वॉशिंगटन10 मिनट पहले
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अमेरिका में इलॉन मस्क और डोनाल्ड ट्रम्प के कुछ समर्थकों के बीच भारतीय प्रवासियों को लेकर बहस तेज हो गई है। मस्क और भारतवंशी नेता विवेक रामास्वामी मेरिट आधारित इमीग्रेशन रिफॉर्म यानी H-1B वीजा का समर्थन कर रहे हैं।
वहीं, ट्रम्प के कुछ समर्थक जैसे कि लॉरा लूमर, मैट गेट्ज और एन कूल्टर इसके खिलाफ हैं। उनके मुताबिक इससे अमेरिकी लोगों के हिस्से की नौकरियां विदेशी लोगों को मिलेंगी।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब 23 दिसंबर को भारतीय मूल के श्रीराम कृष्णन को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन में AI पॉलिसी एडवाइजर के तौर पर नियुक्त किया गया। कृष्णन, चेन्नई में जन्में भारतीय-अमेरिकी इंजीनियर हैं। कृष्णन की नियुक्ति से ट्रम्प समर्थक सोशल मीडिया इनप्लूएंसर लॉरा लूमर नाराज हो गई थीं।
लॉरा नस्लभेदी बयान देने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने कुछ महीने पहले कहा था कि अगर कमला राष्ट्रपति बनीं तो पूरा व्हाइट हाउस करी की तरह महकेगा।
लॉरा ने सोशल मीडिया पर लिखा-
यह परेशान करने वाला है कि कई सारे वामपंथी लोग अब ट्रम्प प्रशासन में नियुक्त किए जा रहे हैं। ये लोग ऐसे विचार रखते हैं जो अमेरिका फर्स्ट एजेंडे के सीधे खिलाफ हैं। हमारे देश का निर्माण गोरे यूरोपियों ने किया था, भारतीयों ने नहीं।
लॉरा ने श्रीराम कृष्णन के एक पुराने पोस्ट को लेकर भी सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने कुशल श्रमिकों के लिए वीजा और ग्रीन कार्ड के विस्तार का समर्थन किया था।
इसके बाद इस बहस में मस्क उतर गए। मस्क खुद दक्षिण अफ्रीका से आए अप्रवासी हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में उतने कुशल लोग नहीं हैं जितनी अमेरिकी कंपनियों को जरूरत है। मस्क ने कहा कि अगर आप अपनी टीम को चैंपियनशिप जिताना चाहते हैं, तो आपको बेहतर लोगों की भर्ती करनी होगी, चाहे वे कहीं के भी हों।
इलॉन मस्क ने एक और पोस्ट में कहा-
आप क्या चाहते हैं, अमेरिका जीते या हारे? अगर आप दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रतिभाओं को दूसरी तरफ जाने के लिए मजबूर करेंगे, तो अमेरिका हार जाएगा। सारी बातें यही पर जाकर खत्म हो जाती हैं।
इसके जवाब में लूमर ने कहा कि मस्क, ट्रम्प के अमेरिका को फिर से महाने बनाने (MAGA) के साथ नहीं हैं। वे ट्रम्प के लिए एक बाधा हैं। वह ट्रम्प के साथ सिर्फ अपने फायदे के लिए जुड़े हैं।
लॉरा ने यह भी कहा कि मस्क चाहते हैं कि हर कोई उन्हें हीरो समझे क्योंकि उन्होंने ट्रम्प को चुनाव लड़ने में 250 मिलियन डॉलर (2 हजार करोड़ रुपए) खर्च कर डाले। लेकिन यह बहुत बड़ी बात नहीं है क्योंकि इतने पैसे लगाकर ट्रम्प इससे कहीं ज्यादा कमाने वाले हैं।
इलॉन मस्क ने H-1B वीजा पॉलिसी का बचाव किया है।
रामास्वामी बोले- कुशल विदेशियों के बिना अमेरिका का पतन तय
असली लड़ाई तब शुरू हुई जब मस्क के समर्थन में विवेक रामास्वामी आ गए। उन्होंने मस्क के समर्थन में ऐसा पोस्ट कर दिया जिससे और ज्यादा विवाद छिड़ गया। रामास्वामी ने लिखा कि कुशल विदेशी लोगों के बिना अमेरिका का पतन तय है।
रामास्वामी ने कहा कि टॉप कंपनियां मूल अमेरिकियों के बजाए विदेशी लोगों को नौकरी पर रखती है। इसकी वजह यह नहीं है कि अमेरिकियों में जन्मजात IQ की कमी है। बल्कि इसकी वजह अमेरिकी संस्कृति का औसत दर्जे की तरफ बढ़ना है। उनके कहने का मतलब ये था कि अमेरिका में पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा फैशन का महत्व बढ़ता जा रहा है।
हालांकि रामास्वामी के इस पोस्ट पर अमेरिकी दक्षिणपंथी भड़क गए। लॉरा ने कहा कि अगर भारत इतना हाई स्किल्ड होता, तो लोग अमेरिका जाने के बजाय वहीं रहते। यह मान लीजिए कि सस्ती मजदूरी के लिए आप उन्हें चाहते हैं। भले ही लोग इसके लिए उन्हें ‘नस्लवादी’ कहा जाए।
विवेक रामास्वामी का विरोध करने वालों में निक्की हेली भी शामिल रहीं। निक्की हेली ने कहा-
अमेरिकी संस्कृति में कुछ भी गलत नहीं है। हमें अमेरिकियों में निवेश करना चाहिए और उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि विदेशी श्रमिकों को।
निक्की हेली भारतवंशी मूल की हैं और रिपब्लिकन पार्टी की नेता हैं। उन्होंने इस बार के चुनाव में पार्टी के प्राइमरी चुनाव में ट्रम्प को टक्कर दी थी।
H-1B वीजा क्या होता है?
पिछली बार राष्ट्रपति रहने के दौरान ट्रम्प ने एच-1बी वीजा पर प्रतिबंध लगाया था लेकिन इस बार इस मामले में उनका रुख नरम नजर आ रहा है। इसी साल एक पॉडकास्ट में ट्रम्प ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों के विदेशी स्नातकों को ग्रीन कार्ड देने के लिए समर्थन किया था।
H-1B नॉन-इमीग्रेंट वीजा होता हैं, जिसके तहत अमेरिकी कंपनियों को विशेष तकनीकी दक्षता वाले पदों पर विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति होती है। इस वीजा के जरिए टेक्नोलॉजी सेक्टर की कंपनियां हर साल भारत और चीन जैसे देशों से हजारों कर्मचारियों की नियुक्ति करती हैं।
H-1B वीजा आमतौर पर उन लोगों के लिए जारी किया जाता है,जो किसी खास पेशे (जैसे-IT प्रोफेशनल, आर्किट्रेक्टचर, हेल्थ प्रोफेशनल आदि) से जुड़े होते हैं। ऐसे प्रोफेशनल्स जिन्हें जॉब ऑफर होता है उन्हें ही ये वीजा मिल सकता है। यह पूरी तरह से एम्पलॉयर पर डिपेंड करता है। यानी अगर एम्पलॉयर नौकरी से निकाल दे और दूसरा एम्पलॉयर ऑफर न करे तो वीजा खत्म हो जाएगा।
अमेरिका हर साल 65,000 लोगों को H-1B वीजा देता है। इसकी समयसीमा 3 साल के लिए होती है। जरूरत पड़ने पर इसे 3 साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है। अमेरिका में 10 में से 7 H-1B वीजा भारतीय लोगों को मिलती है। इसके बाद चीन, कनाडा, साउथ कोरिया का नंबर आता है।
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