मप्र पुलिस ने 19 फरवरी को बालाघाट के कान्हा रीजन में सक्रिय चार खूंखार महिला नक्सलियों को मार गिराया। इनमें नक्सल कमांडर आशा भी शामिल थी। वेश बदलने में माहिर आशा पिछले 6 साल से पुलिस को चकमा दे रही थी। उसका काम महिलाओं को नक्सली संगठन से जोड़ना था।
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वह उनसे गोंडी में बात करती थी। हालांकि वह फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोल लेती थी। गोरिल्ला वॉर में ट्रेंड आशा को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती थी। पुलिस जब-जब एनकाउंटर कर नक्सलियों को खत्म करती, आशा कुछ ही समय में नई टीम तैयार कर लेती।
पुलिस का दावा है कि कमांडर आशा समेत चार वर्दीधारी महिला नक्सलियों के मारे जाने के बाद बालाघाट के कान्हा रीजन में नक्सलियों का बेस हिल गया है।
पहले जानिए कैसे हुई नक्सलियों से मुठभेड़?
बालाघाट एसपी नागेंद्र सिंह के मुताबिक हथियारों से लैस दो दर्जन से ज्यादा नक्सलियों के बालाघाट में आने सूचना मुखबिरों ने दी थी। इस सूचना पर हॉक फोर्स और जिला पुलिस की टीम सर्चिंग के लिए निकली। इसी दौरान टीम गढ़ी के सूपखार वन रेंज के पास पहुंची तो अचानक गोलीबारी शुरू हो गई। इसके जवाब में सर्चिंग टीम ने भी फायरिंग की।
इस मुठभेड़ में भोरमदेव एरिया कमेटी की कमांडर और 20 लाख की इनामी नक्सली आशा समेत चार महिला नक्सली मारी गई। बाकी तीन महिला नक्सलियों पर भी 42 लाख रु. का इनाम घोषित था। पुलिस को इनके पास से एक इंसास, एक एसएलआर, एक 303 राइफल और दैनिक उपयोग की अन्य सामग्री मिली है।
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अब जानिए आशा ने कैसे तैयार किया नेटवर्क?
2018 में कान्हा डिवीजन आई, महिलाओं को जोड़ती थी नक्सल संगठन में भर्ती के बाद 35 साल की कमांडर आशा 2018 में सुकमा से कान्हा डिवीजन में आ गई थी। वो यहां पिछले 5-6 साल से सक्रिय थी। पुलिस के मुताबिक कान्हा डिवीजन में नक्सलियों के पहले दो ग्रुप हुआ करते थे। एक ग्रुप से एनकाउंटर के बाद एक ही ग्रुप बचा, उसमें ये प्रमोट होकर कमांडर (कान्हा भोरमदेव एरिया कमेटी) बन गई।
आशा लोकल लेवल पर महिलाओं को नक्सल मूवमेंट से जोड़ने का काम करती थी। गांव में जाकर महिलाओं से बात करके नेटवर्क खड़ा करती थी। महिलाओं को अपने ग्रुप में शामिल करने के लिए उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काया जाता था। जब महिलाएं तैयार हो जाती थीं तब उनका रिक्रूटमेंट किया जाता था।
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नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराने वाली हॉक फोर्स की टीम।
बस्तर से मिलता था कमांड, गोरिल्ला वॉर में ट्रेंड आशा जितनी शातिर थी, उतनी ही खूंखार। मुखबिरों की हत्या से लेकर क्षेत्र में जो भी नक्सल वारदात हुई हैं उसमें ये हमेशा साथ में रही थी। आशा ने मालखेड़ी में एक ग्रामीण को मुखबिरी के संदेह में मारा था। इसके अलावा एक वनकर्मी की हत्या भी की थी। कान्हा डिवीजन में नक्सलियों के साथ पुलिस के करीब 8 से 10 एनकाउंटर हो चुके हैं।
हर बार कोई ना कोई नक्सली बच जाता। फिर आधे लोग छोड़कर भाग जाते। कुछ नए लोग आकर जुड़ जाते थे, लेकिन कमांडर आशा हमेशा बनी रही, वो छोड़कर नहीं गई। वो जल्द ही फिर से अपनी टीम तैयार कर लेती थी। कान्हा भोरमदेव एरिया कमेटी छत्तीसगढ़ के बस्तर से ऑपरेट होती है। वहां से जो डायरेक्शन मिलते थे, उसे कमांडर आशा पूरा करती थी।
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कमांडर आशा की रणनीति, पुलिस के लिए चुनौती थी
- गोपनीयता: आशा अपने समूह के साथ गुप्त रूप से काम करती थी, जिससे पुलिस को उनके बारे में जानकारी नहीं मिलती थी।
- चकमा देना: अपने मुखबिरों के जरिए पुलिस को गलत इन्फॉर्मेशन पहुंचाती थी। इस तरह नक्सली चकमा देकर भाग निकलने में कामयाब हो जाते।
- फंसाना: वह अपने समूह के साथ मिलकर पुलिस को गलत जानकारी देती थी, जिससे पुलिस उनके जाल में फंस जाए।
- स्थानीय समर्थन: वह अपने ग्रुप के साथ मिलकर स्थानीय लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती थी। महिलाओं को जोड़ने के लिए भेष बदलकर घूमती थी।
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अगला कमांडर कौन, अभी पता नहीं अपने साथियों की मौत के कुछ समय बाद नक्सलियों के द्वारा पर्चा जारी किया जाता है। जिसमें उनके द्वारा साथियों की मौत को शहादत बताते हुए बदला लेने की बात कही जाती है। तब पुलिस को पता चलता है कि अब लीड कौन कर रहा है। भोरमदेव एरिया कमेटी की कमांडर आशा की मौत के बाद अगला कमांडर कौन होगा, ये अभी पता नहीं है। एसपी नागेंद्र सिंह का कहना है-
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आशा भोरमदेव एरिया कमेटी की कमांडर थी, लेकिन आखिरी कमांडर थी ऐसा नहीं कहा जा सकता। उसके खिलाफ महाराष्ट्र में भी मामले दर्ज है। वहां से जानकारी मांगी गई है।
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