23 फरवरी की दोपहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम में कैंसर अस्पताल के शिला पूजन में शामिल हुए तो उन्होंने धीरेंद्र शास्त्री को अपना छोटा भाई बताया। इसके ठीक दो दिन बाद 26 फरवरी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी पहुंचीं। राष्ट्रपति
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ये पहला मौका है, जब किसी धर्मस्थल से जुड़े किसी काम में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों पहुंचे हों। महज 4 साल पहले पर्ची के चमत्कार से चर्चित हुए धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के लिए इन दोनों हस्तियों का उनके धाम में पहुंचना भी चमत्कार से कम नहीं था, लेकिन ये सब अचानक नहीं हुआ।
आखिर कब लिखी गई इसकी स्क्रिप्ट? धीरेंद्र शास्त्री चार साल में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चहेते कैसे बन गए? बीजेपी को इससे क्या राजनीतिक फायदा मिलेगा? इसे लेकर दैनिक भास्कर ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट से बात की। पढ़िए रिपोर्ट…
पहले जानिए, धीरेंद्र शास्त्री में ऐसा क्या जो पीएम और राष्ट्रपति पहुंचे इसका जवाब देते हुए बीजेपी के एक सीनियर लीडर नाम न छापने के आग्रह के साथ उल्टा सवाल करते हैं कि धीरेंद्र शास्त्री के पास क्या नहीं है, जो बीजेपी के लिए मुफीद नहीं है। वे पांच प्रमुख बातें गिनाते हैं-
1. हिंदू एकता की बात करने वाला चेहरा: सीनियर लीडर कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी मंशा है कि जात-पात में बंटे हिंदू समाज को एक करने की जरूरत है। शास्त्री जात-पात से ऊपर हिंदू समाज में समरसता की बात करते हैं, इसलिए वे संघ के लिए सबसे मुफीद चेहरा हैं।
2. बुंदेलखंड जैसे रुढिवादी क्षेत्र में दलित दूल्हों को घोड़े पर बैठाना: शास्त्री ने दूसरे संतों से अलग सामाजिक चेतना की अलख जगाने के लिए बुंदेलखंड में उत्पीड़न के शिकार दलित दूल्हों को घोड़ियों पर बैठाकर ये संदेश दिया कि हिंदुओं में कोई छोटी-बड़ी जाति नहीं है। ये प्लान भी बहुत सोच-समझकर किया गया।
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बागेश्वर धाम में 26 फरवरी को आयोजित कन्या सामूहिक विवाह में 251 दूल्हे घोड़ी पर बैठे।
3. मंदिर की दान पेटियों के पैसे से गरीब बेटियों के विवाह: बीते कई सालों से धीरेंद्र शास्त्री बागेश्वर धाम में गरीब कन्याओं के विवाह सामूहिक समारोह में दान के खर्च पर कर रहे हैं। 26 फरवरी को भी यहां 251 गरीब बेटियों के विवाह का खर्च मंदिर की दान पेटी में आए पैसों से हुआ। ये पहल भी संघ और रणनीतिकारों को बेहद पसंद आई।
4. सबसे अलग स्टाइल, भीड़ जुटाने वाला युवा संत: बागेश्वर धाम में जुट रही भीड़ भी बीजेपी को धीरेंद्र शास्त्री के प्रमोशन की वजह दिखती है। बीजेपी का मानना है कि देश में ऐसा कोई युवा संत नहीं है, जिसका इतना गहरा प्रभाव हो। सोशल मीडिया पर फैन फॉलोइंग और अलग स्टाइल भी शास्त्री को खास बनाती है।
5. यूपी, बिहार और झारखंड तक प्रभाव: उत्तर भारत में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का प्रभाव यूपी, बिहार और झारखंड तक है। आने वाले समय में बिहार में सबसे पहले चुनाव हैं। बीजेपी जानती है कि शास्त्री की एक अपील उनकी राह आसान कर सकती है।
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धीरेंद्र शास्त्री ने अपनी जगह खुद बनाई धीरेंद्र शास्त्री की पहचान बागेश्वर धाम के पीठाधीश के रूप में है। वे कभी अपने गांव गढ़ा में भगवान सत्यनारायण की कथा सुनाते थे। गांव में हनुमानजी का मंदिर है। इसे बालाजी और बागेश्वर धाम नाम से जाना जाता है। इसी मंदिर में देवकी नंदन ठाकुर को रामकथा के लिए बुलाया जाता था। फिर धीरेंद्र खुद रामकथा के साथ ‘दिव्य दरबार’ लगाने लगे।
शास्त्री के दिव्य दरबार को कामयाबी कोरोनाकाल के बाद मिली। सोशल मीडिया से शुरू हुआ उनकी प्रसिद्धि का सफर 7 समंदर पार तक पहुंच गया। 14 जून 2022 को लंदन की संसद में उन्हें सम्मानित किया गया था।
धीरेंद्र शास्त्री को प्रवचन का ब्रेक देने वाले कांग्रेस के पूर्व विधायक आलोक चतुर्वेदी कहते हैं- वे अपनी मेहनत और अपनी काबिलियत से यहां पहुंचे हैं। उनसे पूछा- उन्हें सबसे पहला ब्रेक तो आपने दिया था? इस सवाल पर चतुर्वेदी कहते हैं कि हर किसी की कोई न कोई मदद करता है लेकिन जो काबिल होता है, वही अपनी जगह बना पाता है।
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एक्सपर्ट बोले- दलितों में भरोसा बढ़ाने की कोशिश वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं कि बुंदेलखंड जैसे पिछड़े हुए अंचल में जहां जात-पात का सबसे ज्यादा भेदभाव रहा है, वहां दलित दूल्हों को घोड़ी पर बैठाना लीक से हटकर किया हुआ प्रयोग है। एक ही पंगत में सारी जातियों के लोग भोजन करें तो ये भरोसा और मजबूत होता है।
जहां तक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बागेश्वर धाम में पहुंचने का सवाल है तो ये भी बहुत चौंकाने वाला है। उसके पीछे कई वजह हैं। हमें ये समझना होगा कि पहले बीजेपी का फोकस आदिवासियों पर रहा है। आदिवासियों को अपने पाले में लाने में बीजेपी काफी हद तक कामयाब भी रही है।
अनुसूचित जाति वर्ग की बात है तो इस वर्ग की पैरवी करने वाली कई पॉलिटिकल पार्टियां हैं। बीजेपी धीरेंद्र शास्त्री के जरिए दलितों में भरोसा बढ़ाने की कोशिश करती नजर आ रही है।
सिंह कहते हैं कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब किसी धर्म स्थल ने कोई सेवा प्रकल्प शुरू किया हो। ऐसा पहले से होता रहा है।
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बीजेपी की राजनीति को धीरेंद्र शास्त्री सूट करते हैं बुंदेलखंड अंचल में धीरेंद्र शास्त्री को करीब से समझने वाले पत्रकार सचिन चौधरी कहते हैं- लाखों बात की एक बात ये है कि बीजेपी की राजनीति को बाबा सूट करते हैं। सनातन, हिंदू राष्ट्र और जात-पात का भेदभाव मिटाने की बात कहने वाला बाबा और कहां मिलेगा?
ये भी समझना पड़ेगा कि आने वाले समय में बिहार में चुनाव हैं। भोजपुरी एक्टरों का एक बड़ा तबका बाबा का भक्त है। ऐसे में इसके राजनीतिक फायदे भी बीजेपी को मिलेंगे। दूसरी बड़ी बात ये भी है कि यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के अलावा बीजेपी के पास अभी कोई दूसरा हिंदू चेहरा नहीं है। ये भी संभव है कि बीजेपी धीरेंद्र शास्त्री को विकल्प बनाने की कोशिश कर रही है।
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बागेश्वर धाम में राष्ट्रपति बोलीं- संतों ने हमेशा समाज को राह दिखाई
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छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम में 251 जोड़ों का सामूहिक विवाह महोत्सव का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में बागेश्वर धाम के पं. धीरेंद्र शास्त्री ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को हनुमान यंत्र भेंट किया। इस दौरान मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी मौजूद रहे। पं. धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, भारत के मंदिरों की पेटियों को गरीबों की बेटियों के लिए खोल दिया जाना चाहिए। पढ़ें पूरी खबर…
बागेश्वर धाम वाले ‘सरकार’ की कहानी: सत्यनारायण कथा कहते थे, फिर दरबार लगाने लगे कथावाचक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का विदेश तक नाम है। धीरेंद्र से ज्यादा उनकी पहचान बागेश्वर धाम के रूप में है। छतरपुर जिले के गढ़ा निवासी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कभी गांव में भगवान सत्यनारायण की कथा सुनाते थे। गांव में हनुमानजी का मंदिर है। इसे बालाजी और बागेश्वर धाम नाम से जाना जाता है। पढ़ें पूरी खबर…
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