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जन्म शताब्दी पर विशेष: खेल के लिए जीते रहे प्रभाकर दादा, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जगमगाए उनके खिलाड़ी


प्रभाकर दादा कुलकर्णी का जन्म शताब्दी समारोह
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


श्रद्धेय स्व. श्री प्रभाकर दादा कुलकर्णी ने 1964 में विजयादशमी के दिन सबनिसबाग स्थित उबड़-खाबड़ कंकड़-पत्थर-कांच के टुकड़ों नुमा जमीन में इस हैप्पी  वांडरर्स संस्था के जन्म की नीव रखी। खेलने के पहले दादा मैदान पर आसपास के रहवासियों द्वारा की गई गंदगी को एक हाथ में झाड़ू और एक हाथ में सुपड़ी लेकर उठाते हुए मैदान को खेलने लायक बनाकर प्रशिक्षक की भूमिका प्रतिदिन करते थे। हैप्पी वांडरर्स का खेलने का समय शाम को 5.30 रखा, लेकिन वे मैदान पर झाड़ू लगाकर और पानी का छिटकाव करने के लिए एक घंटे पहले यानी 4.30 बजे साइकिल लेकर निकल पड़ते थे। मेरा निवास दादा के समीप होने के कारण उनका स्नेह बहुत मिला।

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1964 से लेकर आज तक खेलों के समर्पित व्यक्तियों के  निस्वार्थ परिश्रम का फल है कि असंख्य चमचमाती ट्रॉफियों और सैकड़ों पदक संस्था के पास हैं। संस्था के आज तक के सभी खिलाड़ी प्रभाकर दादा के हैप्पी वांडरर्स कर्मभूमि पर उनकी जन्म शताब्दी यज्ञ में आकर अपने आपको धन्य समझेंगे। इसके लिए हैप्पी वांडरर्स का मंच सजा है, तंबू लगे हैं, रंग-बिरंगे झंडों से सजे इंदौर स्टेडियम में संस्था के खिलाड़ी अपनी उपस्थिति दर्ज करेंगे। संस्था के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में जो उपलब्धियों हासिल की, उन खिलाड़ियों को देखने रूबरू मिलने का अवसर दादा के जन्म शताब्दी में दिखाई देगा।

दादा ने शुरुआत के दिनों में स्कूलों में खेल प्रशिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं खो खो और एथलेटिक्स के रूप में शुरू की और उनके सर्वप्रथम खिलाड़ी हैं स्व. पुष्पा भामोदकर। पुष्पा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हुए संस्था का, शहर का, प्रदेश और देश का नाम रोशन कर दादा के हौसलों को बुलंद किया। उसके बाद विमल करंदीकर, शिला बोड़खे, नांदेड़कर बहनें, ज्योत्सना पटेल, राजेश्वरी ढोलकिया, संध्या अग्रवाल, भारती खरे, रंजना चतुर, नीलिमा सुषमा, सारोलकर बहनें, नीलिमा कुलकर्णी, हेमा काबरा, हेमलता शर्मा, रीता जैन नुमा खिलाड़ियों ने भी इसमें मेहनत कर राष्ट्रीय मंच पर अपनी छाप छोड़ी।

खो-खो में दादा के खिलाड़ियों ने स्कूल नेशनल, ओपन नेशनल ऑल इंडिया, विश्वविद्यालय में विजेता होने का कीर्तिमान दशकों तक रहा। एथलेटिक्स, खो-खो, महिला हॉकी, महिला क्रिकेट में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी तैयार करने के साथ-साथ दादा ने स्कूल में टेबल-टेनिस में रीता जैन, रजनी जैन, पद्मा डीडवान को बल्ला थमाया और राष्ट्रीय क्षितिज पर पहुंचाया। वहीं महिला क्रिकेट में उनके साथी प्रभाकर सोमन की मदद से ज्योत्सना पटेल, राजेश्वरी ढोलकिया, संध्या अग्रवाल रेखा पुणेकर, रीता पटेल, मीनोती देसाई आदि को तैयार कर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उपस्थिति दर्ज कराई।

बच्चों के बीच से राजहंस को तैयार करने वाले दादा ने सारी उपलब्धि का श्रेय उनके साथी मधुकर पतकी और मधुकर सोमण, प्रभाकर लक्कड़, विनायक तारे सहित अन्य साथियों को दिया। 1942 में प्रभाकर दादा कुलकर्णी ने एक सिपाही की तरह कार्य कर समाजसेवा से जुड़े और प्रभाकर दादा ने फिर उसके बाद खेलों को अपना जीवन का लक्ष्य बनाया और उनके साथ स्थापना करने वाले साथी रहे मधुकर पतकी, विनायक तारे,  प्रभाकर लक्कड़, मधुकर सोमण।

दादा ने खो-खो, एथलेटिक्स, महिला क्रिकेट, टेबल टेनिस के क्षेत्र में इस्तेमाल स्थापित करने में हमेशा बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने उत्कृष्ट खिलाड़ी अपनी पैनी निगाहों से खोजे। स्वर्गीय प्रभाकर दादा ने पद प्रतिष्ठा मंच, हार-फूल, प्रचार-प्रसार, फोटो, संगठन से हमेशा दूर रहते हुए खेलों को अपनी सेवाएं दीं, जो अनमोल हैं। उनका कार्य किसी अवार्ड, पुरस्कार, सम्मान अथवा सत्कार का मोहताज नहीं रहा। स्वर्गीय दादा को शासन ने गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया जो उनकी पत्नी ने ग्रहण किया। आज स्वर्गीय दादा की जन्मशताब्दी अवसर को सफल बनाने में तन मन और धन से लगे हैं।

दादा तुम हमेशा याद आओगे और याद आकर हमें हमारे जीवन को सफल बनाने में जो योगदान संस्कार जो अनुशासन दिया है उसी को हमारे बच्चों में संस्कृत करने का हम संकल्प लेंगे। 

जयहिंद दादा

 

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2024-10-18 03:06:01