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जेल में मुनि प्रमाण सागर का प्रवचन: कैदियों से बोले- अपराध स्वीकार कर आत्मसुधार का मार्ग चुनें, भक्ति से मिलेगी मुक्ति – Indore News

गुणायतन ट्रस्ट और पुलकमंच के पदाधिकारियों के अनुरोध पर इंदौर के सेंट्रल जेल में शंका समाधान प्रणेता मुनि प्रमाण सागरजी महाराज ने कैदियों को जीवन में सुधार लाने का महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत अपराध नशे की लत के कारण होते हैं, इसल

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मुनि श्री ने हजारों कैदियों को संबोधित किया। उन्होंने कैदियों से अपनी गलतियों को भूलकर, रिहाई के बाद परिवार, समाज और देश के लिए अच्छे कार्य करने का आह्वान किया। कार्यक्रम के दौरान कैदियों और जेल अधिकारियों ने मुनिश्री से विभिन्न प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने समाधान किया।

जैल में समाजजन के साथ प्रवेश करते मुनिश्री

कार्यक्रम की शुरुआत में जेल अधिकारियों ने आचार्य विद्या सागर जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित किया। इस अवसर पर इंद्रकुमार वीणा सेठी, सुनील सपना गोधा और प्रदीप बड़जात्या ने जेल अधिकारियों का सम्मान किया। कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मचारी अभय भैया ने किया, जबकि जेल अधीक्षक अलका सोनकर ने मुनिश्री का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में कविता पाटनी, एडवोकेट रोहित जैन, हेमू बड़जात्या, महेंद्र निगोत्या, सुप्रिया सेठी सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा- जब तक व्यक्ति अपने अपराध को अपराध नहीं समझेगा तब तक वह अपने आप में सुधार नहीं कर सकता हो सकता है। यहां पर जो बंदी हैं, उनमें से कोई अपने आपको निरपराधी मानते हों, लेकिन वह भी यदि अपने आपको काम, क्रोध, लोभ और मोह से दूर रखकर अपना समय भगवान की भक्ति में लगाएं और अपनी आत्मा को पहचानने की कोशिश करें तो वह इस कैद से छूट कर जन्म जन्म के अपराधों से भी मुक्त हो सकते हैं।

प्रवचन सुनते कैदी

प्रवचन सुनते कैदी

हमेशा यह जानना कि बुरे का अंत बुरा ही होता है

उन्होंने कहा कि आप लोगों में से कई कैदी अन्य लोगों द्वारा किए गए अपराध की भी सजा भोग रहे होंगे। उन लोगों से मुनिश्री ने कहा कि जो लोग अपराधी होते हुए भी बाहर है और आप यहां पर हैं उनके प्रति भी क्रोध के भाव मत आने दो, हमेशा यह जानना कि बुरे का अंत बुरा ही होता है। उन्होंने कहा कि आचार्य गुरुदेव हमेशा कहते हैं कि “जब तक तेरे पुण्य का बीता नहीं करार तब तक तुझको माफ है, अवगुण करो हजार” मुनिश्री ने कहा कि यदि आप अपने आपको सुधार करना चाहते हो तो सबसे पहले अपनी उस गलती को स्वीकार करो। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के अंदर की आत्मा बहूत पवित्र होती है, लेकिन जाने अनजाने में अथवा काम क्रोध माया लोभ में आकर वह गलत रास्ता पकड़ अपराधी बन जाता है। मुनि श्री ने कहा कि अपने अतीत को याद करने की आवश्यकता नहीं, लेकिन उस अतीत से सीख लेकर हम अपने अपराधों से मुक्त हो सकते हैं”। मुनि श्री ने कहा कि हर संत का एक अतीक होता है और हर अपराधी का एक भविष्य होता है”। मैं तो यह मानता हूं कि यहां पर कोई कैदी है ही नहीं आज आप लोग हमें संत के रूप में देख रहे हो, आप लोगों में से भी यदि कोई चाहे तो वह अपने आप में परिवर्तन कर संत महात्मा के रूप में प्रकट हो सकता है।

गलती को सुधारना ही मूल लक्ष्य होना चाहिए

मुनिश्री ने कहा कि गलती करना, गलती को दोहराना और गलती से सीख लेना तथा गलती को सुधारना ही आप लोगों का मूल लक्ष्य होना चाहिए। पहले तो कोई गलती करो मत और यदि गलती हो गई है तो उसे दोहराने से बचो और अपनी गलती को स्वीकार कर उसका प्रायश्चित करो। मुनिश्री ने कहा कि आज हम गलत करके दूसरों की आंख में तो धूल झोंक सकते हैं लेकिन अपने आपकी आंखों में धोखा नहीं दे सकते, आप लोग यहां बंदी के रूप में भी रह सकते हो और अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर एक अच्छे कैदी के रूप में भी रह कर अपनी सजा कम कर सकते हो। मुनिश्री ने कहा कि कोर्ट ने जो आपको सजा दी है उस सजा को काटना तो पड़ेगा ही क्यों न अपने जीवन में परिवर्तन लाकर अपने आपको बदलने के लिए आत्मोन्मुखी होकर भविष्य का सुनहरा मौका मान सकते हो, यह मनुष्य जीवन बड़ी मुश्किलों से मिला है, देवता भी इस मनुष्य जीवन के लिए तरसते हैं इसलिए आप जेल प्रशासन के साथ तालमेल बनाकर अपने जीवन में कायाकल्प करें तथा अपने आने वाले कल को उज्जवल बनाएं, यही मेरा सभी के लिए आशीर्वाद है।

धर्म प्रभावना समिति के प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया कि इस अवसर पर जेल अधीक्षक अलका सोनकर ने भी मुनिश्री के समक्ष अपना प्रश्न रखते हुए कहा कि मैं भी चाहती हूं कि सभी कैदी अपना समय पूर्ण कर आगे अपना अच्छा भविष्य बनाएं। मुनि श्री ने लगभग डेढ़ घंटे का समय दिया तथा कई कैदियों की आपबीती भी सुनी तथा उनको मार्गदर्शन दिया। इस अवसर पर रानी अशोक डोसी, आनंद नवीन गोधा, हर्ष जैन, इन्दर सेठी, प्रदीप बड़जात्या, बाल ब्रह्मचारी अभय भैया और समाजजन भी उपस्थित रहे।

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