खेलो इंडिया विंटर गेम्स: प्रीति और उर्मिला, दो जांबाज लड़कियों की कहानी…
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Khelo India Winter Games में मुंबई की उर्मिला पाबले ने गुलमर्ग में वीमेंस स्नो बोर्डिंग स्लॉलेम इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता जबकि हिमाचल की प्रीति ठाकुर ने गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया.
Khelo India Winter Games: उर्मिला पाबले (दाएं), प्रीति ठाकुर (बाएं)
हाइलाइट्स
- खेलो इंडिया विंटर गेम्स की अनछुई कहानियां
- चमचमाते मेडल के पीछे के संघर्ष की दास्तां
- 9-12 मार्च तक गुलमर्ग में हुआ दूसरा फेज
अंशुल तलमले, गुलमर्ग: सिटी ऑफ ड्रीम्स मुंबई में दूर-दूर तक आपको कहीं बर्फ नहीं दिखेगी. बर्फबारी का तो सवाल ही नहीं उठता. लेकिन समंदर के किनारे बसे इस शहर में रहने वाली 21 साल की उर्मिला पाबले ने जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग में हुए खेलो इंडिया विंटर गेम्स के वीमेंस स्नो बोर्डिंग स्लॉलेम इवेंट में मेडल जीतकर हर किसी को चौंका दिया. कुछ ऐसी ही कहानी हिमाचल प्रदेश की प्रीति ठाकुर की है. जिन्होंने इसी इवेंट में गोल्ड मेडल जीता. लेकिन उनका संघर्ष थोड़ा अलग है. 23 साल की प्रीति मनाली में पैदा हुई और बचपन से ही बर्फ देख रहीं हैं, लेकिन घर की हालत ऐसी नहीं है कि अपने लिए महंगे इक्विपमेंट खरीद सके.
20 साल की उम्र में पहली बार पहली बार स्नो बोर्ड थामने वाली प्रीति ठाकुर का सपना स्कींग करने का था, लेकिन घर की हालत ऐसी नहीं थी कि इस महंगे खेल के उपकरण खरीद पाए, ऐसे में उन्होंने स्नो बोर्ड पर हाथ आजमाया. हालांकि एक ठीक-ठाक रेसिंग स्नो बोर्ड खरीदने में भी डेढ़-दो लाख रुपये लग जाते हैं. सॉफ्ट बोर्ड 50-60 हजार तक आएगा. गॉगल-हेलमेट-ग्लव्स, नी प्रोटेक्टर, वाइट प्रूफ गियर्स को विदेश से मंगवाना पड़ता है. भारत में डिमांड न होने के चलते यहां आसानी से मिलते भी नहीं.

वीमेंस स्नो बोर्डिंग स्लॉलेम इवेंट की गोल्ड मेडलिस्ट प्रीति ठाकुर
कुल्लू के कॉलेज में पढ़ने वाली प्रीति के माता-पिता छोटी-मोटी दुकान लगाते हैं. बड़ी बहन की शादी हो गई. परिवार की आय पर्यटकों पर टिकी है. न्यूज18 से खास बातचीत में प्रीती ने बताया कि अगर पैसे होते तो वह भी विदेश में ट्रेनिंग करने जाती. उनके पास कुछ और अच्छे उपकरण होते. हालांकि वह स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तारीफ करना भी नहीं भूली. खेलो इंडिया गेम्स जैसे इवेंट से बड़ा स्टेज मिलना और सरकार से प्रोत्साहन मिलने की बात भी कबूली. प्रीती कहती हैं कि इन खेलों से उनका गेम भी सुधरा.

वीमेंस स्नो बोर्डिंग स्लॉलेम इवेंट की गोल्ड मेडलिस्ट प्रीति ठाकुर
दूसरी ओर महाराष्ट्र की उर्मिला पाबले ने तो सिर्फ 17-18 दिन की ट्रेनिंग में ही ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया. मुंबई की इस लड़की ने 2023 ओलंपिक क्वालीफिकेशन में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. कई नेशनल और इंटरनेशल इवेंट जीते. जब महाराष्ट्र की टीम में अच्छे प्लेयर्स की कमी महसूस की गई तो कोच ने उनसे स्नो बोर्डिंग की तैयारी करने को कहा. स्केट बोर्डिंग के अनुभव का फायदा उन्हें स्नो बोर्डिंग में मिला. गुरुनानक खालसा कॉलेज से मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई करने वाली उर्मिला की मां सिंगल मदर है. जो समाज सेवा से भी जुड़ी हैं. बड़ा भाई प्रोफेशनल फुटबॉलर हैं.

वीमेंस स्नो बोर्डिंग स्लॉलेम इवेंट की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट उर्मिला पावले
न्यूज18 से खास बातचीत में उर्मिला कहती हैं, ‘स्केट बोर्डिंग के अनुभव का फायदा उन्हें स्नो बोर्डिंग में मिला. दोनों में बैलेंस बनाना होता है, जिसका मुझे पुराना अनुभव था इसलिए मैं तीन हफ्ते से भी कम समय की ट्रेनिंग में मेडल जीत पाईं. हालांकि स्नो बोर्ड से ये थोड़ा अलग भी है क्योंकि इसमें पहाड़ चढ़कर ऊपर जाना होता है. लेकिन अगर आपके पास कॉन्फिडेंस है तो सबकुछ कर लोगे. यहां पैर कांपते हैं, फिजिकल स्ट्रेंथ, मेंटल स्ट्रेंथनिंग के साथ ठंड का चैलेंज भी होता है. मेहनत से ही ये मेडल मिला है.’

वीमेंस स्नो बोर्डिंग स्लॉलेम इवेंट की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट उर्मिला पावले
खेलो इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. इससे न सिर्फ युवा प्रतिभा निखकर सामने आ रही है बल्कि उन्हें एक बेहतर स्टेज भी मिल रहा है. क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी जैसे ट्रेडिशनल गेम्स के अलावा अल्पाइन स्कीइंग, नॉर्डिक स्कीइंग, स्की पर्वतारोहण और स्नोबोर्डिंग जैसे खेल से न सिर्फ हम अपने टैलेंट पूल में वैरायटी ला पाएंगे बल्कि ये स्पोर्ट्स टूरिज्म को भी बढ़ावा देगा. आपको बताते चलें कि ये खेलो इंडिया विंटर गेम्स का पांचवां एडिशन था, जो दो स्टेज में पूरा हुआ. पहला स्टेज लद्दाख में 23 से 27 जनवरी तक चला जबकि दूसरा 9 मार्च को जम्मू और कश्मीर के गुलमर्ग में शुरू हुआ और 12 तारीख को खत्म हुआ. सात गोल्ड समेत कुल 18 मेडल के साथ सेना पहली पोजिशन पर रही.
New Delhi,Delhi
March 13, 2025, 13:12 IST
खेलो इंडिया विंटर गेम्स: प्रीति और उर्मिला, दो जांबाज लड़कियों की कहानी…
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