मल्टी में इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने, आईटी और इन्क्यूबेशन सेंटर से जुड़े छोटे उद्योग संचालित हो सकेंगे। यह दो तरह से बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहला, प्रदेश में करीब पौने दस लाख से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग हैं। इनकी पीड़ा यही रहती आई है कि समिट जैसे आयोजनों के माध्यम से बड़े उद्योगों के लिए तो रेड कारपेट बिछा दिया जाता है, लेकिन छोटे उद्योगों की समस्याओं पर ध्यान नहीं जाता। दूरदराज के क्षेत्रों में जमीन मुहैया करवाई जाती हैं। वहां आवागमन और अधोसंरचना विकसित करने का खर्च ही इतना होता है कि छोटे उद्योगों के लिए प्रतिस्पर्धा में बने रहना कठिन हो जाता है। ऐसे में मल्टी स्टोरी इंडस्ट्रियल एरिया इन उद्योगों की शिकायतों का समाधान बनकर उभरेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
दूसरा बिंदु यह है कि प्रदेश में स्थापित औद्योगिक क्षेत्रों की अपनी सीमा है। चाहे इंदौर के पास पीथमपुर हो या देवास का औद्योगिक क्षेत्र हो या फिर गोविंदपुरा। इन औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास आवासीय क्षेत्र तेजी से विकसित होते चले गए। फलस्वरूप औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार की गुंजाइश यहां नहीं बची। ऐसे में अगर कुछ उद्योग मल्टी स्टोरी इंडस्ट्रियल एरिया में जगह पाते हैं और फलते-फूलते हैं तो औद्योगिक क्षेत्र पर भार कम होगा। यह अवधारणा सार्थक हो और उद्योग फलें फूलें, इसके लिए कुछ और कदमों की दरकार सरकार से है। जैसे कि अनुदान योजनाओं को लचीला बनाया जाए, बिजली दरों का करंट कम किया जाए और पीएनजी पर टैक्स की दरों को तार्किक बनाया जाए। यानी उद्योगों को जमीनी समस्याओं के हल के साथ नया आकाश दिया जाए तो उड़ान सुखद होगी।
अनिल कर्मा
anil.karma@in.patrika.com
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