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चित्रकूट में पद्मश्री डॉ. जैन का 51 साल का सफर: डकैतों के खौफ और बिना बुनियादी सुविधाओं के बीच बनाया अंतरराष्ट्रीय स्तर का अस्पताल – Maihar News

चित्रकूट के सद्गुरु नेत्र अस्पताल के निदेशक डॉ. बीके जैन को पद्मश्री सम्मान

चित्रकूट के सद्गुरु नेत्र अस्पताल के निदेशक डॉ. बी.के. जैन को नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। उन्होंने भास्कर डॉट कॉम से विशेष बातचीत में अपने 51 साल के सफर को साझा किया।डॉ. जैन ने बताया कि जब वह

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चिकित्सा सेवाएं तो दूर की बात थीं। क्षेत्र में डकैतों का ऐसा आतंक था कि लोग शाम होते ही घरों में दुबक जाते थे। 76 वर्षीय डॉ. जैन ने बताया कि 1953 में पूज्य गुरुदेव रणछोड़दास जी की भविष्यवाणी थी कि यहां एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का अस्पताल बनेगा। इसी एक उम्मीद की लौ को लेकर उन्होंने काम शुरू किया। उनका मानना है कि ग्रामीण विकास के लिए बिजली, पानी, परिवहन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बेहद जरूरी हैं। इन्हीं बुनियादी सुविधाओं से गांवों का विकास संभव है।

डॉ. जैन का कहना है कि विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मानुशासन और आत्मविश्वास बनाए रखना जरूरी है। उनके इसी दृढ़ संकल्प ने आज चित्रकूट को एक आधुनिक नेत्र अस्पताल दिया है, जो न केवल आसपास के क्षेत्र, बल्कि पूरे देश के मरीजों की सेवा कर रहा है।

चित्रकूट में सेवा का अवसर ही प्रथम पुरस्कार

पद्मश्री की असाधारण उपलब्धि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डॉ. जैन ने कहा कि उनके जीवन का पहला पुरस्कार तो तब मिला था, जब उन्हें चित्रकूट की कर्मभूमि पर जनसेवा का अवसर मिला था। विगत 51 वर्षों से चित्रकूट में ही रहकर निरंतर अंधत्व निवारण और नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सक्रिय डॉ. बी.के. जैन ने बताया कि इस उपलब्धि का श्रेय परम पूज्य गुरुदेव रणछोर्दास जी महाराज, सद्गुरु सेवा संघ के पहले चेयरमैन स्व. अरिवंद भाई मफतलाल, ट्रस्ट के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को है।

2 डॉक्टरों की डिस्पेंसरी का आज दुनिया में नाम

डॉ. जैन के मुताबिक ट्रस्ट की मदद से बुनियादी सुविधाएं जुटाई गईं। वर्ष 1973 में 12 बेड की जो डिस्पेंसरी दो डॉक्टरों के साथ रघुवीर आश्रम में खोली गई थी, आज उसी अस्पताल का दुनिया में नाम है। चित्रकूट के 300 किलोमीटर के दायरे के 40 जिलों में आई क्लीनिक हैं। हर वर्ष डेढ़ लाख से ज्यादा आई सर्जरी हो रही हैं।

सालाना 4 हजार आउटरीच कैंप लगते हैं। 60 फीसदी नॉन-पेड सुविधाएं हैं। हर ब्लॉक में प्राइमरी आई कैंप और पैरामेडिकल स्टाफ है। 25 वर्ष पहले सिर्फ मोतियाबिंद के ऑपरेशन होते थे, मगर अब रेटीना, ग्लूकोमा और कार्निया के ऑपरेशन भी किए जा रहे हैं। 1400 डॉक्टर और 2000 से ज्यादा स्टाफ हैं।

मिसेज जैन के चित्रकूट से जाने की बात से शिक्षा की दिशा में बढ़ाए कदम

डॉ. बी.के. जैन ने एक रोचक संस्मरण सुनाते हुए बताया कि 1975 में शादी के बाद बड़े बेटे को पंचगिनी, महाराष्ट्र पढ़ने के लिए भेजना पड़ा। जब दूसरा बेटा इलेश हुआ, तो कुछ साल बाद उसे भी बड़े बेटे के पास भेजने का मन बना ही रहे थे कि मिसेज जैन ने कहा कि जब मैं चित्रकूट में बेटे के साथ नहीं रह सकती, तो मुझे यहां नहीं रहना। उनकी बातों को समझते हुए, मैंने अपने साथ जुड़े लोगों की समस्याओं को समझा। तभी ट्रस्ट के जरिए पहले हिंदी मीडियम स्कूल की नींव पड़ी। आज के समय में ट्रस्ट के स्कूल और कॉलेज शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी हैं।

कलाम साहब ने भी यही पूछा था

आर्थिक मैनेजमेंट से जुड़े एक सवाल पर डॉ. जैन ने बताया कि ऐसा ही सवाल पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत एपीजे अब्दुल कलाम ने भी चित्रकूट प्रवास के दौरान मुझसे पूछा था। जिसके जवाब में मैंने कहा था कि ट्रेन का इंजन मेरा आदर्श रहा है। जैसे वह सारी कैटेगरी की बोगियों में बैठे लोगों को बिना फर्क किए मंजिल तक पहुंचाता है, उसी प्रकार सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट में भी हर तरह के मरीज आते हैं और उनका इलाज ही हमारा अंतिम स्टेशन है।

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