निमाड़ के वनों में “संजीवनी’ है। क्योंकि जब भी बात जड़ी-बूटी की होगी तो यहां अधिकांश बीमारियों की दवा मौजूद है। वहीं, यहां की वनोपज से शासन के भंडार भी भरा रहे हैं। इस वर्ष औषधि, सागौन की बेशकीमती लकड़ियां, तेंदू पत्ता और महुआ सहित वनों से मिलने वाली
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खंडवा से लगे बुरहानपुर, खरगोन व बड़वानी के जंगल शासन की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यहां के वनों से मिलने वाले तेंदू पत्ता, महुआ, सागौन, बांस व धावड़ा गोंद देशभर में प्रसिद्ध है। वहीं, वन में मौजूद औषधीय पौधे मनुष्य के दिल से लेकर दिमाग तक की बीमारियों को दुरुस्त करने में मदद करते हैं।
जैसे नीम, पलास, घुंघची, हरड़ा, बज्रदंती, चिरचिरा, कलौंजी, निर्गुन्ड़ी (कुकराउन्दा), आंवला, भिलावा, दुग्धबेल व कोलू सहित अन्य पेड़-पौधे औषधि के रूप में काम आते हैं। निमाड़ में मौजूद औषधीय पौधे माइग्रेन, गर्भपात, तपेदिक, कुष्ठ रोग, बवासीर, सर्पदंश सहित अन्य बीमारियों को ठीक करने में मदद करते हैं।
समय-समय पर इन पेड़-पौधों की कटाई कर दवाइयों के लिए भोपाल स्थित फार्मास्युटिकल लैब भेजा जाता है। देशभर में इनसे बनी औषधियों की डिमांड है। सीसीएफ रमेश गणावा ने बताया निमाड़ के वनों में मौजूद औषधीय पौधों से मिलने वाली आय 10 लाख रुपए सालाना है।
बाकी अन्य वनोपज जिसमें सागौन, बांस, घास, तेंदू पत्ता, महुआ व महुआ गुल्ली और इको पर्यटन केंद्र (धारीकोटला, बोरियामाल, गंजारी, बावन गजा) से शासन को मिलने वाली आय एक अरब 87 करोड़ 10 लाख रुपए से ज्यादा है। इसमें वन विकास निगम से होने वाली सालाना आय 50 करोड़ रुपए भी जुड़ी है।
बड़े होते हैं यहां के तेंदू पत्ते, इसलिए देशभर में मांग
वन अफसरों ने बताया जिले के वन की मुख्य आय जंगल का तेंदू पत्ता देशभर में प्रसिद्ध है। क्योंकि यहां बड़े पत्ते होते हैं। इसका स्वाद भी अन्य जिलों के पत्तों से बेहतर है। इसीलिए इसकी डिमांड ज्यादा है। इसके लिए बाकायदा वन विभाग द्वारा मुख्यालय स्तर पर टेंडर जारी किए जाते है। जिसमें पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान समेत अन्य प्रदेशों के व्यापारी बड़ी संख्या में पत्ता खरीदने के लिए भाग लेते हैं।
72587 महिला-पुरुषों को रोजगार भी मिला
जिले में तेंदू पत्ता संग्रहण के लिए निमाड़ में वन्य ग्राम स्तर पर 33 समितियां बनाई गई है। निमाड़ में आदिवासी महिला-पुरुष संग्राहकों को साढे 20 करोड़ रुपयों का लाभ दिया गया। खंडवा जिले में 38,902 पुरुष व 33,685 महिला आदिवासी संग्राहकों को रोजगार मिला है। इनका जीवन वन और उनसे होने वाली आय पर आधारित है।
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