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पंडित स्वपन चौधरी को मिला तानसेन अलंकरण: बोले- फैमिली में सभी डॉक्टर लेकिन मैं तबला वादक बना – Gwalior News

तानसेन समारोह में प्रसिद्ध तबला वादक पंडित स्वपन चौधरी को तानसेन सम्मान देते हुए।

ग्वालियर में बुधवार को तानसेन समारोह में भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र के प्रतिष्ठित तबला वादक पंडित स्वपन चौधरी (कोलकाता) को राष्ट्रीय तानसेन सम्मान वर्ष 2023 (तानसेन अलंकरण) से नवाजा गया है।

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30 मार्च 1945 को पश्चिम बंगाल में जन्मे पंडित स्वपन चौधरी दो बार के ग्रैमी पुरस्कार के लिए भी नामांकित हो चुके हैं। उन्होंने इस उपलब्धि पर दैनिक भास्कर से बात करते हुए बताया कि बचपन से ही उनको शास्त्रीय संगीत में रुचि थी। लेकिन घर का माहौल उस तरह का नहीं था। मां गाती थी और घर में सभी डॉक्टर थे।

सभी सोचते थे कि मैं भी डॉक्टर बनूंगा, लेकिन मैंने अपने भविष्य के लिए तबला चुना। पहली बार साल 1966 में जब तबला की प्रस्तुति दी तब बहुत नर्वस था। लेकिन आज गौरवांवित महसूस कर रहा हूं।

तानसेन की नगरी हम संगीतज्ञ के लिए ‘पीठ’ है। यहां आकर मुझे एक तबला वादक को यह सम्मान मिलना अपने आप में बहुत बड़ा अहसास है। किसी तबला वादक को यह सम्मान मिलना ही अपने आप में बड़ा दिन है।

जाकिर हुसैन मुझसे छह साल छोटे थे, मुझे दादा कहते थे

हाल ही में तबला वादन की पहचान उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर पंडित स्वपन चौधरी ने कहा कि मेरा उनसे संबंध 1970 से था। यह संबंध मेरा उनका संगीत का नहीं बल्कि भाई का था।

जाकिर हुसैन मुझसे छह साल छोटे थे। वो हमेशा मुझे दादा कहकर बुलाते थे। पर ऐसा तबलिया होना अपने आप में गौरव की बात है। उनका जाना सदैव खलता रहेगा। ऐसे लोग सदी में एक बार ही पैदा होते हैं। वो अंदर से भी बहुत अच्छे आदमी थे। जब जब भी साथ में बजाया तो लोग बोलते थे- ऐसा लगता था कि एक ही तबला बज रहा है।

मंच से तानसेन की धरती पर आभार व्यक्त करते हुए पंडित स्वपन चौधरी

समारोह में तबला वादक पंडित स्वपन चौधरी को मिला तानसेन सम्मान

संगीतधानी ग्वालियर में बुधवार की सांध्य बेला में तानसेन संगीत समारोह स्थल पर आयोजित हुए भव्य एवं गरिमामय अलंकरण समारोह में भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र के विश्व विख्यात तबला वादक पं. स्वपन चौधरी कोलकाता को वर्ष 2023 के “राष्ट्रीय तानसेन सम्मान” से विभूषित किया गया।

साथ ही इंदौर की संस्था सानंद न्यास को वर्ष 2023 के “राजा मानसिंह तोमर सम्मान” से अलंकृत किया गया। प्रदेश सरकार के संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेन्द्र सिंह लोधी के वर्चुअल मुख्य आतिथ्य में हजीरा स्थित सुर सम्राट तानसेन की समाधि के समीप ऐतिहासिक महेश्वर किला की थीम पर बने आकर्षक मंच पर बुधवार की सांध्यबेला में भव्य अलंकरण समारोह हुआ।

समारोह में ग्वालियर कलेक्टर रुचिका चौहान और राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की कुलगुरू प्रो. स्मिता सहस्त्रबुद्धे सहित अन्य अतिथियों ने पं. स्वपन चौधरी को राष्ट्रीय तानसेन अलंकरण के रूप में आयकर मुक्त पांच लाख रूपए की सम्मान राशि, प्रशस्ति पट्टिका व शॉल-श्रीफल भेंट किए।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संगीत सम्राट तानसेन के नाम से स्थापित यह सम्मान भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सर्वोच्च राष्ट्रीय संगीत सम्मान है। राष्ट्रीय तानसेन अलंकरण से विभूषित पंडित स्वपन चौधरी ने तानसेन सम्मान प्रदान करने के लिये राज्य सरकार के प्रति धन्यवाद व कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि मुझे शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में तमाम सम्मान मिले हैं, पर तानसेन सम्मान उन सब में सर्वोपरि है।

तानसेन समारोह के चौथे दिन एक के बाद एक प्रस्तुति हुईं।

तानसेन समारोह के चौथे दिन एक के बाद एक प्रस्तुति हुईं।

इंदौर की सानंद न्यास संस्था “राजा मानसिंह तोमर सम्मान” से अलंकृत राजा मानसिंह तोमर सम्मान के रूप में सानंद न्यास संस्था इंदौर को पाँच लाख रूपए की आयकर मुक्त राशि और प्रशस्ति पट्टिका भेंट कर सम्मानित किया गया। संस्था के अध्यक्ष जयंत माधव भिसे व सचिव संजीव बाबीकर ने यह सम्मान ग्रहण किया।

यह संस्था इंदौर में शास्त्रीय संगीत नाट्य और सांस्कृतिक उत्सव के क्षेत्र में पिछले 35 साल से काम कर रही है। राजा मानसिंह तोमर सम्मान कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रही संस्था को राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है।

जयंत भिसे ने इस अवसर पर कहा कि यह सम्मान केवल सानंद न्यास संस्था का ही नहीं, यह सभी कला रसिकों का सम्मान है। संस्था इसके लिये प्रदेश सरकार के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है।

संस्कृति मंत्री बोले-सरकार संगीत, कला और संस्कृति के संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध

संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेन्द्र सिंह लोधी ने अलंकरण समारोह को वर्चुअल संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश सरकार संगीत, कला और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिये पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रही है।

उन्होंने कहा कि हमारा देश कालजयी संस्कृति का संवाहक है। सनातन परंपराएं हमारी पहचान हैं। इसी का पालन करते हुए प्रदेश में कला व संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मूर्धन्य तबला वादक पं. स्वपन चौधरी और इंदौर की संस्था सानंद न्यास को सम्मानित कर प्रदेश सरकार गौरवान्वित है।

उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर में संगीत जगत सदैव से प्रदीप्तमान रहा है। सुर सम्राट तानसेन सहित अन्य संगीत मनीषियों ने दीर्घ साधना से इसे पुष्पित व पल्लवित करने का काम किया।

तानसेन समारोह में कई श्रोता शामिल हुए।

तानसेन समारोह में कई श्रोता शामिल हुए।

जाड़ों के लम्हों ने ओढ़े सुरों के लिबास

ग्वालियर में पखावज व तबले की मदमाती थाप से झर रहे प्रेम में पगे सुर और इन सबके बीच जब गायन की रसभीनी तानें निकलीं तो ऐसा लगा मानो सुरों की गर्माहट को जाड़ों के नरम नाजुक लम्हों ने लिबास बनाकर ओढ़ लिया है।

मौका था भारतीय शास्त्रीय संगीत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव “तानसेन संगीत समारोह” के 100वें उत्सव के चौथे दिन बुधवार को संगीत सभा का। इस सभा में ग्वालियर के उदयीमान एवं युवा शास्त्रीय गायक रोहित पंडित की उच्चकोटि की घरानेदार गायकी और सुविख्यात रबाब वादक उस्ताद दानिश असलम खाँ दिल्ली के वादन ने संगीत सभा में अनुपम रंग भरे।

ऐतिहासिक महेश्वर किला की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच पर बैठकर देश और दुनिया के सुप्रसिद्ध ब्रम्हनाद के साधक संगीत सम्राट तानसेन को स्वरांजलि व आदरांजलि अर्पित कर रहे हैं। सभा में प्रभु आराधन की ओज पूर्ण गायिकी ध्रुपद से संगीत सभा का शुभारंभ हुआ।

इसे प्रस्तुत किया शंकर गंधर्व महाविद्यालय, ग्वालियर के गुरुओं एवं शिष्यों ने। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के दौरान गणपति गणनायक सिद्धी…. बंदिश प्रस्तुत की। इस दौरान पखावज पर मुन्ना लाल भट्ट एवं हारमोनियम पर टिकेंद्र चतुर्वेदी ने संगत दी।

दैय्या कहां गए ब्रज के बसैया… पर झूम उठे श्रोता

अगली प्रस्तुति ग्वालियर घराने के रोहन पंडित के गायन की रही। रोहन पंडित, ग्वालियर के सुप्रसिद्ध पंडित परिवार की ही नई पीढ़ी के गायक कलाकार हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के लिए राग अल्हैया बिलावल का चयन किया।

इस राग में उन्होंने पारंपरिक रचना दैय्या कहां गए ब्रज के बसैया को सुमधुर एवं खुले कंठ से प्रस्तुत किया। उनकी अंतिम प्रस्तुति द्रुत की रचना कवन बटरिया कहां गई लो..रही।

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