चंबल नदी के तट पर ऊंट सफारी शुरू करने की तैयारी है। हालांकि इसके लिए अभी ईको-पर्यटन समिति का गठन और ऊंट सफारी के लिए तय किए जाने वाले किराए पर निर्णय लिया जाना बाकी है।
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योजना अनुसार काम चला तो प्रोजेक्ट अप्रैल से मई माह के बीच शुरू किया जा सकता है। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। सफारी का रास्ता 10 किमी रहेगा। इसके विकसित होने से ग्रामीणों को रोजगार मिल सकेगा।
फॉरेस्ट विभाग ने इसके लिए तैयारी कर ली है। रेंजर बसंत शर्मा ने बताया कि
ऊंट सफारी के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है। अप्रैल से मई के बीच इस प्रोजेक्ट को शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। इससे एक ओर चंबल क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर ऊंट पालकों को भी रोजगार के अवसर मिलेंगे।
भुरभुरी बालू से समुद्र तट का माहौल चंबल नदी के किनारे फैली महीन, भुरभुरी बालू समुद्र तट जैसा अहसास कराती है, लेकिन संसाधनों की कमी और लोगों में व्याप्त भय के कारण पर्यटक इस क्षेत्र में आने से कतराते हैं। वहीं, अटेर पुल के निर्माण से अब बाहा, जैतपुर और आगरा जाने वालों के लिए एक नया मार्ग उपलब्ध हो गया है। ऐसे में बड़ी संख्या में यूपी और एमपी की सीमा से होकर गुजरने वाले पर्यटकों को अटेर का किला और चंबल सफारी आकर्षित कर सकता है। इस अवसर का लाभ उठाते हुए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ईको-पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना बना रहा है।
सफारी दस किलोमीटर लंबी होगी फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अनुसार, ऊंट सफारी के लिए अटेर पुल से चंबल किनारे होते हुए देवालय तक का ट्रैक तैयार किया जा रहा है। इसके बाद सफारी वापस इसी मार्ग से लौटेगी। इस दौरान पर्यटक बीहड़ की प्राकृतिक सुंदरता, चंबल नदी का मनोरम दृश्य और स्वच्छ वातावरण का आनंद उठा सकेंगे। सफर लगभग दस किलोमीटर लंबा होगा। इसके अलावा, पर्यटकों की सुरक्षा, खानपान और अन्य व्यवस्थाओं को लेकर भी विचार-विमर्श किया जा रहा है।
ग्रामीणों को मिलेगा रोजगार चंबल क्षेत्र के कई गांवों में किसान परंपरागत रूप से ऊंटों का पालन करते आए हैं। पहले ऊंटों का उपयोग परिवहन और सामान ढोने के लिए किया जाता था, लेकिन वर्तमान में इन ऊंट मालिकों के लिए रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं। इसके चलते कुछ लोग ऊंटों का उपयोग अवैध गतिविधियों, जैसे कि लकड़ी और रेत की तस्करी में करने लगे हैं। ऊंट सफारी के जरिए इन ऊंट मालिकों को एक ऑप्शनल और स्थायी रोजगार देने की पहल की जा रही है।
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