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यह कहना है वुशु की अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ी श्रद्धा यादव का। श्रद्धा को उम्मीद थी कि सरकार बेहतर खेल के कारण उन्हें विक्रम अवॉर्ड और सरकारी नौकरी देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो पिछले कई सालों से मध्य प्रदेश में नौकरी का इंतजार कर रही थीं, लेकिन अब उन्होंने राज्य छोड़ने का फैसला कर लिया है। यह सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं है। ऐसे कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने रोजगार न मिलने से हताश होकर राज्य छोड़ दिया है, जबकि कुछ अब भी प्रदेश सरकार से नौकरी की आस लगाए बैठे हैं।
सरकार ने छह माह पहले कुछ खिलाड़ियों को नौकरी दी थी, हालांकि कई खिलाड़ी आयोजन से दूर रहे और ये आरोप लगाया कि सरकार निम्न स्तर की नौकरी दे रही है। वहीं कई खिलाड़ी नौकरी का इंतजार ही करते रह गए हैं।
खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने को लेकर क्या हैं नियम, क्यों खिलाड़ियों को नौकरी नहीं मिल रही और जो खिलाड़ी हताश होकर मध्य प्रदेश छोड़ चुके हैं उनका क्या कहना है
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शूटिंग के ओलिंपियन ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर और नेशनल प्लेयर आशि चौकसे को चार साल पहले सरकार ने सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। ऐश्वर्य को विक्रम अवॉर्ड मिल चुका है। चार साल बीत जाने के बाद भी उन्हें अब तक सरकारी नौकरी नहीं मिली है। छह महीने पहले सरकार ने नौकरी के लिए 27 खिलाड़ियों की लिस्ट जारी की थी, जिसमें 17 ने ज्वाइन कर लिया लेकिन 10 अनुपस्थित रहे। ऐश्वर्य और आशी चौकसे का नाम इनमें नहीं था।
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सीएम हेल्पलाइन में शिकायत से भी फायदा नहीं हुआ
“मैंने 2012 में एकलव्य अवॉर्ड जीता था, सीनियर नेशनल में लगातार मेडल्स हासिल किए और इंटरनेशनल स्तर पर भी प्रदेश का नाम रोशन किया। इसके बाद भी मध्य प्रदेश में नौकरी के लिए मुझे संघर्ष करना पड़ा।”
यह कहना है शुभम पटेल का, जिन्होंने नौकरी पाने के लिए कई बार खेल विभाग को आवेदन दिए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। शुभम ने कहा कि उन्होंने विक्रम अवॉर्ड पाने के लिए भी अपना नाम दिया था, पर उपेक्षा की गई।
उन्होंने आगे कहा कि खेल विभाग में सीमित भर्तियों और पुलिस जैसी अन्य सेवाओं में भी खिलाडियों के लिए बेहद कम अवसर हैं। सीएम हेल्पलाइन तक में शिकायत दर्ज करवाई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। आखिरकार, उन्होंने 2017 में मजबूर होकर राज्य बदल लिया। अब दिल्ली में रहते हैं और पैरा-मिलिट्री फोर्स में नौकरी कर रहे हैं, जहां वे अपनी नई टीम की ओर से खेल भी रहे हैं।

नौकरी तो दूर विक्रम अवॉर्ड भी नहीं दिया
श्रद्धा 10 साल की उम्र से वुशु खेल रही हैं। 2007 से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीत चुकी हैं। वो भी इस स्थिति से गुजरी हैं। उन्होंने 2010 में एकलव्य अवॉर्ड जीता था और उम्मीद थी कि अच्छे प्रदर्शन के चलते उन्हें विक्रम अवॉर्ड भी मिलेगा।
उन्होंने कहा कि मेरे स्कोर अन्य खिलाड़ियों से अधिक थे, लेकिन मुझे विक्रम अवॉर्ड नहीं दिया गया। 9 साल से मैं इसके लिए प्रयास कर रही थी, लेकिन अब मैंने हार मान ली है।
मेरे 220 अंक आए थे, और मेरे साथ ही आवेदन करने वाली शूटिंग की एक खिलाड़ी के 70 अंक आए थे। फिर भी उसे विक्रम अवाॅर्ड दे दिया गया था। मैंने आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी तो मुझे जानकारी नहीं मिली। तब मैंने 2019 में हाई कोर्ट में इसको लेकर एक केस भी किया था, जिसमें मैं बस ये जानना चाह रही थी कि किस आधार पर उस खिलाड़ी को मेरी जगह अवॉर्ड दे दिया गया। मेरा केस क्लोज हो गया था।
मैंने इस साल 8 मार्च को फिर से केस खुलवा लिया है। श्रद्धा ने आगे कहा कि अब वह एमपी में किसी भी चीज के लिए अप्लाई नहीं करेंगी, क्योंकि वह प्रदेश छोड़ चुकी हैं। वो अब हरियाणा में रह रही हैं। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि एक खिलाड़ी का शायद हमारे प्रदेश में आवाज उठाना गलत और समय की बर्बादी है।

दिल्ली में मिली कॉन्स्टेबल की नौकरी
साक्षी जाटव का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। उनका कहना है कि हर खिलाड़ी चाहता है कि वह अपने राज्य के लिए खेले और यहीं नौकरी करे, लेकिन मध्य प्रदेश में न तो नौकरी मिल रही है और न ही खिलाड़ियों को उचित सम्मान। मैं 2019 से अवॉर्ड के लिए आवेदन कर रही थी, पर हर बार निराशा ही हाथ लगी।
आखिरकार, 2023 में दिल्ली चली गई। वहां मुझे पुलिस कांस्टेबल के पद पर नौकरी मिल गई। साक्षी ने कहा कि मध्य प्रदेश की तुलना में अन्य राज्यों की खेल नीति काफी बेहतर है। यहां नेशनल गेम्स में मेडल जीतने पर भी नौकरी मिल जाती है, जबकि मध्य प्रदेश में इंटरनेशनल स्तर तक प्रदर्शन करने के बावजूद खिलाड़ी दर-दर भटक रहे हैं।
कुछ खिलाड़ी एमपी में रहकर भी एमपी की टीम से दूर केनोइंग की खिलाड़ी आरती नाथ ने बताया कि उन्होंने 2016 में ही मध्य प्रदेश की ओर से खेलना छोड़ दिया था। कई बार आवेदन देने के बाद 2024 में सरकार की तरफ से नियुक्ति पत्र मिला पर उन्होंने नौकरी स्वीकार नहीं की।

आरती ने अब मध्य प्रदेश की तरफ से खेलना छोड़ दिया है। वो भोपाल में ही रहती हैं लेकिन अब वह सशस्त्र सीमा बल की ओर से खेलती हैं। ऐसे कुछ और खिलाड़ी हैं जो एमपी में रहकर भी एमपी की टीम से खेलना छोड़ चुके हैं।
दूसरी जगह से खेलने की क्या प्रक्रिया होती है?
भारतीय वुशु टीम की कोच सारिका गुप्ता ने बताया कि जब कोई खिलाड़ी अपना राज्य बदलता है, तो पहले वह किसी अन्य स्थान पर अपने स्पोर्ट्स बैकग्राउंड के आधार पर ही नौकरी प्राप्त करता है और उसके बाद वहां से खेलने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराता है।
सारिका ने आगे बताया कि इसके बाद मध्य प्रदेश की ओर से एक नो ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट (NOC) जारी किया जाता है, जिसमें यह स्पष्ट किया जाता है कि अब वह खिलाड़ी मध्य प्रदेश की बजाय किसी अन्य जगह से खेलेगा।

एमपी में सिर्फ विक्रम अवॉर्ड विजेता को नौकरी
मध्य प्रदेश में खिलाड़ियों की नाराजगी की मुख्य वजह राज्य सरकार की मौजूदा खेल नीति है, जिसके तहत सिर्फ विक्रम अवॉर्ड प्राप्त खिलाड़ियों को ही सरकारी नौकरी का अवसर मिलता है। मध्य प्रदेश सरकार “मध्य प्रदेश पुरस्कार नियम 2021” के तहत हर साल उत्कृष्ट खिलाड़ियों को विक्रम और एकलव्य पुरस्कार प्रदान करती है।


2005 से नहीं बदली है मध्य प्रदेश की खेल नीति
मध्य प्रदेश खेल विभाग पिछले लंबे समय से मध्य प्रदेश खेल नीति 2005 के तहत संचालित हो रहा है। लगभग दो दशक बीत जाने के बावजूद इस नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है, जबकि राष्ट्रीय और वैश्विक खेल नीतियों में लगातार परिवर्तन हुआ है।
मध्य प्रदेश में खेल नीति पहली बार 1989 में लागू की गई थी, जिसे 1994 में संशोधित किया गया और फिर 2005 में अपडेट किया गया। 2005 की खेल नीति का मुख्य उद्देश्य खेल ढांचे का विकास, प्रतिभाओं की पहचान और उन्हें संवारना, तथा खेल संस्कृति को बढ़ावा देना था।
अफसर मान रहे सब ठीक है
खेल एवं युवा कल्याण विभाग के संचालक रवि गुप्ता ने कहा कि खिलाड़ी हमें बता दें कि और किस राज्य में नेशनल गेम्स के आधार पर नौकरी दी जाती है, हम भी वैसा कर लेंगे। जब हमने उन्हें कई राज्यों की खेल नीति के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों से कहिए हमें विभाग में आकर बताएं।
उन्होंने आगे कहा कि मध्य प्रदेश में खिलाड़ियों को नौकरी के पर्याप्त अवसर मिल रहे हैं।

हालांकि ऐश्वर्य प्रताप के मामले की याद दिलाने पर उन्होंने फिर वही दोहराया कि खिलाड़ियों से कहिए हमें आकर बताएं।
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