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गधा बनाम हाथी कैसे बना US इलेक्शन, दिलचस्प किस्से: 7 पर्पल राज्यों के पास व्हाइट हाउस की चाबी; रेड ट्रम्प समर्थक, ब्लू कमला के वफादार

वॉशिंगटन26 मिनट पहले

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8 सितंबर 1960 की बात है। डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जॉन एफ कैनेडी कैंपेन के लिए अमेरिका के ओरिगन राज्य पहुंचे। यहां समर्थकों ने उन्हें घेर लिया।

अपने चाहने वालों की भीड़ में कैनेडी ने कुछ ऐसा देखा कि उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। दरअसल, कैनेडी के कुछ समर्थक अपने साथ 2 गधे लेकर आए थे। कैनेडी ने गधों को सहलाया और उन्हें लाने वालों की तारीफ की।

1960 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जॉन एफ कैनेडी रैली में आए गधों को सहलाते हुए।

1960 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जॉन एफ कैनेडी रैली में आए गधों को सहलाते हुए।

इसी चुनाव में कैनेडी के खिलाफ रिपब्लिकन पार्टी से रिचर्ड निक्सन उम्मीदवार थे। वे जब हवाई में कैंपेन के लिए पहुंचे तो वहां एयरपोर्ट पर ही उनका स्वागत पेपर से बने एक बड़े हाथी से किया गया। निक्सन ने हाथी बनाने वाले की खूब तारीफ की।

रिचर्ड निक्सन पत्नी के साथ हवाई राज्य के एयरपोर्ट पर कागज बने हाथ को देखते हुए।

रिचर्ड निक्सन पत्नी के साथ हवाई राज्य के एयरपोर्ट पर कागज बने हाथ को देखते हुए।

गधे और हाथी अमेरिकी चुनाव का अहम हिस्सा हैं, इनके अलावा पर्पल, रेड और ब्लू ये 3 रंग भी 24 सालों से US इलेक्शन की पहचान बने हुए हैं, 3 चैप्टर्स में अमेरिकी राजनीति के मजेदार किस्से…

चैप्टर-1

हाथी और गधे कब बने अमेरिकी चुनाव का हिस्सा

साल 1828 की बात है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से एंड्रयू जैकसन उम्मीदवार थे। उनका मुकाबला व्हिग पार्टी के जॉन एडम्स से था। जैक्सन ने चुनाव जीतने के लिए कुछ ऐसे वादे किए जिसका एडम्स ने खूब मजाक उड़ाया।

एडम्स, जैकसन का नाम बिगाड़ कर उन्हें जैकएस (गधा) कहने लगे। जैक्सन ने इसे चैलेंज के तौर पर लिया और अपने चुनावी पोस्टरों में गधे की तस्वीर छपवाने लगे। जैक्सन वह चुनाव जीत भी गए। इसके बाद डेमोक्रेट्स ने गधों को अपने चुनावी कैंपेन का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया।

फिर 1860 का दौर आया। ये अमेरिका में चुनावी साल था। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार अब्राहम लिंकन इलिनोइस राज्य में काफी मजबूती से लीड कर रहे थे। लिंकन को प्रभावशाली दिखाने के लिए अखबारों ने उनकी जगह हाथी की तस्वीर छापनी शुरू कर दी। ये पहली बार था जब रिपब्लिकन पार्टी को हाथी के तौर पर दर्शाया गया।

हालांकि गधे के तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी और हाथी के तौर पर रिपब्लिकन पार्टी को पहचान देने में सबसे अहम भूमिका अमेरिका के चर्चित कार्टूनिस्ट थॉमस नेस्ट ने निभाई।

उन्होंने 1870 के दशक में डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए गधा और रिपब्लिकन पार्टी के लिए हाथी के कार्टून का जमकर इस्तेमाल किया। नतीजा ये हुआ कि दोनों ही पार्टियों ने गधे और हाथी को अपनी पर्मानेंट पहचान बना लिया, जो अब तक जारी है।

थॉमस नेस्ट का यह कार्टून 1879 का है। इसमें उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी को ताकतवर दर्शाने की कोशिश की है।

थॉमस नेस्ट का यह कार्टून 1879 का है। इसमें उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी को ताकतवर दर्शाने की कोशिश की है।

चैप्टर-2

पार्टी पॉलिटिक्स और फिर रंग में कैसे बंटी अमेरिकी राजनीति

30 अप्रैल 1789, जॉर्ज वॉशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने। वे किसी पार्टी से नहीं थे। उनका कहना था कि पार्टियां लोगों में फूट डालती हैं। हालांकि, वॉशिंगटन के राष्ट्रपति रहते हुए ही देश चलाने को लेकर नेताओं में मतभेद होने लगे थे। इसके चलते अमेरिका के बैंकरों और व्यापारियों ने मिलकर 1789 में फेडरलिस्ट पार्टी बनाई जो उनके हितों की बात करती थी।

अमेरिका में पार्टी पॉलिटिक्स की शुरुआत यहीं से हुई। वॉशिंगटन का डर हकीकत में बदल गया। 1789 से अब तक अमेरिका का नक्शा कई बार पार्टियों के समर्थन के आधार पर बंटा है।

1865 में जब अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बने तो उन्होंने गुलामी प्रथा का अंत कर दिया। इसके चलते अमेरिका के उत्तरी राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी की पकड़ मजबूत हुई। वहीं, लिंकन के फैसले से नाराज दक्षिण के राज्य डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन करने लगे।

159 साल बाद ये समर्थन पूरी तरह से पलट चुका है। डेमोक्रेटिक पार्टी अब उत्तरी राज्यों में मजबूत है। इन राज्यों को ब्लू स्टेट कहा जाता है। वहीं, रिपब्लिकन पार्टी को दक्षिणी राज्यों में भारी समर्थन मिलता है, इन्हें रेड स्टेट कहते हैं।

अमेरिका के इन राज्यों का लाल और नीले रंग में बंटवारा कैसे हुआ इसका भी किस्सा दिलचस्प है…

भारत में भगवा रंग के जिक्र से एकदम भारतीय जनता पार्टी ध्यान में आती है, लाल रंग से वामपंथी और नीले से बहुजन समाज पार्टी। हालांकि, अमेरिका में ऐसा नहीं है। अमेरिका में पार्टियों के रंग के पीछे कोई विचारधारा नहीं है। दोनों पार्टियों के बीच रंगों का यह बंटवारा सिर्फ 24 साल पुराना है।

CNN के मुताबिक कुछ दशक पहले तक टीवी और अखबारों के ब्लैक एंड व्हाइट होने की वजह से राजनीति में रंगों का कोई खास महत्व नहीं था। बाद में अमेरिकी अखबार और टीवी चैनल अपनी सुविधा और सोच के मुताबिक रंगों का इस्तेमाल करने लगे।

साल 1976 के चुनाव में ABC चैनल ने रिपब्लिकन पार्टी को पीला रंग तो 1980 के चुनाव में लाल रंग से दर्शाया। इसके बाद डेमोक्रेटिक पार्टी को लाल तो कभी नीला रंग से दिखाया जाने लगा। साल 2000 के चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ जब अमेरिका के पूरे मीडिया ने रिपब्लिकन पार्टी को लाल रंग और डेमोक्रेटिक पार्टी को नीले रंग से दिखाया।

दरअसल, दोनों पार्टियों में कांटे की टक्कर होने के चलते साल 2000 का चुनाव काफी दिलचस्प था। रिपब्लिकन प्रत्याशी जॉर्ज बुश और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार अल गोर के बीच हुए इस चुनाव का नतीजा 36 दिन बाद आ पाया था।

दोनों उम्मीदवारों में फ्लोरिडा के नतीजों के चलते जीत-हार का फैसला नहीं हो पा रहा था। मामला कोर्ट में चला गया। इस दौरान लोग आसानी से नतीजों को समझ पाएं इसके लिए सभी चैनलों और अखबारों में सहमति बनी कि वे रिपब्लिकन पार्टी को लाल और डेमोक्रेटिक पार्टी को नीले रंग की पहचान देंगे। तभी ये दोनों रंग अमेरिका की पार्टियों की पहचान बन गए।

CNN की कवरेज में रिपब्लिकन पार्टी के बुश को लाल और डेमोक्रेटिक पार्टी के अल गोर को नीले रंग से दिखाया गया।

CNN की कवरेज में रिपब्लिकन पार्टी के बुश को लाल और डेमोक्रेटिक पार्टी के अल गोर को नीले रंग से दिखाया गया।

चैप्टर- 3

लाल और नीले के बीच पर्पल यानी स्विंग स्टेट कैसे पलट देते हैं खेल

लाल और नीले रंगों के बंटवारे में कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जिन्हें पर्पल स्टेट कहा जाता है। ये वे राज्य हैं, जहां दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर रहती है। पर्पल स्टेट के अलावा इन्हें स्विंग स्टेट भी कहा जाता है, क्योंकि ये किसी भी पार्टी की तरफ स्विंग यानी पलट सकते हैं।

अमेरिका के 50 राज्यों और राजधानी वॉशिंगटन डीसी में कुल 538 इलेक्टोरेल वोट्स यानी सीटें हैं। अकेले स्विंग स्टेट में ही 93 सीटें हैं, जबकि चुनाव जीतने के लिए ट्रम्प या कमला को 270 सीटें जीतना जरूरी है। ऐसे में स्विंग स्टेट ही अमेरिका का राष्ट्रपति तय करते हैं।

पेंसिलवेनिया- सबसे ज्यादा वोटों वाला स्विंग स्टेट

मुद्दे- अपराध, अबॉर्शन, इकोनॉमी

स्विंग स्टेट में सबसे ज्यादा पेंसिलवेनिया में 19 इलेक्टोरल वोट हैं। यही वजह है कि दोनों ही पार्टियों ने सबसे ज्यादा प्रचार इसी राज्य में किया है। BBC के मुताबिक पिछले कुछ हफ्ते में इस राज्य में 2.4 हजार करोड़ के विज्ञापन दिखाए गए हैं, जो कि बाकी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है।

पेंसिलवेनिया में 1992 से 2020 तक सिर्फ 1 बार रिपब्लिकन पार्टी को जीत मिली है। साल 2016 में ट्रम्प ने 0.7 % वोट से हिलेरी क्लिंटन को मात दी थी। साल 2020 के चुनाव में यहां बाइडेन ने ट्रम्प को महज 1.2% के अंतर से हराया था।

नॉर्थ कैरोलिना- कमला की पार्टी ने यहां सिर्फ एक बार चुनाव जीता

मुद्दे- अवैध प्रवासी, गर्भपात

नॉर्थ कैरोलिना में रिपब्ल्किन पार्टी का वर्चस्व रहा है। 1980 से लेकर 2020 तक सिर्फ एक बार 2008 में डेमोक्रेटिक पार्टी को जीत मिली है। तब बराक ओबामा ने रिपब्लिकन कैंडिडेट जॉन मैक्केन को महज 14,177 वोटों (0.32%) से हराया था।

2020 के चुनाव में यहां ट्रम्प ने बाइडेन को लगभग 74 हजार वोटों से (1.34%) हराया था। यह मौजूदा 7 स्विंग स्टेट्स में से एकमात्र राज्य है जहां ट्रम्प को पिछले चुनाव में जीत मिली थी।

हालांकि पिछले कुछ चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच वोट मार्जिन कम होने से नॉर्थ कैरोलिना को इस बार स्विंग स्टेट की कैटेगरी में रखा गया है।

विस्कॉन्सिन- ट्रम्प बोले- यहां जीत तो समझो सब कुछ जीता

विस्कॉन्सिन लंबे समय तक ब्लू स्टेट रहा है। 1988 से 2020 तक सिर्फ एक बार (2016) में यहां रिपब्लिकन पार्टी को जीत मिल पाई। ट्रम्प तब यहां पर महज 22,748 (0.77%) वोट से जीत पाए थे। वहीं, 2020 के चुनाव में उन्हें सिर्फ 20,682 (0.63%) वोट से हार मिली थी।

हार-जीत के इस नजदीकी मुकाबले की वजह से विस्कॉन्सिन बैटलग्राउंड स्टेट बन गया है। यहां पर दोनों पार्टियां जीत के लिए काफी जोर लगा रही हैं।

रिपब्लिकन पार्टी का नेशनल कन्वेंशन जुलाई में मिल्वॉकी में हुआ था। यह विस्कॉन्सिन में है। BBC के मुताबिक ट्रम्प ने इस राज्य की अहमियत बताते हुए कहा था कि अगर वे विस्कॉन्सिन जीत लेते हैं तो वे सब कुछ जीत लेंगे।

डेमोक्रेटिक पार्टी भी विस्कॉन्सिन की अहमियत जानती है। बाइडेन के राष्ट्रपति पद की रेस छोड़ने के ठीक 2 दिन बाद कमला ने विस्कॉन्सिन में पहली रैली की थी। तब कमला ने कहा था कि व्हाइट हाउस का रास्ता विस्कॉन्सिन से होकर ही जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक विस्कॉन्सिन में डेमोक्रेटिक पार्टी की सबसे बड़ी परेशानी ग्रीन पार्टी की कैंडिडेट जिल स्टीन है। स्टीन अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दावेदार भी हैं। वह रोजगार, शिक्षा, घर, स्वास्थ्य और भोजन को मूलभूत अधिकार बनाने के वादे के साथ चुनाव लड़ रही हैं।

कई सर्वे में दावा किया गया है कि उन्हें इस चुनाव में 1% (करीब 10,000) वोट मिल सकता है। यह विस्कॉन्सिन जैसे राज्य में बड़ा अंतर पैदा कर सकता है। यही वजह है कि डेमोक्रेटिक पार्टी ने जिल को हटाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है।

डेमोक्रेटिक पार्टी ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि जिल स्टीन की उम्मीदवारी अवैध है। उन्होंने चुनावी नियमों का ठीक से पालन नहीं किया है। दरअसल, ग्रीन पार्टी की विचारधारा डेमोक्रेटिक पार्टी की विचारधारा के थोड़े करीब है। ग्रीन पार्टी की मौजूदगी से सबसे ज्यादा डेमोक्रेटिक पार्टी को नुकसान है।

मुद्दे– कई सर्वे के मुताबिक विस्कॉन्सिन में अबॉर्शन सबसे बड़ा मुद्दा है। इमर्सन कॉलेज पोलिंग के मुताबिक 57% वोटर्स ने इसे सबसे बड़ा मुद्दा माना है। इकोनॉमी यहां दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है।

नेवाडा- सबसे कम सीटों वाला स्विंग स्टेट मुद्दा- बेरोजगारी

पिछले 4 चुनावों में नेवाडा से डेमोक्रेटिक पार्टी को जीत मिली है। हालांकि, पिछले दो चुनावों में यहां वोट का मार्जिन कम रहा है। पिछले चुनाव में बाइडेन ने लगभग 2.5% वोटों से ट्रम्प को हराया था। वहीं, 2016 के चुनाव में हिलेरी ने ट्रम्प को 3.4% वोटों से मात दी थी।

पिछले 2 चुनाव में मार्जिन कम होने की वजह इसलिए नेवाडा को इस बार स्विंग स्टेट की कैटगरी में रखा है। भले ही इस स्विंग स्टेट में सबसे कम 6 इलेक्टोरल वोट हैं। इसके बावजूद 2004 से जिस पार्टी ने इस मरुस्थलीय राज्य में जीत हासिल की वही राष्ट्रपति चुनाव में जीता है।

द गार्जियन के मुताबिक नेवादा में किसी भी अमेरिकी राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। डोनाल्ड ट्रम्प पिछले कुछ समय से इकोनॉमी का मुद्दा उठा रहे हैं। वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी कोरोना से देश को उबारने का श्रेय ले रही है।

एरिजोना- रिपब्लिकन पार्टी का गढ़ 2020 में पलटी मारी

मुद्दा- अवैध शरणार्थी और अबॉर्शन

एरिजोना रिपब्लिकन पार्टी का गढ़ रहा है। 1952 से लेकर 2020 तक डेमोक्रेटिक पार्टी को सिर्फ 2 बार जीत मिला है। पहली बार 1996 में क्लिंटन और पिछले चुनाव में बाइडेन यहां से जीते थे। हालांकि, उन्होंने सिर्फ 10,457 वोटों (0.3%) से जीत हासिल की थी।

दरअसल, एरिजोना मैक्सिको से सटा हुआ राज्य है। पिछले कुछ दशकों में मैक्सिको के रास्ते दूसरे देशों से आए लोग एरिजोना में बसे हैं।

अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के मुताबिक साल 1996 में एरिजोना में व्हाइट अमेरिकी 67.6% थे। 2024 में ये घटकर 52.9% रह गए हैं। वहीं, हिस्पैनिक (स्पैनिश बोलने वाले दक्षिण अमेरिकी) आबादी जो 1996 में 22.4% थी, अब 32.9% हो गई। डेमोक्रेटिक पार्टी की नीति प्रवासी समर्थक है। ऐसे में डेमोग्राफी में हुआ इस बदलाव का फायदा इसे मिला है।

ट्रम्प ने इस बार प्रवासी समस्या को सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। उन्हें पिछले दो डिबेट में भी इस मुद्दे को उठाया था। इसके अलावा वे लगभग हर भाषण में इस मुद्दे को उठा रहे हैं।

सर्वे एजेंसी गैलप के मुताबिक एरिजोना में 41% लोग शरणार्थी समस्या को एक बड़ा मुद्दा मान रहे हैं। यह ट्रम्प के फेवर में जा सकता है।

वॉल स्ट्रीट के मुताबिक यहां पर गर्भपात एक बड़ा मुद्दा है। इस मुद्दे पर महिलाओं की रिपब्लिकन पार्टी से नाराजगी भी है। यह कमला हैरिस के पक्ष में जा सकता है।

जॉर्जिया- जहां बाइडेन ने रिपब्लिकन पार्टी को सातवीं बार जीतने से रोका

मुद्दे- इमिग्रेशन, महंगाई और हेल्थ केयर

जॉर्जिया पहले डेमोक्रेटिक पार्टी का गढ़ हुआ करता था। 1868 से 1956 तक यहां डेमोक्रेटिक पार्टी ने लगातार 27 बार चुनाव जीता। फिर नब्बे के दशक में यहां रिपबल्किन पार्टी ने अपना दबदबा बनाया।

2020 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी जॉर्जिया को लगातार सातवीं बार जीतने उतरी थी। लेकिन ऐसा नहीं कर पाई। बाइडेन ने ट्रम्प को 11,779 (0.23%) वोटों से हरा दिया। यही वजह है कि रेड स्टेट रहा जॉर्जिया पिछले चुनाव में स्विंग स्टेट बन गया।

पिछले साल ट्रम्प जॉर्जिया में ही गिरफ्तार हुए थे। उन्हें 20 मिनट के लिए जेल जाना पड़ा था। दरअसल ट्रम्प पर आरोप लगा था कि उन्होंने 2020 के चुनाव के नतीजों को पलटने की कोशिश की थी।

मिशिगन- मुस्लिम वोटर्स डेमोक्रेटिक पार्टी से नाराज, अश्वेत वोटर्स का साथ मिलेगा

मुद्दे- इकोनॉमी और इमिग्रेशन

मिशिगन में 1992 से 2020 तक सिर्फ 1 बार (2016) रिपब्लिकन पार्टी जीत पाई। 2016 के चुनाव में ट्रम्प को यहां पर सिर्फ 10,704 (0.23%) से जीत मिली थी। 2020 के चुनाव में ट्रम्प यहां करीब डेढ़ लाख वोटों से हारे।

मिशिगन के वायने में करीब 1 लाख अरब-अमेरिकी मुस्लिम हैं। गाजा में हो रहे संघर्ष से इनमें नाराजगी है। डेमोक्रेटिक पार्टी के प्राइमरी मुकाबले में 1 लाख से ज्यादा वोटरों ने ‘कोई नहीं’ विकल्प चुना था। दरअसल, ये वोटर्स इजराइल को अमेरिकी हथियार देने और गाजा में जंग न रोक पाने से नाराज थे।

मिशिगन पर ट्रम्प की भी नजर है। BBC के मुताबिक गाजा में हो रहे जंग के लेकर ट्रम्प कई बार डेमोक्रेटिक सरकार की आलोचना कर चुके है। ट्रम्प ने कहा कि अगर वे राष्ट्रपति बने तो गाजा में जंग रूकवा देंगे।

अगस्त की शुरुआत में कमला हैरिस ने मिशिगन का दौरा किया था। यहां पर उनका खूब विरोध हुआ। इस पर कमला ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि अगर आप चाहते हैं कि ट्रम्प चुनाव जीत जाएं तो मेरा विरोध कीजिए।

मिशिगन में 74% व्हाइट अमेरिकी हैं। वही करीब 14% अश्वेत मतदाता हैं। पिछली बार बाइडेन को अश्वेत वोटर्स का समर्थन मिला था। कमला हैरिस के दावेदार होने से एक बार फिर अश्वेत वोटर्स डेमोक्रेटिक पार्टी पर भरोसा जता सकते हैं।

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अमेरिका में 50 राज्य हैं। भारत की तरह वहां भी जनसंख्या के हिसाब से हर राज्य की सीटें तय हैं। जैसे उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं, उसी तरह कैलिफोर्निया में 54 इलेक्टोरल वोट्स हैं। मान लीजिए 2024 चुनाव में कमला हैरिस की पार्टी कैलिफोर्निया में 30 सीटें जीतती है और ट्रंप 24 सीटें। ऐसे में यहां के सभी 54 इलेक्टोरल वोट्स कमला हैरिस के हो जाएंगे।

‘विनर टेक्स ऑल’ यानी नंबर-1 पर रहने वाले को राज्य की सभी सीटें मिलने का नियम है। इसी वजह से 2016 के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन से 28.6 लाख कम वोट पाकर भी डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बन गए थे। पूरी खबर यहां पढ़ें…

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