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प्रकृति और संस्कृति को सहेजने का पर्व है बसंत पंचमी: शंकराचार्य मठ पर विशेष प्रवचन में डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया महत्व – Indore News

बसंत पंचमी का संदेश केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व और ब्रह्मांड के कल्याण के लिए प्रेरणादायक है। प्रकृति को सहेजने से जीवन खिलता है और संस्कृति को सहेजने के लिए साहित्य और सुसंस्कृत वाणी की आवश्यकता होती है। भारत से ही पूरे विश्व में ज्ञा

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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बसंत पंचमी पर आयोजित विशेष प्रवचन में रविवार को यह बात कही।

ब्रह्माजी के आह्वान पर प्रकट हुईं थी सरस्वती

महाराजश्री ने बताया कि माघ मास की शुक्ल पंचमी को किया जाता है। इस दिन बसंत का आगमन होता है। बसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु तथा सरस्वती जी का पूजन किया जाता है। बसंत पंचमी को घरों में केसरिया चावल बनाए जाते हैं। पीले वस्त्र धारण करते हैं, बच्चे पतंग उड़ाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर पृथ्वी पर आए तो उन्हें सारा वातावरण मूक-सा दिखा, जैसे किसी की वाणी ही ना हो। उदासी और मलिनता को दूर करने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का तो उन जल कणों के वृक्षों पर पड़ते ही चार भुजाओं वाली एक शक्ति उत्पन्न हुई, जो दो हाथों में वीणा बजाती तथा दो हाथों में पुस्तक और माला धारण किए हुए प्रकट हुईं। ब्रह्माजी ने वीणावादिनी से वीणा वादन कर सृष्टि में व्याप्त उदासीनता को दूर करने एवं वाणी का संचार करने को कहा। मां सरस्वती ने वीणा बजाकर सृष्टि में वाणी का संचार कर दिया इसलिए इन्हें वाणी की देवी भी कहा जाता है।

मां सरस्वती विद्या और बुद्धि देने वाली

डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया मां सरस्वती विद्या और बुद्धि को देने वाली हैं। इसीलिए इस दिन मां सरस्वती का पूजन किया जाता है। माता सरस्वती की कृपा से व्यक्ति बुद्धिमान होता है। और सारे जगत में कीर्ति प्राप्त करता है। माघ शुक्ल पंचमी को मां भगवती का पूजन पूर्व विद्या पंचमी की उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षत और अष्टदल कमल बनाते हैं। उसके अग्र भाग में गणेश जी और पीछे के भाग में बसंत, जो गेहूं की बाली का पुंज जल पूर्ण कलश में डंठल सहित रखकर बनाया जाता है। इसे रखकर सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है और उसके नीचे उक्त पुंज में रति और कामदेव की पूजन करने का विधान है। उनके ऊपर अबीर और पुष्प आदि से बसंत बनाएं उसके बाद भगवती देवी की प्रार्थना करें। कामदेव का ध्यान करके विभिन्न पुष्प, फल, पत्र आदि अर्पित करें तो गृहस्थ जीवन सुखी होकर कीर्ति प्राप्त करता है।

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