0

बैक्टीरिया से पता चल रही मौत की असली वजह: देश में सिर्फ भोपाल एम्स में माइक्रोबायोलॉजी पीएम टेक्निक; जिंदा इंसान की तरह होते हैं टेस्ट – Madhya Pradesh News

एम्स भोपाल देश का इकलौता अस्पताल है, जहां जिंदा की तरह मरे इंसानों के टेस्ट होते हैं। इससे मौत की सही वजह और समय का पता चलता है।

.

ये कहना है ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) की फोरेंसिक मेडिसिन विभाग की एचओडी अर्नित अरोड़ा का। वे बताती हैं कि एम्स भोपाल देश का इकलौता अस्पताल है, जहां जिंदा की तरह मरे इंसानों के टेस्ट होते हैं। इससे मौत की सही वजह और समय का पता चलता है।

कोरोना काल में डेवलप की गई इस तकनीक को अब एडवांस किया जा रहा है। इससे भविष्य में किसी अपराधी की पहचान भी हो सकेगी। इसके अलावा एम्स ने एक ऐसी मशीन भी बनाई है, जिससे मेडिकोलीगल केस से जुड़े सैंपल को प्रिजर्व किया जा सकता है। क्या है माइक्रोबायोलॉजी पोस्टमॉर्टम और ये कैसे विवेचना में कारगर साबित हो रहा है…पढ़िए रिपोर्ट

इस केस से समझिए, माइक्रोबायोलॉजी पोस्टमॉर्टम में क्या होता है फोरेंसिक मेडिसिन विभाग की एचओडी अर्नित अरोड़ा कहती है कि कुछ समय पहले एक लड़की की डेडबॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए लाया गया था। इस लड़की का जिला अस्पताल में पिछले 2 महीने से इलाज चल रहा था। वह बेहद कमजोर थी लिहाजा उसे एम्स रेफर किया गया लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।

लड़की की मौत की क्या वजह रही, ये नहीं पता था इसलिए ये मेडिको लीगल केस था। पोस्टमॉर्टम के फॉर्म में लड़की की उम्र 18 साल लिखी गई थी। वह बेहद कमजोर कद काठी की लड़की थी। जब हमने उसकी जांच की तो पता चला कि वह 5 महीने की प्रेग्नेंट थी। उसके पेट का उभार पांच महीने की गर्भवती जैसा नहीं था।

एक्सरे से पता चला कि लड़की की उम्र 18 नहीं, 15 साल है डॉ. अरोड़ा कहती हैं कि लड़की की उम्र को लेकर भी संशय था। पोस्टमॉर्टम के बाद जब हड्डियों की जांच की गई तो पता चला कि उसकी उम्र 15 साल है। ये पूरा केस ही बदल गया था। 15 साल की बच्ची का प्रेग्नेंट होना यानी उसके साथ सेक्शुअल एसॉल्ट हुआ होगा। हमने इसकी जानकारी पुलिस को दी।

उसकी मौत का कारण एस्पीरेशन था। मेडिकल टर्म में एस्पीरेशन का मतलब होता है कि सांस नली या फेफड़े में कोई चीज फंस जाना। इसकी वजह से सांस लेने में दिक्कत होती है और ये मौत की वजह बनता है। हमने मौत की वजह तो पता कर ली, लेकिन एस्पीरेशन हुआ क्यों? ये जानना भी जरूरी था।

माइक्रोबायोलॉजी पोस्टमार्टम से रेयर बैक्टीरिया के बारे में पता चला डॉ. अरोड़ा ने बताया कि मौत की असली वजह क्या है, इसका पता लगाने के लिए डेडबॉडी से ब्लड सैंपल लिए गए। टेस्ट करने पर ब्लड में एक रेयर बैक्टीरिया मिला, जिसका नाम था लिकोनॉस्टोकमिसेंटोरियस। ये बैक्टीरिया ह्यूमन बॉडी में आमतौर पर मिलता नहीं है।

इस बैक्टीरिया के बारे में और जानने के लिए हमने एम्स के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की मदद ली। इसके बारे में पता चला कि ये खाने पीने की चीजों में पाया जाता है, मगर ये बॉडी को नुकसान नहीं पहुंचाता है। शरीर की जो रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है, वह इस बैक्टीरिया को मार देती है।

मगर, बॉडी की इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो तो ये नुकसान पहुंचा सकता है। यह नसों पर अटैक करता है। उनमें सिकुड़न पैदा करता है। इस केस में यही हुआ। लड़की की सांस नली सिकुड़ गई थी और इसी की वजह से सांस नली में संक्रमण फैला। उसकी इम्यूनिटी भी बेहद कमजोर थी। माइक्रोबायोलॉजी पोस्टमॉर्टम की बदौलत मौत के असली कारण का पता चल सका।

800 पोस्टमॉर्टम हर साल होते हैं एम्स भोपाल में मार्च 2024 से माइक्रोबायोलॉजी विभाग की मदद से पोस्टमॉर्टम हो रहे हैं। इसके लिए अलग से इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। डॉ. अरोड़ा कहती हैं कि कोरोना के बाद से इसकी जरूरत और ज्यादा बढ़ी है। संक्रामक रोगों से निपटने के लिए पोस्टमॉर्टम माइक्रोबायोलॉजी बेहद महत्वपूर्ण है।

ये आने वाली महामारियों से निपटने के लिए तैयार रहने में भी मदद करेगी। इस समय एम्स में मिसरोद, बागसेवनिया, कटारा हिल्स और अवधपुरी पुलिस थानों से जुड़े मेडिकोलीगल केस आते हैं। हर दिन करीब 2 से 3 और सालभर में औसतन 800 से ज्यादा पोस्टमॉर्टम होते हैं। इनमें से 20 प्रतिशत डेडबॉडीज का माइक्रोबायोलॉजी पोस्टमॉर्टम किया जाता है।

सैंपल को प्रिजर्व करने के लिए डेढ़ लाख में बनाई मशीन एम्स, भोपाल के फॉरेंसिक विभाग ने मेडिकोलीगल केस के सैंपल को प्रिजर्व करने के लिए एक मशीन भी तैयार की है। आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने इसे अप्रूव किया है। फॉरेंसिक डिपार्टमेंट के प्रोफेसर राघवेंद्र विधुआ बताते हैं कि मेडिकोलीगल केस में पोस्टमॉर्टम के बाद बॉडी के सेंपल को प्रिजर्व करना पड़ता है, जब तक कि कोर्ट में केस चलता है।

सेंपल प्रिजर्व करने की पुरानी तकनीक ये है कि इन्हें पंखे या धूप में सुखाया जाता है। खुले में सुखाने पर कीड़े और मच्छरों से सैंपल को खतरा होता है जबकि बंद कमरे में पंखे के नीचे सुखाने पर सैंपल की नमी पूरी तरह से दूर नहीं होती। इसमें बैक्टीरिया और फंगस पनप जाते हैं। इससे सही नतीजे नहीं मिलते।

डॉ. विधुआ के मुताबिक, इसी समस्या को दूर करने के लिए एम्स ने सिर्फ डेढ़ लाख रुपए में सैंपल ड्रायर बनाया है। इसका कॉपीराइट एम्स के पास है। यह एक छोटी वाशिंग मशीन जैसा है। इसमें सारी प्रोसेस बंद एन्वायर्नमेंट में होती है। यह काफी इफेक्टिव है और इससे टाइम की भी काफी बचत होती है।

हम यह चाहते हैं कि इसे हर उस अस्पताल में होना चाहिए, जहां सैंपल कलेक्ट किए जाते हैं। इसके लिए हमने आईसीएमआर को प्रपोजल भेजा है।

#बकटरय #स #पत #चल #रह #मत #क #असल #वजह #दश #म #सरफ #भपल #एमस #म #मइकरबयलज #पएम #टकनक #जद #इसन #क #तरह #हत #ह #टसट #Madhya #Pradesh #News
#बकटरय #स #पत #चल #रह #मत #क #असल #वजह #दश #म #सरफ #भपल #एमस #म #मइकरबयलज #पएम #टकनक #जद #इसन #क #तरह #हत #ह #टसट #Madhya #Pradesh #News

Source link