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तानसेन समारोह में पिता-पुत्र की जोड़ी ने बांधा समां: एटीएन कैबारे, क्रिस्टोफे रॉचेर और निकोला प्वांटार्ड के संगीत बैंड ने सर्द रात में जमाया रंग – Gwalior News

तानसेन समारोह के मंच पर शाम की सभा में देश-विदेश से आए भारतीय संगीत के कलाकारों ने बांधा समा।

तानसेन संगीत समारोह के 100वें उत्सव में तीसरे दिन शाम की पहली सभा भारतीय संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर का ध्रुपद गायन हुआ। राग यमन कल्याण में निबद्ध प्रस्तुति में ताल चौताल की बंदिश आदि देव महादेव महेश्वर…. से संगीत सभा का शंखनाद किया। इस प्रस्तुति क

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महेश्वर किला की थीम पर बने मंच पर भव्य प्रस्तुति देती महिला कलाकार

अगले क्रम में मंच पर नमूदार हुए पंडित (डॉ.) नागराजराव हवलदार। किराना एवं जयपुर-अतरौली घराना की परम्पराओं को साधे पंडित हवलदार ने कर्नाटक संगीत की राग अभोगी को अपने गायन के लिए चुना। इसमें उन्होंने मंथलाई, झपताल, द्रुत एक ताल और द्रुत तीन ताल में बंदिश सुनाकर अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।

माधुर्य से भरपूर गायन के बाद अवसर था बांसुरी की मीठी महक में डूब जाने का। भगवान श्रीकृष्ण का पसंदीदा वाद्ययंत्र बांसुरी जब अधरों पर रख वादक मन और आत्मा में बसे अथाह प्रेम, प्रीत, अनुराग को वायु प्रवाह के माध्यम से महकाता है तो ब्रज के अनंत आनन्द की अनुभूति हो जाती है। ऐसी ही अनुभूतियां तानसेन समाधि परिसर में बने पवित्र मंच के सम्मुख बैठे श्रोताओं को हुई। क्योंकि इस मंच पर देश के शीर्ष बांसुरी वादक पंडित रोनू मजूमदार की सभा सजी थी। पंडित जी मुस्कुराहट के साथ श्रोताओं से रुबरु हुए। उन्होंने अपने वादन के लिए मधुर राग रागेश्री का चयन किया। उन्होंने खमाज में एक धुन सुनाई और बनारसी ठुमरी के साथ अपने वादन को विराम दिया।

गायन करती महिला कलाकार।

गायन करती महिला कलाकार।

ब्रम्हनाद के साधनों ने अपने गायन-वादन से रसिकों को किया मंत्रमुग्ध

ग्वालियर शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव “तानसेन संगीत समारोह” के शताब्दी आयोजन के तीसरे दिन यानि मंगलवार ब्रम्हनाद के शीर्षस्थ साधनों ने अपने गायन-वादन से रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। संगीत सभा का शुभारम्भ पारम्परिक रूप से ईश्वर को अर्पित ध्रुपद गायन के साथ हुआ। तानसेन संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के विद्यार्थियों द्वारा राग देसी ताल चौताल में निबद्ध बंदिश रघुवर की छवि सुन्दर…. से भगवान श्रीराम के प्रति अनन्त आस्था एवं श्रद्धा को वर्णित किया। पखावज पर श्री जगतनारायण शर्मा ने संगत दी।

वायलिन व तबले की जुगलबंदी ने छेड़ा राग बैरागी भैरव

अगली प्रस्तुति वायलिन जुगलबंदी की थी। मंच पर नमूदार हुए सुप्रसिद्ध वायलिन वादक महेश मलिक एवं अमित मलिक। पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने वायलिन की तारों पर राग बैरागी भैरव छेड़ा। सधे हुए हाथों से उस्ताद सलीम अल्लाहवाले की तबला संगत के साथ श्रोताओं को राग का अनुराग प्रदान कराया। इसमें विलंबित एक ताल में बड़ा खयाल की गत और द्रुत तीन ताल में छोटे खयाल की बंदिश से दीर्घा में राग की सुगंध घोली। अंत में राग चारुकेशी की धुन से प्रस्तुति को विराम दिया।

सर्द रात में श्रोता शास्त्रीय संगीत का लुत्फ लेते हुए।

सर्द रात में श्रोता शास्त्रीय संगीत का लुत्फ लेते हुए।

गिटार पर राग की जादूगरी और उंगलियों की कारीगरी ने किया मंत्रमुग्ध

वायलिन की सुमधुर धुनों को सुनने के बाद अब गिटार की धुनों से साक्षात्कार का समय था। वाराणसी की सुप्रसिद्ध गिटार वादिका कमला शंकर की तानसेन समारोह के मंच पर आमद हुई। शंकर गिटार वाद्ययंत्र पर कमला जी ने राग शुद्ध सारंग छेड़ा। उंगलियों की कारीगरी और राग की जादूगरी ने कुछ इस तरह संगीतप्रेमियों की आत्मा पर दस्तक दी कि सब निहाल हो गए। उनके साथ तबले पर पंडित ललित कुमार ने संगत दी। कमला पंडित ने अपनी प्रस्तुति को सुप्रसिद्ध तबला वादक एवं पद्मविभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन को समर्पित किया।

राग हिंडोल में भव्या सारस्वत ने किया ‘नाद वेद अपरंपार’ बंदिश का गायन

अगली प्रस्तुति गायन की थी, जिसमें युवा गायिका रतलाम की भव्या सारस्वत ने अपने मधुर कंठ का परिचय दिया। उन्होंने प्रस्तुति के लिए राग हिंडोल का चयन किया। चौताल में नाद वेद अपरम्पार…. बंदिश प्रस्तुत की। इसके बाद राग मुल्तानी सूलताल में बंदिश गाकर प्रस्तुति को विराम दिया। उनके साथ पखावज पर जयंत गायकवाड़ ने संगत की।

सुर बहार के माधुर्य में डूबे रसिक

तीसरे दिन की प्रातःकालीन सभा की अंतिम प्रस्तुति में संगीतप्रेमियों ने सुरबहार के माधुर्य का आनन्द प्राप्त किया। यह आनन्द प्रदान करने सुरबहार के सुप्रसिद्ध वादक अश्विन दलवी, जयपुर से पधारे। उन्होंने राग भीमपलासी का चयन करते हुए सुरबहार के तार छेड़े। मौजूदा समय में हमारे देश में इस विरल वाद्य के जो गिने-चुने कलाकार हैं, उनमें अश्विन दलवी प्रमुख हैं। सुरबहार में स्वर-कंपन संग वह माधुर्य की जैसे वृष्टि करते हैं। सुरबहार में उन्होंने नित-नए प्रयोग किए हैं।

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