जंगलों से लुप्त होते औषधि और सुगंधित पौधों को बचाने का जिम्मा मध्य प्रदेश के जबलपुर के वन विज्ञानियों ने उठाया है। तेजी से इनकी लुप्त होती प्रजातियों को संरक्षित करने के साथ वे लोगों को इन्हें पहचानने और नर्सरी तैयारी करने का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। इनके इस प्रयास के दम पर करीब 450 से ज्यादा संकटग्रस्ट प्रजातियाें को लुप्त होने से अब तक बजाया जा चुका है।
By Atul Shukla
Publish Date: Wed, 27 Nov 2024 08:59:36 AM (IST)
Updated Date: Wed, 27 Nov 2024 09:05:07 AM (IST)
HighLights
- एसएफआरआइ के वैज्ञानियों ने संरक्षित किए 450 औषधीय-सुंगधित पौधे।
- बच्चे की तरह सुरक्षित रखा जा रहा,जल्द ही संख्या 600 के पार हो जाएगी।
- नर्सरी में आने वालों को पौधों की पहचान बता सिखा रहे संरक्षण का तरीका।
अतुल शुक्ला, नईदुनिया, जबलपुर (Jabalpur News)। जबलपुर के स्टेट फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएफआरआई) में मध्यप्रदेश समेत देशभर के जंगलों में लाई गई विलुप्त प्रजातियों के औषधी व सुंगधित पौधों को बचाने में बड़ी सफलता हासिल की और इंस्टीट्यूट की ही इन पौधों की नर्सरी तैयार कर इन्हें बच्चे की तरह सुरक्षित रखा जा रहा है।
संरक्षण की विधि के बारे में बता रहे हैं
खास बात यह है कि इन संकटग्रस्त प्रजातियों की तादात बढ़ाने के लिए इंस्टीट्यूट के वैज्ञानी, कृषि, वन और अन्य क्षेत्र के विज्ञानियों से लेकर वन और सेवा के अधिकारियों और कर्मचारियों व विद्यार्थियों को इनके संरक्षण की विधि के बारे में बता रहे हैं।
करीब अब तक करीब 450 प्रजातियों को लुप्त होने से बचा लिया
ऐसी प्रजातियों को चिंहित कर एसएफआरआइ के विज्ञानी लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने करीब अब तक करीब 450 प्रजातियों को लुप्त होने से बचा लिया है।
पौधे और उपयोग…
- 1. मालकांगनी- इसको ज्योतिषमति भी कहते हैं। यह आंखों की रोशनी बढ़ाने के काम आता है। कठियाबाद में भी
- 2. बाय विडंग- इसका बीज व्यक्ति के पेट के कीड़े मारने के काम आता है।
- 3. सर्पगंधा- इसका पौधा जंगल में नहीं मिलती है। इसकी जड़ को बीपी में उपयोग करते हैं।
- 4. कल्ला- इसका जिक्र महाभारत काल में भी हुआ है। इसका उपयोग चोट, घाव भरने के काम आता है।
- 5. सीता अशोक- अशोकारिष्ठ बनाने में इसका उपयोग होता है, जो महिलाओं की बीमारी के लिए उपयोगी है।
- 6. श्योनक रोहन- इसकी जड़ दशमुलानिष्ठ तैयार करने में उपयोग की जाती है, जो महिलाओं की कमजोरी दूर करने में उपयोगी होता है।
जल्द ही इनकी संख्या 600 के पार हो जाएगी
लगातार दूसरी प्रजातियों को पहचान कर उन्हें भी बचाने का काम किया जा रहा है। जल्द ही इनकी संख्या 600 के पार हो जाएगी।
हर साल हजारों लोगों को दे रहे संरक्षित करने का प्रशिक्षण
इन पौधों को बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि लोगों को इनकी जानकारी हो, लेकिन ऐसा है नहीं। पौधों के औषधी उपयोग के बारे में पता न होने की वजह से हमें इन्हें पहचान नहीं पाते और नष्ट होने देते हैं।।
लोगाें को इनकी पहचान करने के लिए ऐसी नर्सरी तैयार की
एसएफआरआइ के विज्ञानियों ने यहां आने वाले लोगाें को इनकी पहचान करने के लिए ऐसी नर्सरी तैयार की है, जिसमें लगे हर एक पौधे की जानकारी उससे जोड़ी है। इनकी पहचान आसानी से हो सके, इसके लिए भी उनकी तस्वीर और पौधों को लोगों तक पहुंचाया जा रहा है।
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