टीम ने एयर प्रेशर सेंसर से रिकॉर्ड किए गए ब्रीदिंग डेटा के साथ प्रयोग किया। शुरुआत में वैज्ञानिकों का मकसद सिर्फ एक एआई मॉडल को डेवलप करना था, जो सांस की बीमारियों के मरीजों की पहचान कर सके। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रीदिंग डेटा ने वैज्ञानिकों की उम्मीद से ज्यादा जानकारी दी।
रिसर्चर्स ने पाया कि एआई मॉडल एक बार किसी सब्जेक्ट की सांस के डेटा को एनालाइज कर लेता है, तो 97 फीसदी एक्युरेसी के साथ यह वेरिफाई कर सकता है कि उस व्यक्ति ने नई सांस ली है या नहीं।
रिसर्चर्स ने यह भी परखा कि क्या एआई मॉडल दो लोगों की सांस में फर्क कर पाता है या नहीं। इस काम को उसने 50 फीसदी से ज्यादा एक्युरेसी के साथ करके दिखाया। वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान की नाक, मुंह, गले से सांस अंदर जाते हुए जो टर्ब्युलन्स पैदा होता है, एआई मॉडल उसके खास पैटर्न की पहचान करता है।
हालांकि यह प्रयोग शुरुआती है, लेकिन उत्साहित करने वाला है। मौजूदा वक्त में बायोमैट्रिक अथॉन्टिकेशन के लिए कई तरह की तकनीक इस्तेमाल होती हैं, लेकिन सांस का इस्तेमाल बायोमैट्रिक के लिए होना बिलकुल नया होगा। कई फिल्मों में हमने देखा है कि मरे हुए इंसान के स्मार्टफोन व अन्य गैजेट्स को अनलॉक कर दिया जाता है। सांस से गैजेट अनलॉक होने लगेंगे, तो मरने के बाद किसी की डिवाइस अनलॉक नहीं की जा सकेगी।
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2024-01-15 08:00:12
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