेश को निरस्त कर दिया।

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