7 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी और अभिनव त्रिपाठी
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शुभ्रज्योति बरात ने मिर्जापुर सीरीज में एक्टर अली फजल के साथ काम किया था।
2018 में आई वेब सीरीज मिर्जापुर में दिखा फेमस गैंगस्टर रति शंकर शुक्ला। क, ख, ग यानी वर्णमाला न आने पर ये लोगों को मार देता है। सिर्फ 4 से 5 एपिसोड में नजर आया ये किरदार आज भी याद है। उसके डायलॉग्स पर सोशल मीडिया पर चुटकुले (मीम्स) बनते हैं।
शायद यह किरदार लोगों के दिलों पर इसलिए छा गया क्योंकि इसे निभाने वाला कलाकार खास था। इस किरदार को निभाने वाले शख्स का नाम है, शुभ्रज्योति बरात।
वैसे तो इनकी पहचान मिर्जापुर और इस साल आई त्रिभुवन मिश्रा CA टॉपर से है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ये नए-नवेले एक्टर हैं। ये 1993 से ही थिएटर कर रहे हैं। फिल्मों या वेब शो में आने का कोई इरादा नहीं था। यहां तक कि रामगोपाल वर्मा की सत्या जैसी फिल्म इनके दरवाजे पर खड़ी थी, लेकिन इन्होंने बात करना तक जरूरी नहीं समझा।
जब एहसास हुआ कि पैसे की कमी हो रही है, साथ ही उस हिसाब से पहचान भी नहीं मिल रही है, तब उन्होंने इंडस्ट्री का रुख किया।
पढ़िए संघर्ष से सफलता की कहानी, शुभ्रज्योति की जुबानी
शुभ्रज्योति ने फिल्म आर्टिकल 15 में आयुष्मान खुराना के साथ काम किया था।
पैदाइश कोलकाता की, लेकिन रहे बनारस में मेरी पैदाइश कोलकाता की है, लेकिन वहां कभी रहा नहीं। मेरे पिताजी वहां नौकरी करते थे। हम तीन भाई-बहन थे। मेरे चाचा मुझे लेकर बनारस चले गए। बनारस में पांडे हवेली के पास एक बंगाली टोला है। मेरा घर वहीं था। था, इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वो घर हमने बेच दिया है। वहां के फेमस सेंट जॉन्स स्कूल में मेरी पढ़ाई हुई। बनारस की गलियों में गोबर का बू भी मुझे सुगंधित लगता है। जी तो नहीं पा रहा हूं, लेकिन मरना मैं बनारस में चाहता हूं।
दसवीं के बाद मुंबई आए, मां-बाप के कहने पर मजबूरी में इंजीनियरिंग की इसी बीच पिताजी का ट्रांसफर मुंबई हो गया। दसवीं के बाद मैं पिताजी के पास बॉम्बे (मुंबई) आ गया। बॉम्बे में मैंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई की। इसके बाद इंजीनियरिंग की। इंजीनियरिंग क्यों की, इसकी वजह आज भी ढूंढता हूं। शायद मुझे साइंस की जगह आर्ट्स लेना चाहिए था। मन तो आर्ट्स लेने का बहुत था, लेकिन मां-बाप की महत्वाकांक्षा मेरी इच्छा पर हावी थी। उन्हें लगता था कि आर्ट्स लेकर मुझे नौकरी कौन देगा।
बारहवीं के बाद थिएटर में रुझान पैदा हो गया बारहवीं से लेकर इंजीनियरिंग में एडमिशन के बीच मेरा वास्ता थिएटर से हो गया था। थिएटर आर्ट के बारे में समझने के लिए मैं इससे जुड़ी किताबें पढ़ना लगा। फिर नादिरा बब्बर जी (राज बब्बर की पहली पत्नी) का थिएटर जॉइन कर लिया। मेरा मन अब उधर ही लगा रहता था। जब मैं ड्रामा वगैरह करता था, तब मेरी तारीफ होती थी। जीवन में पहली बार ऐसा हुआ कि मेरी तारीफ हुई। मैं काफी खुश होता था।
रामगोपाल वर्मा के ऑफिस जाकर लौट आए मैंने खुद को कभी एक अभिनेता के तौर पर नहीं देखा। मुझे लगता था कि थिएटर ही मेरी दुनिया है। मैं थिएटर करके खुश था। एक बार मशहूर राइटर-डायरेक्टर नीरज वोरा ने मुझे रामगोपाल वर्मा का पता दिया। उन्होंने कहा कि रामू एक फिल्म बना रहे हैं, उसमें वो मेन लीड की तलाश कर रहे हैं। तुम उनसे उस रोल के लिए मिल लो। मैं घर से रामगोपाल वर्मा जी के ऑफिस के लिए निकला। उनके ऑफिस के बाहर पहुंचा, कुछ देर खड़ा रहा और वापस लौट आया।
खुद पर विश्वास की कमी की वजह से ‘सत्या’ नहीं मिली मैंने सोचा कि रामगोपाल वर्मा जैसा डायरेक्टर मुझे अपनी फिल्म में मेन लीड के तौर पर क्यों लेगा? न मेरी शक्ल है न सीरत। मन में यही सब भावनाएं उमड़ रही थीं। मैं वहां से लौट आया। आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन रामू जी जिस फिल्म के लिए एक्टर ढूंढ रहे थे, वो सत्या थी।
अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने रामगोपाल वर्मा जैसे डायरेक्टर और सत्या जैसी फिल्म को ठुकरा दिया, लेकिन ऐसा नहीं है। मुझे खुद पर भरोसा ही नहीं था कि मैं वो रोल कर पाऊंगा।
मेरे अंदर सेल्फ डाउट है। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि यह मेरी पर्सनैलिटी का हिस्सा हो गया है। वर्ना, यह बात मुझे अच्छी तरह पता है कि थिएटर करने से घर नहीं चलता है। एक उम्र के बाद बच्चे जब बड़े होते हैं, तो उनकी भी कुछ इच्छाएं होती हैं, उन्हें भी पूरा करना होता है।
आर्थिक दिक्कतें हुईं तो वाइफ ने भी टोका कई बार वाइफ ने टोका भी। हालांकि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि थिएटर क्यों कर रहे हो। वे बस आर्थिक दिक्कतों पर बात करती थीं। सच बताऊं तो जैसे शराब की लत होती है, ठीक मेरे अंदर थिएटर का नशा था। एक शराबी को भी पता होता है कि पीने से कितना बड़ा नुकसान होता है। मुझे भी महसूस होता था कि थिएटर करने से पैसे नहीं आ रहे हैं, फिर भी मैं उसी में लगा रहता था।
पैसों के लिए रात भर जगकर डबिंग करते थे शुभ्रज्योति ने शुरुआत में सीरियल्स में छोटे-मोटे रोल भी किए। उन्होंने कहा- मुझे किसी के जरिए एक टीवी सीरियल में काम करने का मौका मिल गया। इसी दौरान मैं हिंदी सीरियल्स को बंगाली में डब करने का भी काम करने लगा। हर एपिसोड के लिए पैसे कम मिलते थे, लेकिन मैं रात-रात भर जगकर कई एपिसोड की डबिंग कर देता था। इससे ठीक-ठाक कमाई हो जाती थी।
इमरान हाशमी की फिल्म में रोल मिला, लेकिन मुश्किल से एक्टिंग कर पाए 2013 में इमरान हाशमी-विद्या बालन की फिल्म घनचक्कर में शुभ्रज्योति की एक छोटी भूमिका थी। कुल तीन रात की शूटिंग थी। हालांकि शुभ्रज्योति के लिए वो तीन रात बमुश्किल कटी। उन्होंने कहा- मैं वहां ऐसे एक्ट कर रहा था, जैसे न्यूकमर करते हैं। मुझसे अभिनय नहीं हो रहा था।
मैंने घर आकर खुद से पूछा कि मुझे 20 साल अभिनय करते हो गए, लेकिन कायदे से एक छोटा सा रोल नहीं हो पा रहा है? फिर फिल्म के डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता ने मुझे समझाया कि आप आराम से समय लेकर शूटिंग करिए। बाद में मुझे समझ आया कि मैं अभी भी अभिनय को गंभीरता से नहीं ले रहा था।
25 साल थिएटर करने के बाद मिर्जापुर ने बदली किस्मत मिर्जापुर सीरीज के पहले सीजन में काम करने के बाद शुभ्रज्योति आम जनता के बीच पहचाने गए। कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी ने इन्हें फोन कर ऑडिशन देने को कहा था।
पहले सीजन के सिर्फ 5 एपिसोड में दिखे, लेकिन रतिशंकर शुक्ला के किरदार में छा गए। आज भी ज्यादातर लोग इन्हें रति शंकर शुक्ला के किरदार से ही जानते हैं।
सीरीज में इनके फेमस डायलॉग- हमको ‘जाइन’ कर लो, तुमको ‘आफर’ दे रहे थे, पर आज भी मीम बनता है।
अपने किरदार पर बात करते हुए शुभ्रज्योति ने कहा- मैं रतिशंकर शुक्ला का किरदार इसलिए बेहतर कर पाया, क्योंकि मेरी जड़ें बनारस से जुड़ी हुई हैं। मैं पूर्वांचल के लोगों की भाषा और हाव-भाव को समझता हूं।
मिर्जापुर के बाद CA टॉपर से नई पहचान मिली मिर्जापुर के बाद इस साल रिलीज हुई वेब सीरीज त्रिभुवन मिश्रा CA टॉपर में भी शुभ्रज्योति को काफी पॉपुलैरिटी मिली। दरअसल, इस शो को पुनीत कृष्णा ने लिखा है। पुनीत कृष्णा ने ही मिर्जापुर की भी राइटिंग की है। पुनीत कृष्णा को मिर्जापुर में शुभ्रज्योति का काम काफी पसंद था। उन्होंने त्रिभुवन मिश्रा CA टॉपर की शूटिंग के एक साल पहले शुभ्रज्योति को अप्रोच किया था।
पिता को याद कर रोए शुभ्रज्योति इंटरव्यू के अंत में शुभ्रज्योति थोड़े भावुक हो गए। दरअसल हमने पूछा कि उनके जीवन में कोई महत्वाकांक्षा या कसक है? जवाब में उन्होंने कहा, ‘2015 में पिताजी गुजर गए। आज मैं जिस मुकाम पर हूं, शायद वे रहते तो काफी खुश होते। उन्हें देखकर मुझे भी काफी खुशी होती।
वहीं मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। बस मुझे अच्छा सा अच्छा रोल मिले। जिस स्टेज पर हूं, उससे दो कदम आगे बढ़ पाऊं। थोड़ा बहुत पैसा भी मिलता रहे ताकि जिंदगी इज्जत के साथ जी सकूं।’
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2024-11-21 23:54:25
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