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बकरी चराने से लेकर पद्मश्री तक का संघर्ष: जोधइया बाई ने सिर पर लकड़ी रखकर बेची, बांधवगढ़ में आग लगने से दुखी हुई थीं – Umaria News

मध्यप्रदेश की प्रसिद्ध बैगा कलाकर और पद्मश्री से सम्मानित जोधइया अम्मा की अब यादें बची हैं। अम्मा का 86 साल की उम्र में 15 नवंबर को निधन हो गया था। सोमवार को उमरिया के कलेक्टर और एसपी ने गृह ग्राम लोढ़ा में अंतिम विदाई दी। जोधइया अम्मा का जीवन संघर्ष

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दैनिक भास्कर ने आशीष स्वामी के भतीजे निमिष स्वामी से बात की। उन्होंने अम्मा के जीवन के संघर्ष और बकरी चराने से लेकर पद्मश्री मिलने तक के सफर के बारे में बताया।

सोमवार को कलेक्टर घरणेन्द्र कुमार जैन और एसपी निवेदिता नायडू ने अम्मा के घर पहुंच कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इसके बाद अम्मा की अर्थी को कांधा देकर अंतिम विदाई दी।

शुरू में लिपाई–पुताई फिर पकड़ी ब्रश निमिष स्वामी बताते हैं, ‘बात 2006 की है। 66 साल की जोधइया अम्मा लाेढ़ा गांव में दो बेटों सुरेश, पिंजू के साथ रहती थीं। दोनों बेटे मजदूरी करते थे। अम्मा बकरी चराती थीं। जंगल से लकड़ियां काटकर लाती थीं। लकड़ियां बेचकर 50 रुपए रोज कमाती थीं। उन दिनों चाचा आशीष स्वामी ने लोढ़ा गांव में तस्वीर खाना बनाने के लिए जमीन खरीदी।

अगले साल 2007 में काम भी शुरू हो गया। अम्मा के दोनों बेटे भी यहां काम करने लगे। इधर, रोजाना अम्मा का रुटीन चालू रहा। वह तस्वीर खाने के सामने से निकलती थीं। आशीष स्वामी उन्हें देखते थे। उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी। एक दिन उन्होंने अम्मा से कहा, ‘ जितना कमाती हो, उतना पैसा हम देंगे। आप यहां काम करो।’ इसके बाद अम्मा तस्वीर खाने में काम करने लगीं। वह यहां साफ–सफाई करने लगीं। लिपाई–पुताई करने लगीं।

कुछ ही दिनों में तस्वीर खाने ने आकार ले लिया। आशीष स्वामी दिन भर पेंटिंग बनाने में व्यस्त रहते। अम्मा उन्हें देखती थीं। साल 2008 में एक दिन आशीष स्वामी ने अम्मा को जमीन पर रंगोली बनाने के लिए कहा। अम्मा भी रंगोली बनाने लगीं। दीवार पर भी तरह-तरह के चित्र बनाने लगीं। कुछ दिनों बाद आशीष स्वामी ने उन्हें पेपर वर्क दिया। डंडे पर कपड़ा और रुई लगाकर जमीन पर पेंटिंग करती थीं।

अम्मा पेंटिंग में निपुण हाेने लगी थीं। लंबे समय बाद कागज पर ब्रश पकड़ना सिखाया। हालांकि अम्मा ने खराब चित्र बनने के डर से मना भी किया, लेकिन आशीष स्वामी ने कहा कि जितना भी खराब हो जाए, कोई बात नहीं, लेकिन बनाती रहो, जो बना सकती हो, बनाओ। धीरे-धीरे अम्मा का हाथ सध गया। वह पेंटिंग में निपुण हो गईं। आशीष स्वामी ने ही उन्हें बैगा के बारे में बताया। अम्मा ने सबसे पहले बघेसुर की पेंटिंग बनाई। दीवारों पर बैगा कला चित्रकारी शुरू कर दी। अम्मा आशीष स्वामी को गुरुजी कहकर पुकारती थीं।’

मार्केट भी उपलब्ध करवाया आशीष स्वामी ने ही अम्मा की कला को मार्केट उपलब्ध करवाया। उन्होंने भोपाल के ट्राइबल म्यूजियम में पेंटिंग भेजी। ट्राइबल प्रदर्शनी में भी पेंटिंग लगाई गई। यह पेंटिंग लोगों को बहुत पसंद आई। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में भी पेंटिंग भेजी गई। पर्यटकों ने इसे खूब पसंद किया। टूरिस्ट्स अम्मा से भी मिलते थे। वे फेमस होती चली गईं। सरकार तक भी बात पहुंचाई। प्रशासन ने भी मदद देना शुरू कर दिया।

एक बार फॉर्म रिजेक्ट, फिर 2023 में मिला पद्मश्री आशीष स्वामी ने ही साल 2019 में कला के क्षेत्र में अम्मा का फॉर्म पद्मश्री के लिए भरवा दिया। हालांकि कुछ त्रुटि होने के कारण फॉर्म में निरस्त हो गया। 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अम्मा को नारी शक्ति सम्मान से नवाजा। जोधइया अम्मा ने तब बताया था कि आशीष स्वामी मेरे गुरु हैं। उन्होंने मुझे चित्रकारी सिखाई है। मैं बहुत गरीब परिस्थिति में थी। मजदूरी गारा का काम करती थी। आशीष स्वामी ने मुझे चित्रकारी सिखाई। पहले मिट्टी, फिर कागज, लकड़ी, लौकी और तुरई पर मैंने पेंटिंग की। यह सम्मान में अपने गुरु को समर्पित करती हूं।

साल 2023 में एक बार फिर पद्मश्री के फॉर्म भरवाया। इसमें उनका चयन हो गया। इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया।

बांधवगढ़ के जंगल में लगी आग, अम्मा हुई थीं दुखी एक प्रसंग को याद करते हुए निमिष बताते हैं कि साल 2021 में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के जंगलों में आग लग गई थी। इसमें जंगल का बड़ा हिस्सा जल गया था। इस कारण वन्य प्राणी जंगल से भाग कर गांव की तरफ आ गए थे। अम्मा के गुरु आशीष स्वामी ने अम्मा को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के जंगल में आज के बारे में बताया अम्मा बड़ी दु:खी हुई। अम्मा ने आग की फोटो देखकर पेंटिंग बनाई। जब तक अम्मा की पेंटिंग नहीं बनी, तब तक वह उठी नहीं। दिनभर पेंटिंग बनाने में जुटी रहीं।

प्रधानमंत्री आवास के लिए चकरघिन्नी हुआ प्रशासन नारी शक्ति सम्मान मिलने के बाद पीएम नरेंद्र माेदी ने जोधइया अम्मा से बात की। उन्होंने सभी के सामने पीएम आवास नहीं होने की बात कही। इसके बाद प्रशासन चकरघिन्नी हो गया। आनन–फानन में अम्मा का नाम आवास की लिस्ट जुड़वाया गया। हालांकि अम्मा को पहले इससे संबंधित किसी योजना में लाभ मिल चुका था। इसके बाद भोपाल राजभवन से चिट्‌ठी आई। राजभवन से डेढ़ लाख और 50 हजार रुपए आदिवासी खाते से स्वीकृत किए गए, तब जाकर पीएम आवास बनाया गया।

बैगा जन जाति की परंपरा पर बनाई जोधइया अम्मा की पेंटिंग।

बैगा जन जाति की परंपरा पर बनाई जोधइया अम्मा की पेंटिंग।

16 साल की उम्र में शादी, 30 की उम्र में बेवा अम्मा का जन्म सन् 1939 में हुआ। 16 साल की उम्र में शादी हो गई थी। 1970 में पति का निधन हो गया, तब अम्मा की उम्र करीब 30 साल थी। इसके बाद अम्मा के पर दो बेटे और बेटी की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई। वो मजदूरी करने लगीं। कुछ महीने बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। उन्होंने पत्थर भी तोड़े। जो काम मिलता उसे कर बच्चों का पालन करने लगी।

इसके बाद बड़े बेटा सुरेश की 2023 और छोटे बेटे पिंज्जू की 2024 में मौत हो गई। परिवार में दो बहू के साथ 4 पोते और पांच पोतियां हैं। दो बहुएं और पांच पोतियां तस्वीर खाना में पेंटिंग करती हैं।

छत्तीसगढ़ जाती थी चावल बेचने निमिष बताते हैं कि अम्मा कहती थीं कि यहां से कोदो-कुटकी और चावल लेकर छत्तीसगढ़ के पेंड्रा जाते थे। वहां चावल बेच कर फिर वहां से चावल लेकर यहां आते थे। यहां पर बेचते थे, जिसमें थोड़े पैसे बच जाते थे, जिससे खर्च चलता था।

जोधइया अम्मा अपने गुरु आशीष स्वामी के साथ। अम्मा ने इन्हीं से पेंटिंग सीखी।

जोधइया अम्मा अपने गुरु आशीष स्वामी के साथ। अम्मा ने इन्हीं से पेंटिंग सीखी।

अम्मा की पेंटिंग में पर्यावरण की प्रधानता जोधइया बाई की पेंटिंग के विषय भारतीय पंरपरा में देवलोक की परिकल्पना, भगवान शिव और बाघ पर आधारित पेंटिंग प्रमुख हैं। इसमें पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव के महत्व को दिखाया है। बैगा जनजाति की संस्कृति पर बनाई उनकी पेंटिंग विदेशियों को खूब पसंद आती है। उनकी बनाई गई पेटिंग राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित होने लगी। वे शांति निकेतन विश्व भारती विश्वविद्यालय, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, आदिरंग के कार्यक्रमों में शामिल हुईं।

जनजातीय कला के लिए उन्हें कई मंचाें से सम्मानित किया गया। भोपाल में स्थित मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में जोधइया बाई के नाम से एक स्थायी दीवार बनी है। इस पर उनके बनाए हुए चित्र लगे हैं।

बैगा जनजाति की परंपरा पर बनाई उनकी पेंटिंग इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका और जापान जैसे देशों में लग चुकी है। 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उमरिया में विंध्य मैकल उत्सव में उन्हें सम्मानित किया था। सीएम जोधइया बाई से मिलने उनके कर्मस्थली लोढ़ा भी गए थे।

अम्मा जनजातीय संस्कृति, कला-परंपरा पर आधारित चित्रकला के लिए मशहूर थीं।

अम्मा जनजातीय संस्कृति, कला-परंपरा पर आधारित चित्रकला के लिए मशहूर थीं।

तस्वीर खाना को देखते हैं निमिष स्वामी तस्वीर खाना के संचालक आशीष स्वामी की मौत हो जाने के बाद तस्वीर खाना की देखरेख आशीष स्वामी के भतीजे निमिष स्वामी करते हैं। निमिष स्वामी ने बताया कि अम्मा का जाना अपूर्णीय क्षति है। अम्मा को बैगा चित्रकारी की बहुत जानकारी थी। अम्मा चाचा के जाने के बाद बहुत जानकारी मुझे देती थी।

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