एमपी में ऑटोनॉमस मेडिकल कॉलेज की फैकल्टी को मान्यता के लिए अब किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी के रूप में ट्रांसफर नहीं किया जा सकेगा। मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ की डबल बेंच ने यह फैसला सुनाया। इसी के साथ कोर्ट ने ऑटोनॉमस मेडिकल कॉलेज की फैकल्टी के ट्रांसफर पर दायर की गई अपील को डिवाइड ऑफ मेरिट (योग्यता का विभाजन) करार देते हुए खारिज कर दिया।
डबल बैंच ने ऐसा आदेश जारी करने पर राज्य सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई। यह भी कहा कि यदि भविष्य में ऐसे ट्रांसफर किए गए तो इसे हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना माना जाएगा।
इंदौर की ऑटोनॉमस फैकल्टी डॉ. शिवनारायण लहरिया, डॉ. रोहित मन्याल, डॉ. अजय भट्ट और डॉ. भारत सिंह तथा भोपाल से डॉ. सुबोध पांडे, डॉ. जूही अग्रवाल समेत कई डॉक्टर्स का ट्रांसफर करते हुए उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज नीमच तथा मंदसौर भेज दिया था। नेशनल मेडिकल कमीशन की मान्यता के लिए फैकल्टी के रूप में इन डॉक्टर्स को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में स्थानांतरित कर दिया गया।
सरकार के इस निर्णय को हाईकोर्ट इंदौर में चुनौती दी गई। कोर्ट की सिंगल बैंच ने ट्रांसफर आर्डर खारिज कर दिया। सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने डबल बेंच में याचिका लगाई। अब डबल बैंच ने कहा है कि अगर दोबारा ऑटोनॉमस मेडिकल कॉलेज की फैकल्टी का ट्रांसफर किया तो ऐसे अधिकारियों पर हाईकोर्ट की अवमानना की कार्यवाही करेंगे।
मेडिकल टीचर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने हाईकोर्ट के इस फैसले को स्वास्थ्य शिक्षा में सुधार के लिए अहम निरुपित किया। हाईकोर्ट के निर्णय से न केवल अधिकारियों की मनमानी पर लगाम लगेगी बल्कि किसी भी कर्मचारी को अब अनावश्यक ट्रांसफर का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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