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बाइक राइडिंग के शौक से बना 20 करोड़ का स्टार्टअप: कंपनी को बिकने से बचाया, अब हर साल बेच रहे 2 करोड़ के प्रोडक्ट – Madhya Pradesh News

मध्यप्रदेश में 24 और 25 फरवरी को होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में फंडिंग हासिल करने के लिए 150 स्टार्टअप ने शार्क टैंक इवेंट के लिए रजिस्ट्रेशन कराए हैं। इसी बीच मध्यप्रदेश के दो युवाओं के स्टार्टअप वंडरलूम को 5 फरवरी को सोनी टीवी पर प्रसारित होन

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इस कंपनी के फाउंडर प्रतीक वत्स भोपाल और को–फाउंडर दीपेश श्रीवास्तव सीहोर से हैं। इनकी कंपनी बाइक राइडर्स के लिए टीशर्ट, जर्सी, ग्लब्स, मास्क, राइडिंग गियर्स, हेलमेट जैसे प्रोडक्ट तैयार करती है। एक समय था जब कंपनी बिकने की नौबत आ गई थी।

इसके दोनों ने नए सिरे से प्रोडक्ट की ब्रांडिंग की और पिछले साल वंडरलूम ने 2 करोड़ के प्रोडक्ट सेल किए है। अब इनकी कंपनी की वैल्यूएशन 20 करोड़ रुपए है। इन दोनों युवकों ने कैसे अपने बाइक राइडिंग के जुनून से एक नया बिजनेस आइडिया सोचा, क्या परेशानियां झेली? पढ़िए 20 करोड़ के स्टार्टअप बनने की कहानी…

कैसे बनी वंडरलूम्स कंपनी कंपनी फाउंडर प्रतीक वत्स कहते हैं कि मैं 12 साल से राइडिंग कर रहा हूं। कॉमर्शियल राइड्स पर भी गया हूं। इस दौरान मुझे महसूस हुआ कि भारत में राइडर्स के लिए फैशनेबल यूटिलिटी प्रोडक्ट्स की कमी है। साथ ही राइडर्स के लिए हर मौसम के मुताबिक पहनने के लिए कपड़े नहीं है।

इसी डिमांड को देखते हुए 7 नवंबर 2019 को हमने वंडरलूम्स की शुरुआत की। हालांकि, ये मेरा पहला आइडिया नहीं था। इससे पहले मैंने एडवेंचर टूरिंग कंपनी शुरू की थी। मगर, मेरा फोकस क्लियर था कि मुझे करना क्या है?

प्रतीक को मिला दीपेश का साथ सीहोर के रहने वाले दीपेश श्रीवास्तव अपनी जर्नी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि मेरे पापा वेटरनरी डॉक्टर हैं। मगर, मैंने 2016 में भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद इंदौर में दो साल तक 22 हजार रु. महीने पर एक नौकरी की। इसमें मेरा मन नहीं लगता था।

दीपेश कहते हैं कि स्कूल के वक्त से ही कार, बाइक्स और ऑटोमोबाइल डिजाइनिंग में दिलचस्पी थी। नौकरी के चलते उस काम को भी नहीं कर पा रहा था। मैंने नौकरी छोड़ी और पुणे में जाकर डिजाइनिंग में एक डिप्लोमा कोर्स किया और वापस सीहोर आ गया। कुछ दिनों बाद प्रतीक की एडवेंचर टूरिंग कंपनी में बतौर इंटर्न जॉइन किया।

साल 2019 में प्रतीक को बाइकर्स के लिए यूटिलिटी प्रोडक्ट तैयार करने का आइडिया आया। इस पर हमने मिलकर काम किया। मैंने कंपनी के लोगो से लेकर टी-शर्ट, बाइक गियर्स सब डिजाइन किए। प्रतीक ने मुझे 10 हजार सैलरी पर जॉब ऑफर की। कुछ ही दिनों बाद कोरोना काल शुरू हो गया।

कोविड में सभी इंटर्न ने नौकरी छोड़ी दी। मैं और प्रतीक वर्क फ्रॉम होम करने लगे। मेरी लगन को देखते हुए प्रतीक ने मुझे कंपनी में 25 फीसदी की हिस्सेदारी ऑफर की।

कंपनी बंद करने की नौबत, सैलरी भी नहीं ली दीपेश ने बताया कि हमारे प्रोडक्ट की ऑनलाइन सेल हो रही थी। हमारे काम को पहचान मिल रही थी। सबसे बुरा ये था कि सेल होने के बावजूद हम फायदे में नहीं थे। कंपनी शुरू हुए 10 माह भी नहीं हुए थे कि इसे बंद करने की नौबत आ गई थी।

हमने नवंबर 2021 में 20 लाख रूपए की रेवेन्यू बेस्ट फंडिंग ली थी। हमने इस डील के पेपर पर ध्यान नहीं दिया था। हमें बाद में पता चला कि 9 महीने में 20 लाख रूपए रिटर्न करने हैं। इस बीच ऐसा वक्त आ गया कि हमारे पास कोई पैसा नहीं बचा।

हमें दूसरी फंडिंग भी नहीं मिल रही थी, क्योंकि बिजनेस का स्केल बहुत छोटा था और भोपाल में रहकर कनेक्शन नहीं बन पा रहे थे। प्रतीक और मैंने लॉस कम करने के लिए सैलरी लेना बंद कर दिया था। जो पैसा आ रहा था कंपनी में लगा रहे थे। प्रतीक ने फिर से जाॅब शुरू करने का मन बना लिया था।

बिजनेस समझने डिप्लोमा प्रोग्राम में एडमिशन लिया प्रतीक ने कहते हैं कि हमें लगा कि बिजनेस को और समझने की जरूरत है। जब कोविड पीरियड खत्म हो गया तो हम दोनों ने पुणे में एक डिप्लोमा प्रोग्राम में हिस्सा लिया। यह प्रोग्राम युवाओं को बिजनेस ग्रोथ के लिए मेंटरशिप प्रोवाइड करता है।

इस 6 महीने के डिप्लोमा प्रोग्राम में हमने बिजनेस को प्रोफिटेबल बनाने, मार्केटिंग, प्रोडक्शन, सप्लाई के बारे में पढ़ा। इस कोर्स के लिए मध्य प्रदेश के 2 ही स्टार्टअप सिलेक्ट हुए थे।

नए सिरे से प्रोडेक्ट डिजाइन किए, जो चल पड़े प्रतीक कहते हैं कि हमारे प्रोडक्ट्स की डिजाइनिंग हमारे ब्रांड को यूनीक बनाती है। दीपेश और मुझे दोनों को राइडिंग का शौक है। हमने अपने प्रोडेक्ट एक राइडर के हिसाब से सोचना शुरू किए। सबसे पहले देखा कि किसी स्पॉट को राइडर्स को क्या-क्या चाहिए होता है। इसके बाद हमने इंदौर में होने वाले बाहा इंडिया इवेंट समेत बाइकर्स के लिए होने वाले इन्वेंट्स में अपने प्रोडेक्ट को डिस्प्ले किया।

दीपेश कहते हैं कि देश भर के हजारों बाइकर्स से हम कॉन्टैक्ट में है। उनसे समय-समय पर फीडबैक लेते हैं। उनके फीडबैक के आधार पर हमने लद्दाख के फ्लैग्स, वहां के कैनवास से आइडिया लेकर कई डिजाइन बनाई जो बहुत पॉपुलर हुई। राइडर्स की जरूरत के हिसाब से हमारे पास प्रोडक्ट्स हैं।

कंपनी में 12 एम्पलाइज, नए प्रोडेक्ट बना रहे दीपेश ने बताया कि अभी हमारी कंपनी में 12 एम्पलाइज हैं। पहले मैं ही डिजाइन करता था अब एक और डिजाइनर हैं। अब हम चाहते हैं कि हमारा प्रोडक्ट राइडर्स के साथ सामान्य लोगों तक भी पहुंचे। धीरे- धीरे अब हम हाइकिंग, साइकिलिंग के लिए यूटिलिटी प्रोडक्ट्स जैसे कार्गो पेंट्स, टेक्निकल जर्सी, साइकिलिंग शॉट्स बनाएंगे।

इंटरनेशनल मार्केट में भी उतरने की हमारी तैयारी है। हमारी किसी कंपनी से कॉम्पिटिशन नहीं है, लेकिन दूसरी कंपनियों से मोटिवेशन जरूर मिलता है।

अब जानिए शार्ट टैंक शो में कैसे एंट्री हुई

टीवी रियलिटी शो शार्क टैंक इंडिया सीजन-4 में प्रतीक और दीपेश की कंपनी को 50 लाख की फंडिंग मिली है। दीपेश बताते हैं कि 2 साल से शो में आने के लिए ट्राई कर रहे थे। उस समय हमारे ब्रांड की इतनी पहचान और कवरेज नहीं था। इस बार अप्लाई किया।

कंपनी का पूरा पोर्टफोलियो भेजा। अगले 5 साल का विजन बताया। शो में आपने देखा ही होगा कि हमने अपना प्रोजेक्ट पिच करने के बाद 2.5% इक्विटी के लिए 50 लाख की डिमांड की। हमसे पूछा गया कि टारगेट ग्रुप क्या है तो बताया कि देश के 80 लाख राइडर्स हैं। हर महीने 2 लाख से ज्यादा 300 सीसी की बाइक बिकती है।

शार्क टैंक सीजन में प्रतीक और दीपेश ने बाइक पर एंट्री ली थी।

शार्क टैंक सीजन में प्रतीक और दीपेश ने बाइक पर एंट्री ली थी।

दो ऑफर एकसाथ मिले, फिर डील फाइनल हुई

फिर हमे शो में आने वाले रितेश ने कहा कि आपकी जैसी ही स्थिति मेरी भी थी। आपके बिजनेस में दम है। हम साथ काम कर सकते हैं, अगर आप कम्युनिटी मॉडल पर काम करने के लिए तैयार हैं तो मेरी तरफ से एक ऑफर है, इसमें नमिता भी साथ हैं- हमारा ऑफर है- 5 प्रतिशत इक्विटी, 50 लाख रूपए में। हम आपको रॉयल इनफिल्ड के मालिक से भी जुड़वाएंगे। इस तरह से हमने अपनी कंपनी के लिए फंडिंग हासिल की।

शार्क टैंक की कामयाबी अपनी टीम के साथ सेलिब्रेट करते प्रतीक और दीपेश।

शार्क टैंक की कामयाबी अपनी टीम के साथ सेलिब्रेट करते प्रतीक और दीपेश।

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